अधिकतर माता- पिता अपने युवाओं के व्यवहार से अप्रसन्न मिलते हैं और कहते हैं कि वे उद्दण्ड हो गए हैं, छोटे , बड़ों का आदर ही नहीं करते, वो...
अधिकतर माता- पिता अपने युवाओं के व्यवहार से अप्रसन्न मिलते हैं और कहते हैं कि वे उद्दण्ड हो गए हैं, छोटे , बड़ों का आदर ही नहीं करते, वो सोचते हैं कि जो वो सोचते हैं वही ठीक है. और किशोरों की प्राय: यह शिकायत रहती है कि माता पिता और अन्य बड़े लोग हमारी भावनाओं एवं इच्छाओं को समझते नहीं हैं, वे अपने विचारों को हमपर थोपते हैं.
और इसका नतीजा होता है अशांति जो किसी भी परिवार के लिए सही नहीं. क्या है इसका कारण ? क्यों अधिकतर युवा ऐसा करते हैं? क्या हमसे परवरिश करने मैं कोई ग़लती हो गयी? क्या इसे मैं किस्मत को दोष देते रहना सही है? यह ऐसे सवाल हैं जो अक्सर माता पिता के दिमाग मैं उस समय आते हैं जब उनका युवा बच्चा उनकी नहीं सुनता. चलिए आज इसके कुछ कारणों के बारे मैं बात करते हैं. शायद आप को इसमें से कहीं अपने सवालों का जवाब मिल जाए.
माता पिता कि परवरिश : यह हम सब जानते हैं की मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रशिक्षण की प्रक्रिया से गुज़रता रहता है और वोह अपने आस पास के लोगों से , समाज से बहुत कुछ सीखते हैं. बचपन से युवावस्था तक प्रशिक्षण का विशेष महत्व होता है. इसलिए अच्छा है कि इसी आयु में हम अपने बच्चों को शिष्टाचारिक नियमों, सामाजिकरीति रिवाजों को सीखाएं. सबसे पहले माता- पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए पवित्रता तथा नैतिकता का उदाहरण बने ताकि बच्चे उनसे इसे सीख सकें. अगर बचपन मैं सही शिक्षा दी जाए तो युवावस्था मैं अधिक दिक्क़तों का सामना नहीं करना पड़ता है.
इन बातों को पढने से के बाद इत्मीनान से सोचिएं. क्या आप स्वम शिष्टाचारिक नियमों और सही सामाजिक रीत रिवाजों का पालन करते हैं? क्या आप ने भी अपने माता पिता कि इज्ज़त और सेवा कि थी? क्या आप ने अपने धर्म के सही उपदेशों को अपने बच्चों तक पहुँचाया? यदि नहीं तो अपने युवा से शिकायत क्यों? शिकायत तो आप को खुद से होनी चाहिए.
घरेलू समस्याओं मैं अपने बच्चों से सलाह मशविरा किया करें यह उसके व्यक्तित्व के विकास का महत्वपूर्ण कारक होता है. इसके साथ साथ उसकी समस्याओं मैं उसकी की सहायता कीजिए ताकि वो यह सीखे कि एक ही विषय के विभिन्न आयोमों पर पहले विचार फिर निर्णय लिया जाता है. उसे यह भी समझाइए कि कोई राय पेश करने का अर्थ यह नहीं है कि यही आन्तिम निर्णय है। दूसरों के सम्मुख युवाओं का अपमान कदापि नहीं करना चाहिए.
आप युवा को यह समझाएं कि उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी केवल उसी पर है और आप आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता कर सकते हैं। यह आप का फ़र्ज़ भी है की आप अपने बच्चे की मदद करें.
यह भी देखने मैं आता है कि जिन परिवारों मैं आपसी सम्बन्ध आत्मीय तथा प्रेम पूर्ण हों नहीं होते और उन्हें सही वातावरण नहीं मिलता है तो इस प्रेम के रिक्त स्थान को हमारा युवा अन्य चीज़ों से भरना शुरू कर देता है और उसका अधिक समय फिल्म, टीवी ,क्लब ,पार्टी और कमप्यूटर गैम्स मैं गुजरने लगता है.
आज के दौर मैं T.V. सिनेमा और कमप्यूटर गैम्स का प्रभाव युवाओं के मन पर इतना पड़ता है कि वे फ़िल्म के नायक का पूर्ण रूप से अनुसरण करने लगते हैं. उसके संवादों का एक एक शब्द याद करके उसे दोहराते हैं. यहॉं तक कि उनके बात करने के ढंग, उनके चलने फिरने और पहनावे का भी अनुसरण करने का पूरा प्रयास करते हैं.
जब बच्चे छोटी आयु से ही हिंसात्मक दृश्य देखते हैं तो उस हिंसा तथा उसकी बलि चढ़े लोगों के प्रति उसके मन में सहानुभूति की भावना समाप्त हो जाती है. उसे फ़िल्म के हीरो से ही सहानुभूति होती है न कि उसकी हिंसात्मक कार्रवाइयों की भेंट चढ़े लोगों से. ऐसे ही दृश्यों को देखकर बच्चों के मन में हिंसा के विरोध जो भावनाएं एवं संवेदनाएं होनी चाहिए , धीरे धीरे उनका अन्त हो जाता है.
समाज का असर: जिस समाज मैं हम रह रहे हैं उसका भी असर युवाओं पे पड़ता है. किसी भी युवा के साथी ,मित्र भी उसके व्यक्तित्व निर्भाण में बहुत प्रभावी भूमिका निमाते हैं. इसलिए हमें सर्तक रहना चाहिए कि उसके घनिष्ट मित्र कौन हैं, उनकी क्या विशेषताएं हैं और उनके परिवार पर किस विशेष संस्कृति का प्रभाव है. क्योंकि युवा अपने मित्रों का अनुसरण बड़ी जल्दी करने लगता है.
आज कल बहुत से घरों मैं माता पिता दोनों नौकरी किया करते हैं और बच्चे बेबी सिटिंग मैं परवरिश पाते हैं. बेबी सिटिंग मैं पलने वाला बच्चे मैं माता पिता के संस्कार कम और बेबी सिटिंग वाले घर के संस्कार ही अधिक मिलिंगे.
यह हमेशा याद रखें जब आप का शिशु जन्म लेता है तो उसका मस्तिष्क सीखने के लिए तैयार होता है. जब वो आंखें खोलता है, उसकी बुद्धि अपने चारों ओर की चीज़ों को समझने के लिए तैयार हो जाती है. इसलिए जो आप उसे दिखाएँगे वो देखेगा और जो सिखाएंगे वही सीखेगा.
और इसका नतीजा होता है अशांति जो किसी भी परिवार के लिए सही नहीं. क्या है इसका कारण ? क्यों अधिकतर युवा ऐसा करते हैं? क्या हमसे परवरिश करने मैं कोई ग़लती हो गयी? क्या इसे मैं किस्मत को दोष देते रहना सही है? यह ऐसे सवाल हैं जो अक्सर माता पिता के दिमाग मैं उस समय आते हैं जब उनका युवा बच्चा उनकी नहीं सुनता. चलिए आज इसके कुछ कारणों के बारे मैं बात करते हैं. शायद आप को इसमें से कहीं अपने सवालों का जवाब मिल जाए.
माता पिता कि परवरिश : यह हम सब जानते हैं की मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रशिक्षण की प्रक्रिया से गुज़रता रहता है और वोह अपने आस पास के लोगों से , समाज से बहुत कुछ सीखते हैं. बचपन से युवावस्था तक प्रशिक्षण का विशेष महत्व होता है. इसलिए अच्छा है कि इसी आयु में हम अपने बच्चों को शिष्टाचारिक नियमों, सामाजिकरीति रिवाजों को सीखाएं. सबसे पहले माता- पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए पवित्रता तथा नैतिकता का उदाहरण बने ताकि बच्चे उनसे इसे सीख सकें. अगर बचपन मैं सही शिक्षा दी जाए तो युवावस्था मैं अधिक दिक्क़तों का सामना नहीं करना पड़ता है.
इन बातों को पढने से के बाद इत्मीनान से सोचिएं. क्या आप स्वम शिष्टाचारिक नियमों और सही सामाजिक रीत रिवाजों का पालन करते हैं? क्या आप ने भी अपने माता पिता कि इज्ज़त और सेवा कि थी? क्या आप ने अपने धर्म के सही उपदेशों को अपने बच्चों तक पहुँचाया? यदि नहीं तो अपने युवा से शिकायत क्यों? शिकायत तो आप को खुद से होनी चाहिए.
घरेलू समस्याओं मैं अपने बच्चों से सलाह मशविरा किया करें यह उसके व्यक्तित्व के विकास का महत्वपूर्ण कारक होता है. इसके साथ साथ उसकी समस्याओं मैं उसकी की सहायता कीजिए ताकि वो यह सीखे कि एक ही विषय के विभिन्न आयोमों पर पहले विचार फिर निर्णय लिया जाता है. उसे यह भी समझाइए कि कोई राय पेश करने का अर्थ यह नहीं है कि यही आन्तिम निर्णय है। दूसरों के सम्मुख युवाओं का अपमान कदापि नहीं करना चाहिए.
आप युवा को यह समझाएं कि उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी केवल उसी पर है और आप आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता कर सकते हैं। यह आप का फ़र्ज़ भी है की आप अपने बच्चे की मदद करें.
यह भी देखने मैं आता है कि जिन परिवारों मैं आपसी सम्बन्ध आत्मीय तथा प्रेम पूर्ण हों नहीं होते और उन्हें सही वातावरण नहीं मिलता है तो इस प्रेम के रिक्त स्थान को हमारा युवा अन्य चीज़ों से भरना शुरू कर देता है और उसका अधिक समय फिल्म, टीवी ,क्लब ,पार्टी और कमप्यूटर गैम्स मैं गुजरने लगता है.
आज के दौर मैं T.V. सिनेमा और कमप्यूटर गैम्स का प्रभाव युवाओं के मन पर इतना पड़ता है कि वे फ़िल्म के नायक का पूर्ण रूप से अनुसरण करने लगते हैं. उसके संवादों का एक एक शब्द याद करके उसे दोहराते हैं. यहॉं तक कि उनके बात करने के ढंग, उनके चलने फिरने और पहनावे का भी अनुसरण करने का पूरा प्रयास करते हैं.
जब बच्चे छोटी आयु से ही हिंसात्मक दृश्य देखते हैं तो उस हिंसा तथा उसकी बलि चढ़े लोगों के प्रति उसके मन में सहानुभूति की भावना समाप्त हो जाती है. उसे फ़िल्म के हीरो से ही सहानुभूति होती है न कि उसकी हिंसात्मक कार्रवाइयों की भेंट चढ़े लोगों से. ऐसे ही दृश्यों को देखकर बच्चों के मन में हिंसा के विरोध जो भावनाएं एवं संवेदनाएं होनी चाहिए , धीरे धीरे उनका अन्त हो जाता है.
समाज का असर: जिस समाज मैं हम रह रहे हैं उसका भी असर युवाओं पे पड़ता है. किसी भी युवा के साथी ,मित्र भी उसके व्यक्तित्व निर्भाण में बहुत प्रभावी भूमिका निमाते हैं. इसलिए हमें सर्तक रहना चाहिए कि उसके घनिष्ट मित्र कौन हैं, उनकी क्या विशेषताएं हैं और उनके परिवार पर किस विशेष संस्कृति का प्रभाव है. क्योंकि युवा अपने मित्रों का अनुसरण बड़ी जल्दी करने लगता है.
आज कल बहुत से घरों मैं माता पिता दोनों नौकरी किया करते हैं और बच्चे बेबी सिटिंग मैं परवरिश पाते हैं. बेबी सिटिंग मैं पलने वाला बच्चे मैं माता पिता के संस्कार कम और बेबी सिटिंग वाले घर के संस्कार ही अधिक मिलिंगे.
यह हमेशा याद रखें जब आप का शिशु जन्म लेता है तो उसका मस्तिष्क सीखने के लिए तैयार होता है. जब वो आंखें खोलता है, उसकी बुद्धि अपने चारों ओर की चीज़ों को समझने के लिए तैयार हो जाती है. इसलिए जो आप उसे दिखाएँगे वो देखेगा और जो सिखाएंगे वही सीखेगा.