जीवन का उद्देश्य बड़ा बनना होना चाहिए, न कि दूसरों को छोटा बनाना. आप बड़े बनोगे तो स्वतः ही आपकी बराबरी करने वाला आपसे छोटा हो जाएगा. एक ...
अच्छाई की बुराई पे जीत , हक और बातिल कि जंग की बातें बहुत होती हैं, और इस कि बहुत सी मिसालें भी मिल जाएगी जैसे कर्बला मैं इमाम हुसैन के सब्र की और यजीद के ज़ुल्म कि जंग, या महाभारत और होलिका दहन की कहानी इत्यादि. और सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे हमारे अंदर होने वाली रोजाना अच्छाई और बुराई कि जंग है . हम जब भी कोई ग़लत काम करते हैं तो एक बार हमारी अतरात्मा आवाज़ अवश्य देती है कि यह ग़लत कर रहे हो और उसी के साथ हमारे अंदर एक जंग शुरू हो जाती है. जो अच्छे लोग हैं वोह आत्मा कि आवाज़ सुन के बुराई से रुक जाते हैं और अच्छाई जीत जाती है, जो बुरे हैं वो आत्मा कि आवाज़ को दबा देते हैं और बुराई कि जीत हो जाया करती है.
आज बात करेंगे अच्छाई से अच्छाई कि जंग की. ताज्जुब ना करें आज इस जंग का बोलबाला अधिक है. इसका एक तो कारण इंसान का अहम् "मैं" हुआ करता है और दूसरा यह कि आज इंसान अच्छे काम भी दौलत और शोहरत के लिए किया करता है. इस जंग का फैदा हमेशा बुरे काम करने वालों का ही हुआ करता है.
आप सभी जानते हैं कि यदि आपने एक एंटी वाएरस अपने कोम्पुटर मैं डाल रखा है और दूसरा डालने कि कोशिश करें तो दोनों एंटी वाएरस एक दूसरे को ही वाएरस बताने लगते हैं क्यूंकि दोनों की ही कम्पनी को अपना व्यापार बढ़ाना है. ऐसे मैं वाएरस कि चांदी हो जाती है बिना उसके कुछ किये आप का कम्पूटर हँग (hang) हो जाता है.
इसी तरह जब कोई इंसान इस समाज मैं कोई अच्छा काम , इंसानियत और मानवता के कारण ना कर के , अपनी शोहरत,पैसे या रुतबे के लिए करता है तो वो किसी दूसरे को इस अच्छाई के छेत्र मैं आगे नहीं आने देना देता और उसे नीचा दिखाने के लिए बदनाम करने कि कोशिश भी करता है. नतीजे मैं बुराई फैलाने वालों का फाएदा होता है..
इसलिए यदि आप समाज मैं कुछ अच्छा काम कर रहे हैं तो इर्ष्या ,अहम् "मैं" का त्याग कर के यह काम केवल इंसानियत, मानवता और इश्वेर कि ख़ुशी के लिए करें तब कहीं जा के आप किसी दूसरे को भी अच्छा काम करते देख खुश होंगे और मिल जुल के एक दूसरे का सहयोग करते हुए समाज को कुछ दे सकेंगे और बुराई के खिलाफ जंग मैं जीत हासिल कर पाएंगे.
इस अच्छाई से अच्छाई कि जंग का दूसरा रूप यह भी है कि आज ग़लत रास्ते से धन दौलत कमाने वाले ,कुछ अच्छे काम काम,दान धर्म का दिखावा कर के अपने दामन पे लगी कालिख पोंछ लेना चाहते हैं क्यों कि बुरा इंसान भी समाज मैं खुद को बुरा नहीं कहलवाना चाहता.चूंकि इनका मकसद मानवता,इंसानियत या इश्वेर कि ख़ुशी के लिए काम करने कि जगह खुद कि छवि को सुधारना हुआ करता है इसलिए यह उनके दुश्मन हुआ करते हैं जो इस समाज मैं मानवता,इंसानियत या इश्वेर कि ख़ुशी के लिए कुछ अच्छा काम कर रहा है.
हमारे लिए आज यह जानना बहुत ही ज़रूरी हो गया है कि कौन सच मैं सदाचारी है और कौन अपने काले धन कि ताक़त पे सदाचारी होने का ढोंग कर रहा है.
इसलिए आज से यह प्रण कर लें कि एक दूसरे का साथ उसकी अच्छाइयों मैं देंगे और बुराईयों मैं एक दूसरे से दूरी रखेंगे.
कल होली कि खुशियाँ घर घर मैं मानी जाएंगी हम सभी होली की पूर्व संध्या, यानी फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को होलिकादहन मनाते हैं. हम लोग घर के बाहर सार्वजनिक रूप से होलिकादहन मनाते हैं. इसके पीछे भी एक संदेश छिपा हुआ है कि दुराचारी का साथ जीवन मैं कभी ना दें. कहते हैं कि वर्षो पूर्व पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. इसलिए हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को दंड देने के लिए उसे अपनी बहन होलिका की गोद में को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी, लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले.
होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत करते हुए यह प्रण करें कि दुराचारी का साथ जीवन मैं कभी नहीं देंगे तब तो आप सच मैं होली कि ख़ुशी मानाने के हक़दार हैं वरना यह केवल एक दिखावा मात्र बन के रह जाएगा.
आप सभी को होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.