कुछ दिन पहले मैंने इमाम हुसैन (ए.स) को श्रधांजलि देते हुए एक पोस्ट मैं यह बताने कि कोशिश कि थी कि धर्म कोई भी हो जब यह राजशाही , बादश...
श्रधांजलि देते हुए एक पोस्ट मैं यह बताने कि कोशिश कि थी कि धर्म कोई भी हो जब यह राजशाही , बादशाहों, नेताओं का ग़ुलाम बन जाता है तो ज़ुल्म और नफरत फैलाता है और जब यह अपनी असल शक्ल मैं रहता है तो, पैग़ाम ए मुहब्बत "अमन का पैग़ाम " बन जाता है.
10 मुहर्रम 61 हिजरी को इमाम हुसैन (ए.स) को ज़ालिम बादशाह यजीद ने भूखा प्यासा शहीद कर दिया लेकिन नाम ए हुसैन अमर हो गया और आज भी जब मुहर्रम का महीना आता है तो मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्मो के लोग अपनी श्रधांजलि पेश करते हैं और मुसलमान तो यह ग़म ऐसा मनाता है जैसी आज ही किसी ने इमाम को शहीद किया है. १० मुहर्रम के बाद अगला महीने २० सफ़र को मुसलमान इमाम हुसैन का चालिस्वां मनाते हैं और एक बार फिर उनकी शहादत और मकसद ए शहादत को याद करते हैं. कल २० सफ़र है और हम सबके साथी ब्लोगर जीशान जैदी साहब ने अपना एक लेख़ इमाम हुसैन (ए.स) पे भेजा था , जिसे सही अवसर पा के आज पेश कर रहा हूँ.
आशा है आप सब भी इसको पढके तारीख इंसानियत के उस बादशाह को याद करेंगे जिसने ज़ुल्म और आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हुई अपनी शहादत दी.
जिसने यह साफ़ साफ़ एलान कर दिया कि अगर कोई इंसान जो खुद को मुसलमान कहता है और बेगुनाह पे ज़ुल्म भी करता है तो उसके साथ रहने और उसका साथ देने से बेहतर है कि किसी अमन पसंद ग़ैर मुसलमान इंसानों के साथ रहो. इसके साथ ही जैसा की रवायतों मे मिलता है की हिन्द से एक ब्राह्मण जिनका नाम रहिब दत्त था इमाम हुसैन की तरफ से याजीदियों से लड़े थे.
इमाम हुसैन (अ.स) के बारे मैं श्रीमती सरोजिनी नायडू ने कहा : मै मुसलमानों को इसलिए मुबारकबाद पेश करना चाहती हूँ की यह उनकी खुशकिस्मती है की उनके बीच दुन्या की सब से बड़ी हस्ती इमाम हुसैन (अ:स) पैदा हुए जो संपूर्ण रूप से दुन्या भर के तमाम जाती और समूह के दिलों पर राज किया और करता है! और रबिन्द्र नाथ टैगौर कहते हैं कि : इन्साफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की ज़रुरत नहीं होती है! कुर्बानियां देकर भी फ़तह (जीत) हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया! पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा : इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है, और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है! और डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी कहा : इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक मुल्क या कौम तक सिमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में भाईचारे का एक असीमित राज्य है! ..एस.एम.मासूम
पेश ए खिदमत है अमन का पैग़ाम कि इक्तालिस्वीं पेशकश जीशान जैदी ….
दोपहर का वक्त। चिलचिलाती धूप का आलम। ऐसे में एक छोटा सा काफिला रेगिस्तान से होकर गुजर रहा है। कोई कहता है कि यह काफिला मौत की तरफ बढ़ रहा है। उसके बाद भी किसी फर्द के चेहरे पर घबराहट और खौफ का दूर दूर तक पता नहीं। बल्कि सभी के चेहरों पर एक पुरवकार मुस्कुराहट है। फिर ये लोग देखते हैं कि सामने से बहुत बड़ी फ़ौज चली आ रही है। पूरी फ़ौज प्यास से तड़प रही है। सभी की ज़बानें बाहर निकली हुई हैं। इस छोटे से काफिले का सरदार हुक्म देता है कि फ़ौज को पानी से सैराब कर दिया जाये। काफिला अपने पानी का पूरा जखीरा फ़ौज पर खर्च कर देता है, जबकि उस काफिले में छोटे छोटे बच्चे, बूढ़े, औरतें सभी शामिल हैं।
फ़ौज वाले बहुत जल्द उस काफिले का यह एहसान भूल जाता है और काफिले को घेरकर ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ काफिले के छोटे बच्चे प्यास से तड़पते हुए एक बड़ी फ़ौज का मुकाबला करते हैं, बहादुरी के तेवर दिखाते हुए जंग करते हैं और शहीद हो जाते हैं।
उस छोटे से काफिले का सरदार इन्सानियत का सबसे बड़ा अलमबरदार था जो पैगम्बर मोहम्मद (स.) का नवासा था और जिसका नाम था हुसैन इब्ने अली अलैहिस्सलाम ।
उनके खिलाफ फ़ौज खड़ी करने वाला दुनिया के जालिमों का सरदार यजीद था। हुसैन इब्ने अली (अ.) ने जुल्म के तरकश के हर तीर को अपने सब्र की तलवार से काट दिया। अपना सर कटाकर बातिल के सर को झुकने पर मजबूर कर दिया। खुद शहादत का जाम पीकर जुल्म की सरकशियों को हमेशा के लिए कुचल दिया और दुनिया को ये दिखा दिया के बड़े से बड़े दुश्मन का मुकाबला किस तरह हिम्मत और सब्र के बल पर किया जा सकता है। हुसैन (अ.) की कुर्बानियों का मकसद समझकर हम आज के मुश्किल हालात का सामना पूरी हिम्मत के साथ कर सकते हैं।
आज पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है। कुछ मुल्क जो अपने अन्दर सारी दुनिया की ताकत समेट लेना चाहते हैं। और उनके मुकाबले में दूसरी तरफ अनेक गरीब मुल्क हैं जहाँ लोग जिंदगी की बुनियादी जरूरतों रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं। यहां तक कि उन्हें ताजी हवा और साफ पानी भी मयस्सर नहीं है। चन्द ताकतवर मुल्क इन गरीब मुल्कों पर अपनी दादागिरी चमकाना चाहते हैं। यहां के ज़खीरों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहते हैं। अपनी बात न मानने पर इन गरीब मुल्कों को सबक सिखाने की धमकी देते हैं। इनके लिए पेट्रोल इन्सानी खून से ज्यादा कीमती है। ये अपने बनाये हथियारों के टेस्ट के लिए हरे भरे जंगलों को बरबाद कर रहे हैं। अपनी फैक्ट्रियों से निकला कचरा ठिकाने लगाने के लिए गरीब मुल्कों को कूड़ेदान बना रहे हैं।
इन ताकतवर लेकिन जालिम मुल्कों से मुकाबले के लिए आज जरूरत है हुसैनी लश्कर की, और उसकी कुर्बानियों की। आज हुसैन (अ.) के बताये सब्र और हिम्मत के रास्ते पर चलकर हम ताकतवर मुल्कों को झुकने पर मजबूर कर सकते हैं। उसके लिए जरूरत है अपने मकसद को हासिल करने के लिए लगन की, दिन रात की मेहनत की और सब्र का दामन हमेशा थामे रहकर काम करने की। कभी जापान अमेरिका के एटमी हमलों से थर्रा उठा था। उस मुल्क को लगभग तबाह और बरबाद कर दिया गया था। आज वही छोटा सा मुल्क अमेरिका को बराबरी की टक्कर दे रहा है। इसकी वजह सिर्फ एक है कि वहां के बाशिंदों ने सब्र और हिम्मत के साथ कड़ी मेहनत की। दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा। परोक्ष रूप से उन्होंने हुसैन (अ.) के पैगाम पर अमल किया और आखिरकार पूरी दुनिया को अपनी टेक्नालाजी के सामने झुकने पर मजबूर कर दिया।
यकीनन हुसैन (अ.) ने अपने बहत्तर साथियों के साथ सब्र और हिम्मत की वह मिसाल पेश की कि ताकयामत कोई दूसरा उसके बराबर नहीं पहुंच सकेगा। छोटे छोटे बच्चों ने भी तीन दिन की भूख और प्यास के बाद शुजाअत के वह जौहर दिखाये कि यजीदी लश्कर अनेकों बार मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ।
क्या क्या मिसालें पेश की जायें। हजरत अब्बास (अ.) की खैमे तक पानी पहुंचाने की कोशिश, जबकि उनके दोनों बाजू कट चुके थे। बूढ़े बाप का जवान बेटे के सीने से बरछी निकालना, छह महीने के बच्चे का होठों पर ज़बान फेरकर प्यास की शिद्दत दिखलाना और फिर गले पर तीर खाना। छोटी सी बच्ची के गालों पर तमांचे। एक बीमार का हथकड़ियां और बेड़ियों में जकड़े हुए करबला से शाम तक का मीलों लम्बा सफर। करबला के मैदान में जुल्म ने सारी हदें तोड़ दी थीं। लेकिन हुसैन (अ.) के सब्र ने दुनिया के सबसे बड़े जुल्म को हमेशा के लिए फना कर दिया। यजीद और उसकी फौज हमेशा के लिए ज़लील व ख्वार हो गयी। दीन हमेशा के लिए बाकी रह गया और दीन को मिटाने की कोशिश करने वाले खुद मिट गये।
…जीशान जैदी
कुछ दिन पहले मैंने इमाम हुसैन (ए.स) को 10 मुहर्रम 61 हिजरी को इमाम हुसैन (ए.स) को ज़ालिम बादशाह यजीद ने भूखा प्यासा शहीद कर दिया लेकिन नाम ए हुसैन अमर हो गया और आज भी जब मुहर्रम का महीना आता है तो मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्मो के लोग अपनी श्रधांजलि पेश करते हैं और मुसलमान तो यह ग़म ऐसा मनाता है जैसी आज ही किसी ने इमाम को शहीद किया है. १० मुहर्रम के बाद अगला महीने २० सफ़र को मुसलमान इमाम हुसैन का चालिस्वां मनाते हैं और एक बार फिर उनकी शहादत और मकसद ए शहादत को याद करते हैं. कल २० सफ़र है और हम सबके साथी ब्लोगर जीशान जैदी साहब ने अपना एक लेख़ इमाम हुसैन (ए.स) पे भेजा था , जिसे सही अवसर पा के आज पेश कर रहा हूँ.
आशा है आप सब भी इसको पढके तारीख इंसानियत के उस बादशाह को याद करेंगे जिसने ज़ुल्म और आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हुई अपनी शहादत दी.
जिसने यह साफ़ साफ़ एलान कर दिया कि अगर कोई इंसान जो खुद को मुसलमान कहता है और बेगुनाह पे ज़ुल्म भी करता है तो उसके साथ रहने और उसका साथ देने से बेहतर है कि किसी अमन पसंद ग़ैर मुसलमान इंसानों के साथ रहो. इसके साथ ही जैसा की रवायतों मे मिलता है की हिन्द से एक ब्राह्मण जिनका नाम रहिब दत्त था इमाम हुसैन की तरफ से याजीदियों से लड़े थे.
इमाम हुसैन (अ.स) के बारे मैं श्रीमती सरोजिनी नायडू ने कहा : मै मुसलमानों को इसलिए मुबारकबाद पेश करना चाहती हूँ की यह उनकी खुशकिस्मती है की उनके बीच दुन्या की सब से बड़ी हस्ती इमाम हुसैन (अ:स) पैदा हुए जो संपूर्ण रूप से दुन्या भर के तमाम जाती और समूह के दिलों पर राज किया और करता है! और रबिन्द्र नाथ टैगौर कहते हैं कि : इन्साफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की ज़रुरत नहीं होती है! कुर्बानियां देकर भी फ़तह (जीत) हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया! पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा : इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है, और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है! और डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी कहा : इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक मुल्क या कौम तक सिमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में भाईचारे का एक असीमित राज्य है! ..एस.एम.मासूम
पेश ए खिदमत है अमन का पैग़ाम कि इक्तालिस्वीं पेशकश जीशान जैदी ….
दोपहर का वक्त। चिलचिलाती धूप का आलम। ऐसे में एक छोटा सा काफिला रेगिस्तान से होकर गुजर रहा है। कोई कहता है कि यह काफिला मौत की तरफ बढ़ रहा है। उसके बाद भी किसी फर्द के चेहरे पर घबराहट और खौफ का दूर दूर तक पता नहीं। बल्कि सभी के चेहरों पर एक पुरवकार मुस्कुराहट है। फिर ये लोग देखते हैं कि सामने से बहुत बड़ी फ़ौज चली आ रही है। पूरी फ़ौज प्यास से तड़प रही है। सभी की ज़बानें बाहर निकली हुई हैं। इस छोटे से काफिले का सरदार हुक्म देता है कि फ़ौज को पानी से सैराब कर दिया जाये। काफिला अपने पानी का पूरा जखीरा फ़ौज पर खर्च कर देता है, जबकि उस काफिले में छोटे छोटे बच्चे, बूढ़े, औरतें सभी शामिल हैं।
फ़ौज वाले बहुत जल्द उस काफिले का यह एहसान भूल जाता है और काफिले को घेरकर ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ काफिले के छोटे बच्चे प्यास से तड़पते हुए एक बड़ी फ़ौज का मुकाबला करते हैं, बहादुरी के तेवर दिखाते हुए जंग करते हैं और शहीद हो जाते हैं।
उस छोटे से काफिले का सरदार इन्सानियत का सबसे बड़ा अलमबरदार था जो पैगम्बर मोहम्मद (स.) का नवासा था और जिसका नाम था हुसैन इब्ने अली अलैहिस्सलाम ।
उनके खिलाफ फ़ौज खड़ी करने वाला दुनिया के जालिमों का सरदार यजीद था। हुसैन इब्ने अली (अ.) ने जुल्म के तरकश के हर तीर को अपने सब्र की तलवार से काट दिया। अपना सर कटाकर बातिल के सर को झुकने पर मजबूर कर दिया। खुद शहादत का जाम पीकर जुल्म की सरकशियों को हमेशा के लिए कुचल दिया और दुनिया को ये दिखा दिया के बड़े से बड़े दुश्मन का मुकाबला किस तरह हिम्मत और सब्र के बल पर किया जा सकता है। हुसैन (अ.) की कुर्बानियों का मकसद समझकर हम आज के मुश्किल हालात का सामना पूरी हिम्मत के साथ कर सकते हैं।
आज पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है। कुछ मुल्क जो अपने अन्दर सारी दुनिया की ताकत समेट लेना चाहते हैं। और उनके मुकाबले में दूसरी तरफ अनेक गरीब मुल्क हैं जहाँ लोग जिंदगी की बुनियादी जरूरतों रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं। यहां तक कि उन्हें ताजी हवा और साफ पानी भी मयस्सर नहीं है। चन्द ताकतवर मुल्क इन गरीब मुल्कों पर अपनी दादागिरी चमकाना चाहते हैं। यहां के ज़खीरों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहते हैं। अपनी बात न मानने पर इन गरीब मुल्कों को सबक सिखाने की धमकी देते हैं। इनके लिए पेट्रोल इन्सानी खून से ज्यादा कीमती है। ये अपने बनाये हथियारों के टेस्ट के लिए हरे भरे जंगलों को बरबाद कर रहे हैं। अपनी फैक्ट्रियों से निकला कचरा ठिकाने लगाने के लिए गरीब मुल्कों को कूड़ेदान बना रहे हैं।
इन ताकतवर लेकिन जालिम मुल्कों से मुकाबले के लिए आज जरूरत है हुसैनी लश्कर की, और उसकी कुर्बानियों की। आज हुसैन (अ.) के बताये सब्र और हिम्मत के रास्ते पर चलकर हम ताकतवर मुल्कों को झुकने पर मजबूर कर सकते हैं। उसके लिए जरूरत है अपने मकसद को हासिल करने के लिए लगन की, दिन रात की मेहनत की और सब्र का दामन हमेशा थामे रहकर काम करने की। कभी जापान अमेरिका के एटमी हमलों से थर्रा उठा था। उस मुल्क को लगभग तबाह और बरबाद कर दिया गया था। आज वही छोटा सा मुल्क अमेरिका को बराबरी की टक्कर दे रहा है। इसकी वजह सिर्फ एक है कि वहां के बाशिंदों ने सब्र और हिम्मत के साथ कड़ी मेहनत की। दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा। परोक्ष रूप से उन्होंने हुसैन (अ.) के पैगाम पर अमल किया और आखिरकार पूरी दुनिया को अपनी टेक्नालाजी के सामने झुकने पर मजबूर कर दिया।
यकीनन हुसैन (अ.) ने अपने बहत्तर साथियों के साथ सब्र और हिम्मत की वह मिसाल पेश की कि ताकयामत कोई दूसरा उसके बराबर नहीं पहुंच सकेगा। छोटे छोटे बच्चों ने भी तीन दिन की भूख और प्यास के बाद शुजाअत के वह जौहर दिखाये कि यजीदी लश्कर अनेकों बार मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ।
क्या क्या मिसालें पेश की जायें। हजरत अब्बास (अ.) की खैमे तक पानी पहुंचाने की कोशिश, जबकि उनके दोनों बाजू कट चुके थे। बूढ़े बाप का जवान बेटे के सीने से बरछी निकालना, छह महीने के बच्चे का होठों पर ज़बान फेरकर प्यास की शिद्दत दिखलाना और फिर गले पर तीर खाना। छोटी सी बच्ची के गालों पर तमांचे। एक बीमार का हथकड़ियां और बेड़ियों में जकड़े हुए करबला से शाम तक का मीलों लम्बा सफर। करबला के मैदान में जुल्म ने सारी हदें तोड़ दी थीं। लेकिन हुसैन (अ.) के सब्र ने दुनिया के सबसे बड़े जुल्म को हमेशा के लिए फना कर दिया। यजीद और उसकी फौज हमेशा के लिए ज़लील व ख्वार हो गयी। दीन हमेशा के लिए बाकी रह गया और दीन को मिटाने की कोशिश करने वाले खुद मिट गये।
…जीशान जैदी
तुम मिटे , लेकिन तुम्हें मिटने ना देंगे एय हुसैन
वोह तुम्हारा काम था , और यह हमारा काम है
वोह तुम्हारा काम था , और यह हमारा काम है
..राही मासूम रज़ा
अवश्य पढ़ें - हुसैन और भारत विश्वनाथ प्रसाद माथुर * लखनवी मुहर्रम , १३८३ हिजरी
- नोट: हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) इमाम हुसैन (ए.स ) के नाना थे.
- हिलती है ज़मीन , रोता है फलक : सौज : ज्योति बावरी
- अर्चना चावजी की आवाज़ आवाज़ मैं कर्बला मैं क्या हुआ था सुनें