हम अलग अलग धर्मो और सभ्यताओं मैं विभाजित होते हुए भी एक जैसे ही इंसान हैं. इस कारण से इंसानों को धर्मों अथवा सभ्यताओं के संघ के रूप में...
हम अलग अलग धर्मो और सभ्यताओं मैं विभाजित होते हुए भी एक जैसे ही इंसान हैं. इस कारण से इंसानों को धर्मों अथवा सभ्यताओं के संघ के रूप में देखा जाना सही नहीं हुआ करता. हमारे अलग अलग नाम, धर्म, रहनसहन, किरदार, हमारी पहचान तो बन सकते है लेकिन हमको एक दुसरे से अलग नहीं कर सकते. राजशाही का का एक अहम् उसूल है कि इंसानों को उनके अलग अलग धर्मो, सभ्यताओं, जाती,जनजाति के अंतर को इस्तेमाल करते हुआ , उनपे राज करो. इसके लिए यह आवश्यक हुआ करता है कि इंसानों के इस अंतर को उनके बीच दूरी बढ़ाने मैं इस्तेमाल किया जाए. एक दुसरे के धर्मों के बारे मैं तरह तरह कि भ्रांति फैला के या जाति और जनजाति के आधार पर उनमें उंच नीच का भाव पैदा कर के यह काम हमेशा से बखूबी अंजाम दिया जाता रहा है.
हमारा धर्म ओर हमारा किरदार एक दुसरे से ताल मेल बैठा के नहीं चलते ,अक्सर तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम ओर हमारा धर्म नदी के दो अलग अलग किनारे हैं. धर्म कुछ ओर कहता है ओर हम ठीक उसके उल्टा कर रहे होते हैं.ओर धर्म कि आड़ मैं नफरत फैलाने वाले लोग हमारी कमियों,कमजोरियों को हमारे धर्म कि कमियां बता के तरह तरह कि भ्रांतियां फैलाते हैं.
दूसरा हथकंडा यह अपनाते हैं , किसी भी धर्म कि किताबों मैं लिखी बातों ,को ग़लत अंदाज़ से, ग़लत सन्दर्भ से ,या उसके अर्थों मैं फेर बदल कर बयान करने का. आज इस अंतर्जाल पे ना जाने कितनी वेबसाइट ओर ब्लॉग बन चुके हैं जो खुले आम किसी ना किसी धर्म के बारे मैं झूटी अफवाहें , फैलाते आप को मिल जाएंगे.
पिछले कुछ वर्षों की हिंसक घटनाओं और अत्याचारों के कारण वर्तमान युग भयानक भ्रांति तथा भयंकर द्वंद्वों का युग बन गया है .इस हिंसा पर काबू पाने के जो प्रयत्न किए जाते हैं वो भी आम इंसानों का एक दुसरे के धर्मो ओर संस्कृति के बारे मैं अज्ञानता के कारण कामयाब नहीं हो पाते. मेरा मानना है कि इसका हल अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर जाने पे ही संभव है.
इन नफरत के सौदागरों को शिकस्त (मात) हम सकारात्मक सोच को अपनाते हुए अपने ज्ञान को बढ़ा के बड़ी आसानी से दे सकते है.हमारा धर्म हमारी संस्कृति हमारी पहचान है ओर हमें उसपे गर्व होना चाहिए लेकिन इसको हम इंसानों के बीच कि दूरिओं का कारण अज्ञानतावश बनने से रोकना भी हम सभी का कर्त्तव्य है.
हमारा धर्म ओर हमारा किरदार एक दुसरे से ताल मेल बैठा के नहीं चलते ,अक्सर तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम ओर हमारा धर्म नदी के दो अलग अलग किनारे हैं. धर्म कुछ ओर कहता है ओर हम ठीक उसके उल्टा कर रहे होते हैं.ओर धर्म कि आड़ मैं नफरत फैलाने वाले लोग हमारी कमियों,कमजोरियों को हमारे धर्म कि कमियां बता के तरह तरह कि भ्रांतियां फैलाते हैं.
दूसरा हथकंडा यह अपनाते हैं , किसी भी धर्म कि किताबों मैं लिखी बातों ,को ग़लत अंदाज़ से, ग़लत सन्दर्भ से ,या उसके अर्थों मैं फेर बदल कर बयान करने का. आज इस अंतर्जाल पे ना जाने कितनी वेबसाइट ओर ब्लॉग बन चुके हैं जो खुले आम किसी ना किसी धर्म के बारे मैं झूटी अफवाहें , फैलाते आप को मिल जाएंगे.
पिछले कुछ वर्षों की हिंसक घटनाओं और अत्याचारों के कारण वर्तमान युग भयानक भ्रांति तथा भयंकर द्वंद्वों का युग बन गया है .इस हिंसा पर काबू पाने के जो प्रयत्न किए जाते हैं वो भी आम इंसानों का एक दुसरे के धर्मो ओर संस्कृति के बारे मैं अज्ञानता के कारण कामयाब नहीं हो पाते. मेरा मानना है कि इसका हल अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर जाने पे ही संभव है.
इन नफरत के सौदागरों को शिकस्त (मात) हम सकारात्मक सोच को अपनाते हुए अपने ज्ञान को बढ़ा के बड़ी आसानी से दे सकते है.हमारा धर्म हमारी संस्कृति हमारी पहचान है ओर हमें उसपे गर्व होना चाहिए लेकिन इसको हम इंसानों के बीच कि दूरिओं का कारण अज्ञानतावश बनने से रोकना भी हम सभी का कर्त्तव्य है.