वैसे तो हर दिवस महिला दिवस ही होता है क्यों की महिला बिना ना घर चलता है और ना बाहर की दुनिया. महिला दिवस के अवसर पे आज कुछ बातें ...
वैसे तो हर दिवस महिला दिवस ही होता है क्यों की महिला बिना ना घर चलता है और ना बाहर की दुनिया. महिला दिवस के अवसर पे आज कुछ बातें महिलाओं की आज़ादी और अधिकार की हो जाएं . आम महिला हमारे समाज मैं किस स्थिति में है? इसको देखने की किसी को फुरसत नहीं हैं. आज चाहे खेतों मैं काम करने वाली ग्रामीण महिला हो या नौकरी पेशा ,उसे अधिकतर १६ से १८ घंटे काम करना पड़ता है और बच्चों की जिमेदारी अलग से उठानी होती है.और हकीकत मैं इसकी शुरूआत होती है शादी के बाद क्योंकि बेटी तो आज के युग मैं फिर भी जन्म लेने के बाद पिता के घर मैं इज्ज़त से जी ले रही है.
अपने बच्चों की परवरिश सभी माता पिता बड़े प्यार से करते हैं लेकिन उनके युवा हो जाने पे जब शादी का समय आता है तो अपने अधिकारों के नाम पे अपने बच्चों को उनके अधिकारों से जाने अनजाने मैं वंचित करने की ग़लती कर जाते हैं जिनको बाद मैं सुधारना संभव नहीं हुआ करता . अधि कांश माता-पिता अपनी युवावस्था के काल को मुला देते हैं.वो यह भूल जाते हैं कि स्वयं भी जब जवान थे तो विवाह में उनकी कितनी रूचि थी. और उन रूकावटों ने उन्हें कितना परेशान किया था जो उनके विवाह को रोक रही थी. इस कारण वो विवाह के संबंध में अपने बच्चों की रूचि की उपेक्षा भी करते हैं और विभिन्न बहानों से अपने बच्चों के विवाह में रोड़े अटकातें हैं. कहीं कहीं बच्चों को किसी से विवाह करने पर विवश किया जाता है. कुछ माता - पिता अपनी सन्तान के जीवन - साथी का चयन अपनी पसन्द व रूचि के आधार पर करते हैं और लड़के या लड़की की राय या पसन्द पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते. कभी कभी तो बिन उनसे पूछे कि विवाह के संबंध में जीवन साथी के चयन के लिए उनके क्या भानदण्ड हैं, स्वंय निर्णय ले लेते है.
कई समाजों में इस प्रकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं जिसके कारण परिवारों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इसमें बाल - विवाह या कम आयु की लड़कियों का ऐसे बड़ी आयु के व्यक्ति से विवाह जिसका पद ऊंचा हो या जिसके पास धन अधिक हो, जैसे विवाह संबंधों का नाम लिया जा सकता है.
नि:सन्देह हर माता - पिता अपनी सन्तान को सौभाग्यशाली देखना चाहता है. परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विवाह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है जिसपर युवा को स्वयं विचार करके निर्णय लेना चाहिए.
लड़का तो फिर भी किसी ना किसी तरह से अपनी पसंद और ना पसंद बता देता है लेकिन लड़की के लिए आज भी यह संभव नहीं हो पाता. इस शादी के मसले पे हिन्दुस्तान मैं सभी का एक जैसा हाल है.इस्लाम को माने वाले भी इस्लाम के कानून को अज्ञानतावश अनदेखा करते पाए जाते हैं
पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व) के काल में उनके पास एक लड़की आई और शिकायत की कि मेरे पिता ने बिना मेरी इच्छा के मेरे लिए वर चुन लिया और मुझे वो व्यक्ति बिल्कुल पसन्द नहीं है.पैग़म्बरे इस्लाम ने इस रिश्ते को तोड़ दिया और उस लड़की के माता- पिता से कहा कि विवाह से पूर्व लड़की से राय लें.
जी हां, इस्लाम में इस प्रकार की बातों और एक तरफ़ा निर्णय की आलोचना की गयी हालांकि इस्लाम माता - पिता के मूल्यवान अनुभवों का सम्मान करता है और विवाह के संबंध में माता - पिता के राय व सलाह को आवश्यक समझता है, परन्तु अन्तिम निर्णय लड़की या लड़के पर छोड़ता है ताकि एक स्वस्थ व रचनात्मक पीढ़ी के प्रशिक्षण का केन्द्र अर्थात परिवार का गठन दबाव द्वारा न किया जाए.
सूरा ए निसा मैं शादी की बहुत सी शर्तें बताई गयी है जिनसे साफ़ ज़ाहिर होता है की औरत के हक बहुत हैं लेकिन कभी उनका ज्ञान ना होने के कारण कभी सामाजिक कुरीतिओं के कारण और कभी माता पिता के अनावश्यक अधिकारों के इस्तेमाल के कारण औरत उनका इस्तेमाल नहीं कर पाती.
इस्लाम मैं शादी एक ऐसा क़रार या कंट्रेक्ट है जो रेवकबल भी है. Quran 4:21 . शादी मैं औरत और मर्द दोनों को शादी के पहले अपनी अपनी शर्तें रखने का अधिकार है जिसे शादी बाद तोड़ने पे मर्द तलाक ले सकता है और औरत मर्द से तलाक मांग सकती है . मर्द यदि तलाक ना दे तो औरत खुला के ज़रिये अपने पति से अलग हो सकती है.
निकाह के लिए समाज के लोगों की उपस्थिति होनी चाहिए. जहां दोनों पक्षों के लोग मौजूद हों, साथ ही मौलवी और दो गवाह मौजूद होते हैं. लड़के की तरफ से निकाह का प्रस्ताव दिया जाता है और उस का गवाह इस प्रस्ताव को लेकर लड़की के सामने जाता हैं उनके साथ मौलवी भी होता हैं लड़की से पूछा जाता है कि अमुक शख्स जिसके पिता का नाम यह है आपसे निकाह करना चाहता है और मेहर के रूप में वह अमुक राशि देना चाहता है, क्या आपको निकाह कबूल है? इस पर लड़की अपनी स्वीकृति देती है और तभी निकाह की प्रक्रिया आगे बढ़ती है. इसके बाद काजी निकाहनामा (कंट्रेक्ट पपेर्स )तैयार करता है और फिर लड़का और लड़की उस पर दस्तखत करते हैं. निकाहनामा पर गवाह के दस्तखत होते हैं और फिर मौलवी उस पर दस्तखत करते हैं और इस तरह निकाह सम्पन्न होता है.
तलाक देना इस्लाम मैं सबसे अधिक नापसंद किया जाता है लेकिन यदि पति और पत्नी का एक साथ जीना आपसी मतभेदों या और कारणों से संभव ना हो तो तलाक दिया और लिया जा सकता है. तीन बार तलाक तलाक कह देने भर से कोई भी तलाक संभव नहीं ,बल्कि इस पूरी प्रकिर्या मैं ३ महीने लग जाया करते हैं. पहले दोनों पक्षों में समझौता करवाने की कोशिश की जाती है और यदि समझोता ना हो सका तो ३ महीने दूर रहने के बाद तलाक हो जाया करता है. तलाक मैं भी गवाहों की आवश्यकता हुआ करती है.
तलाक के लिए सही कारण ना होने पे यदि लड़की तलाक ना लेना चाहे तो पति के लिए तलाक देना संभव नहीं. आज शिक्षा के युग मैं महिलाओं को मालूम होना चाहिए की उनकी मर्ज़ी के बिना उनकी शादी संभव नहीं और जब वो चाहें सही कारण होने पे अपने पति से अलग होने का अधिकार भी उन्हें प्राप्त है.
भारतीय नारी तो नारीत्व का, ममता का, करुणा का मूर्तिमान रूप है और पश्चिम कि सभ्यता औरत को एक नुमाइश कि चीज़ समझती है.औरतों के शोषण और औरतों के साथ समाज मैं दुर्व्यवहार , गालीयों से बात के खिलाफ भी आज आवाज़ उठाना आवश्यक है.
नारी मनुष्य का निर्माण करती है.नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो.