जी हाँ यह है मेरा परिवार. हम रोजाना कोई ना कोई लेख लिखते हैं, दूसरों को पढ़ते हैं, नाराज़ भी हो जाते हैं, कभी झगड़ भी जाते हैं आखिर है...
जी हाँ यह है मेरा परिवार. हम रोजाना कोई ना कोई लेख लिखते हैं, दूसरों को पढ़ते हैं, नाराज़ भी हो जाते हैं, कभी झगड़ भी जाते हैं आखिर है तो यह अपना परिवार?
कैसे अपने घर मैं कोई नरम मिज़ाज कोई ज़रा गरम मिज़ाज होता है , लेकिन मिल जुल के रहते हैं. कल सतीश सक्सेना जी कि पोस्ट देखी, सच कहूँ बहुत तकलीफ हुई पढके. तकलीफ इस लिए नहीं हुई सतीश जी कि चिंता ग़लत है बल्कि इसलिए हुई कि क्या अब इस हिंदी ब्लॉगजगत के इस छोटे से परिवार मैं, कोर्ट कचहरी भी होगी?
मैं इस मशविरे से पूरी तरह से सहमत हूँ कि वो सभी ब्लोगर जो पुराने तजुर्बे रखते हैं, मिल के इन अनामी बेनामी ब्लोग्स के वजूद के बारे मैं या किसी ब्लोगर को नाम से ज़लील करने वाली पोस्ट के बारे मैं सोंचें लेकिन इस तरह सोंचें जैसे अपने इस परिवार का अंदरूनी मसला है और हल हम सभी को मिल के निकलना है.
मुझे नहीं लगता कि कोई ब्लोगर यदि महीने मैं १०-२० पोस्ट लिखता है और जाने अनजाने या कभी किसी जाएज़ या नाजाएज़ कारणों से किसी के खिलाफ गुस्से मैं कुछ कह रहा या कह गया है , तो वो समझाने पे ना माने यदि सब मिल के समझाएं?
सतीश जी कि बात सही है कि लोग मज़ा लेने लगते हैं इन झगड़ों का, कोई पुरानी रंजिश निकालने लगता है, कोई अनामी , बेनामी या कभी कभी नामी (अपने नाम ही नामसे) बन कि एक दूसरे मैं सुलह कि जगह शक पैदा करवाने लगता है. ऐसा करने ठीक नहीं.
मेरा भी एक सुझाव है :
मैंने बहुत से समूह ब्लॉग देखे हैं. एक ऐसा ही समूह ब्लॉग बना लिया जाए जिसे कम से कम ११-१२ पुराने स्थापित ब्लोगर जो रोजाना ब्लॉगजगत को समय देते हैं, मिल के चलाएँ.
वहाँ सभी अनामी बेनामी ब्लॉग कि लिंक डाल दें, जिस से लोग गुमराह ना हो सकें. जहाँ भी कोई आपत्ति जनक पोस्ट दिखे, उसपे चर्चा शुरू कर दें और उस ब्लोगर को जिसने पोस्ट डाली है, एक मत हो जाने पे समझाएँ और उसकी सुनें भी. कारणों को देखें और एक परिवार कि तरह सुलह समझोता करवा दें. यह तो नहीं कह सकता यह कितना कामयाब होगा यह तरीका लेकिन कुछ फर्क तो अवश्य पड़ेगा.
हाँ विचारों कि असहमति पे नाराज़ ना हों. हर ब्लोगर अपने ज्ञान और तजुर्बे को आखिरी सच मान के ना चले. अपनी बात रखें उसपे चर्चा करे लेकिन एक दूसरे के विचारों कि इज्ज़त करते हुए चर्चा हो.
हिंदी ब्लॉगजगत का बहुत अधिक तजुर्बा ना होने के कारण मैं इस विषय पे इस से अधिक कुछ नहीं कह सकता लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ. बहुत कम समय मैं इतना अधिक प्यार ब्लॉगजगत से पाने के बाद सभी अपने से लगते हैं और मुझे यकीन है कि आप को भी सब एक परिवार जैसे लगते होंगे.
ऐसे मैं लाता हया जी के अलफ़ाज़ याद आते हैं कि...
"हैं जिनके पास अपने तो वो अपनों से झगड़ते हैं
नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते हैं.
यदि अब भी अपने इस छोटे से परिवार के लोगों के लिए दिल मैं प्रेम ना जगा हो तो अंजना गुडिया जी के इन शब्दों को समझने कि कोशिश करें.
नाराज़ हो जाना, झगड़ लेना,
मेरी गलती पे चाहे जितना डांट देना,
पर अगली बार मिलो जो मुझसे,
बस एक बार दिल से मुस्कुरा देना.
नफरत, कड़वाहट, खुदगर्ज़ी नहीं मंज़ूर मुझे,
इन में से किसी की भी ना चलने देना.
क्या अब भी अधिक असर नहीं हुआ? तो चलिए हमारे परिवार से मिलिए और अर्चना जी कि आवाज़ के साथ अंजना जी के इन्ही शब्दों को सुनें.
मुझे यकीन है कि इस विडियो को देखने के बाद इस छोटे से ब्लॉगजगत परिवार के लिए सबके दिलों मैं मुहब्बत अवश्य पैदा हुई होगी.
कैसे अपने घर मैं कोई नरम मिज़ाज कोई ज़रा गरम मिज़ाज होता है , लेकिन मिल जुल के रहते हैं. कल सतीश सक्सेना जी कि पोस्ट देखी, सच कहूँ बहुत तकलीफ हुई पढके. तकलीफ इस लिए नहीं हुई सतीश जी कि चिंता ग़लत है बल्कि इसलिए हुई कि क्या अब इस हिंदी ब्लॉगजगत के इस छोटे से परिवार मैं, कोर्ट कचहरी भी होगी?
मैं इस मशविरे से पूरी तरह से सहमत हूँ कि वो सभी ब्लोगर जो पुराने तजुर्बे रखते हैं, मिल के इन अनामी बेनामी ब्लोग्स के वजूद के बारे मैं या किसी ब्लोगर को नाम से ज़लील करने वाली पोस्ट के बारे मैं सोंचें लेकिन इस तरह सोंचें जैसे अपने इस परिवार का अंदरूनी मसला है और हल हम सभी को मिल के निकलना है.
मुझे नहीं लगता कि कोई ब्लोगर यदि महीने मैं १०-२० पोस्ट लिखता है और जाने अनजाने या कभी किसी जाएज़ या नाजाएज़ कारणों से किसी के खिलाफ गुस्से मैं कुछ कह रहा या कह गया है , तो वो समझाने पे ना माने यदि सब मिल के समझाएं?
सतीश जी कि बात सही है कि लोग मज़ा लेने लगते हैं इन झगड़ों का, कोई पुरानी रंजिश निकालने लगता है, कोई अनामी , बेनामी या कभी कभी नामी (अपने नाम ही नामसे) बन कि एक दूसरे मैं सुलह कि जगह शक पैदा करवाने लगता है. ऐसा करने ठीक नहीं.
मेरा भी एक सुझाव है :
मैंने बहुत से समूह ब्लॉग देखे हैं. एक ऐसा ही समूह ब्लॉग बना लिया जाए जिसे कम से कम ११-१२ पुराने स्थापित ब्लोगर जो रोजाना ब्लॉगजगत को समय देते हैं, मिल के चलाएँ.
वहाँ सभी अनामी बेनामी ब्लॉग कि लिंक डाल दें, जिस से लोग गुमराह ना हो सकें. जहाँ भी कोई आपत्ति जनक पोस्ट दिखे, उसपे चर्चा शुरू कर दें और उस ब्लोगर को जिसने पोस्ट डाली है, एक मत हो जाने पे समझाएँ और उसकी सुनें भी. कारणों को देखें और एक परिवार कि तरह सुलह समझोता करवा दें. यह तो नहीं कह सकता यह कितना कामयाब होगा यह तरीका लेकिन कुछ फर्क तो अवश्य पड़ेगा.
हाँ विचारों कि असहमति पे नाराज़ ना हों. हर ब्लोगर अपने ज्ञान और तजुर्बे को आखिरी सच मान के ना चले. अपनी बात रखें उसपे चर्चा करे लेकिन एक दूसरे के विचारों कि इज्ज़त करते हुए चर्चा हो.
हिंदी ब्लॉगजगत का बहुत अधिक तजुर्बा ना होने के कारण मैं इस विषय पे इस से अधिक कुछ नहीं कह सकता लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ. बहुत कम समय मैं इतना अधिक प्यार ब्लॉगजगत से पाने के बाद सभी अपने से लगते हैं और मुझे यकीन है कि आप को भी सब एक परिवार जैसे लगते होंगे.
ऐसे मैं लाता हया जी के अलफ़ाज़ याद आते हैं कि...
"हैं जिनके पास अपने तो वो अपनों से झगड़ते हैं
नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते हैं.
यदि अब भी अपने इस छोटे से परिवार के लोगों के लिए दिल मैं प्रेम ना जगा हो तो अंजना गुडिया जी के इन शब्दों को समझने कि कोशिश करें.
नाराज़ हो जाना, झगड़ लेना,
मेरी गलती पे चाहे जितना डांट देना,
पर अगली बार मिलो जो मुझसे,
बस एक बार दिल से मुस्कुरा देना.
नफरत, कड़वाहट, खुदगर्ज़ी नहीं मंज़ूर मुझे,
इन में से किसी की भी ना चलने देना.
क्या अब भी अधिक असर नहीं हुआ? तो चलिए हमारे परिवार से मिलिए और अर्चना जी कि आवाज़ के साथ अंजना जी के इन्ही शब्दों को सुनें.
मुझे यकीन है कि इस विडियो को देखने के बाद इस छोटे से ब्लॉगजगत परिवार के लिए सबके दिलों मैं मुहब्बत अवश्य पैदा हुई होगी.