आज के युग मैं सच्चाई सदाचार और शराफत शब्द बस किताबों, कविताओं और गजलों मैं ही अच्छे लगते हैं. असल जीवन मैं इन शब्दों के सही अर्थ को समझन...
आज के युग मैं सच्चाई सदाचार और शराफत शब्द बस किताबों, कविताओं और गजलों मैं ही अच्छे लगते हैं. असल जीवन मैं इन शब्दों के सही अर्थ को समझने वाले और इनको अपनाने वाले लुप्तप्राय हैं. लेकिन हमारे मानने या ना माने से इनकी अहमियत कम नहीं हो जाती.
क्या है सदाचार? अच्छे आचरण को ही सदाचार कहते हैं.हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में यह शोध किया गया है कि सदाचार हमारी इच्छा शक्ति के साथ-साथ शरीर को भी स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है. इस में कोई शक नही है कि सदाचार हर समय में महत्वपूर्ण रहा हैं. परन्तु वर्तमान समय में इसका महत्व कुछ अधिक ही बढ़ गया है. क्योँकि वर्तमान समय में इंसान को भटकाने और बिगाड़ने वाले साधन पूर्व के तमाम ज़मानों से अधिक हैं. पिछले ज़मानों मे बुराईयाँ फैलाने और असदाचारिक विकार पैदा करने के साधन जुटाने के लिए मुश्किलों का सामना करते हुए अधिक मात्रा मे धन खर्च करना पड़ता था. परन्तु आज के इस विकसित युग में यह साधन पूरी दुनिया मे व्याप्त हैं. जो काम पिछले ज़मानों में सीमित मात्रा में किये जाते थे वह आज के युग में असीमित मात्रा में बड़ी आसानी के साथ क्रियान्वित होते हैं.
आज एक ओर विकसित हथियारों के द्वारा इंसानों का कत्ले आम किया जा रहा है, तो दूसरी ओर दुष्चारिता को बढ़ावा देने वाली फ़िल्मों को पूरी दुनिया मे प्रसारित किया जा रहा है . विशेषतः इन्टर नेट के द्वारा मानवता के लिए घातक विचारों व भावो को दुनिया के तमाम लोगों तक पहुँचाया जा रहा है. इस स्थिति में आवश्यक है कि सदाचार की तरफ़ गुज़रे हुए तमाम ज़मानों से अधिक ध्यान दिया जाये.
वास्तव में इंसान को इंसान कहना उसी समय शोभनीय है जब वह इंसानी सदाचार से सुसज्जित हो. सदाचारी न हो ने पर यह इंसान एक खतरनाक नर भक्षी का रूप भी धारण कर लेता है. और चूँकि इंसान के पास अक़्ल जैसी नेअमत भी है अतः इसका भटकना अन्य प्राणीयों से अधिक घातक सिद्ध होता है. और ऐसी स्थिति में वह सब चीज़ों को ध्वस्त करने की फ़िक्र में लग जाता है. और अपने भौतिक सुख और लाभ के लिए युद्ध करके बे गुनाह लोगों का खून बहानें लगता है.
ऐसे में हमको धर्म की ज़रूरत पड़ती है. क्युकि सभी धर्मों में सदाचार पे विशेष रूप से बल दिया है. क़ुरआन में सदाचार को एक आधारिक विषय के रूप में माना गया है. जबकि इस्लाम के दूसरे तमाम क़ानूनों को इस के अन्तर्गत ब्यान किया गया. यह और बात है कि आज धार्मिक उपदेश और नसीहतें भी बस धर्म कि किताबों मैं बंद हैं जिनको हम किस्से कहानियों कि तरह सुनते और भुला देते हैं.
तुम बुराई का जवाब अच्छे तरीक़े से दो यह इस्लाम का कानून है (सूरए फ़ुस्सेलत आयत 34) लेकिन कुछ लोग अज्ञानता के कारण बुराई का जवाब बुराई से देने लगते हैं. यह अज्ञानता के कारण होता है .समस्त सदाचारिक बुराईयाँ अज्ञानता के कारण होती हैं. यही हाल और दुसरे धर्म के मानने वालों का भी है.
जो धर्म समाज से नफरत और झगड़ों को मिटने के लिए आया था आज झगड़ों का कारण बना हुआ है. आज किसी व्यक्ति के धार्मिक होने का मतलब हुए करता है एक ऐसा इंसान जो अपने से अलग धर्म वाले के लिए दिल मैं नफरत रखता हो. जबकि होना इसका उलट चाहिए. यह अज्ञानता के कारण होता है.
सही ज्ञान वो है जो अच्छाई और बुराई का फर्क बताए , जो अच्छे सदाचार के लिए कारक बने और यह धर्म के सहारे ही मुमकिन है. इसके लिए पहले अपने धर्म को पहचानो, धार्मिक उपदेशों को पढो, उसपे चलने की कोशिश करो. इसके लिए सहारा लो धार्मिक ग्रंथों का, न की पैसे के लालची मुल्लाओं ,पंडितों और नेताओं के भड़काऊ भाषाडों और फतवों का. जो मुल्ला, पंडित या नेता तुमको दुराचार के सहारे धार्मिक बना ने की बात बताए उसके पीछे चलने से इनकार कर दो.
जिस दिन किसी भी इंसान को ,मुल्ला को, नेता को, पंडित को उसकी धार्मिक किताबों के उपदेशों से, और उसके धर्म के संस्थापको के किरदार से पहचानना हम सीख जाएंगे उसी दिन से धर्म के नाम पे झगड़े भी हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे. उसी समय हम सही मायने मैं एक धार्मिक और सदाचारी इंसान कहलाएंगे.