"अमन और शांति " समाज मैं केवल उपदेशों से लाना संभव नहीं इसके लिए वास्तविक दुनिया से उदाहरण की आवश्यकता भी होती है नफरत क्य...
"अमन और शांति " समाज मैं केवल उपदेशों से लाना संभव नहीं इसके लिए वास्तविक दुनिया से उदाहरण की आवश्यकता भी होती है नफरत क्यों फैलती है और किन कारणों से फैलती है इस्पे विचार की भी आवश्यकता हुआ करती है . बहुत से ब्लोगर भाई बहनों ने अपने अमन के पैग़ाम को भेजे लेख और कविताओं मैं इस बात का ज़िक्र किया और उदाहरण पेश किये जिनमें खुशदीप जी ,.संगीता पुरी जी, वीणा श्रीवास्तव जी , अलबेला खत्री जी इत्यादि काबिल ए ज़िक्र हैं.
यकीनन इसमें मनगढ़न्त और सुनीसुनाई कहानी का कोई स्थान नहीं है, क्योंकि मनगढ़न्त कहानी अधिकतर स्वं स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लिखी जाती रही है.
यह सवाल अक्सर मुझसे पुछा गया कि आखिर यह "अमन का पैग़ाम" किसके लिए? इसका जवाब सीधा सा है कि अमन का पैग़ाम उनके लिए है जो समाज मैं अशांति फैलाते हैं. और इन पैगामों को उसी प्लेटफार्म से देना चाहिए जहां से नफरत फैलाई जा रही हो. अभी कुछ दिनों पहले जब मैं हिंदी ब्लॉगजगत मैं नया नया था धर्म के नाम पे बहुत कुछ नफरत फैलाई गयी और इन नफरतों का असर आज तक बाकी है. अधिकतर ब्लोगर ने अपने लेख मैं भी इस बात का ज़िक्र किया है कि धर्म कि आड़ ले कर ही सबसे अधिक नफरत फैलाई जाती है.
सबसे पहले तो यह अमन का पैग़ाम उनके लिए है जो ब्लॉगजगत मैं धर्मो के अंतर को विषय बना के दो इंसानों के बीच नफरत फैलाते हैं. यह लोग इसी समाज मैं रहते हैं और इस समाज मैं भी बखूबी इस नफरत फैलाने के काम को अंजाम देते हैं.
अमन का पैग़ाम उस बिगड़े बेटे के लिए भी है जो रात देर से घर आके घर कि शांति भंग करता है, उस मर्द के लिए भी है जो रात मैं पी के बीवी पे ज़ुल्म कर के घर कि शांति भंग करता है, यह उस सास के लिए भी है जो बहु पे ज़ुल्म करती है, यह उस पदाधिकारी के लिए भी है जो रिश्वत ले के काम करता है और समाज कि शांति भंग करता है..
क्या आप को नहीं लगता कि यह सभी हममें से ही हैं? यदि हाँ तो अमन का पैग़ाम क्या कहीं बाहर जा के दिया जाए?
जब मैं नया नया था इस ब्लॉगजगत मैं तो उस समय मैं न तो किसी ब्लोगेर को नाम से जानता था न उसकी ज़हनियत से. जिसकी बात सही लगी समर्थन दे दिया जिसकी बात ग़लत लगी तो अपनी बात सामने रख दी. होना भी यही चाहिए.
मुझे अधिकतर ब्लोगेर का समर्थन मिला और आज तक मिल रहा है. जिन ब्लोगर का समर्थन मिल रहा है उनको देख आप सभी समझ सकते हैं की वो सभी किसी गुटबाजी का का शिकार नहीं. आम को आम और अंगूर को अंगूर ही समझते हैं. क्योंकि इस बात का कोई मतलब नहीं है की ब्लोगर आम की तारीफ करे और आप उसको अंगूर का शौक़ीन केवल इसलिए बता दें की उसके गाँव मैं अंगूर बहुत होते हैं.
अधिकतर ब्लोगर ऐसे थे जिनको नफरत की दुर्गन्ध भरे माहौल मैं "अमन का पैग़ाम एक सुगंध जैसा लगा और वो सराहना करने लगे.
चूंकि पैग़ाम अमन का था खुल के बगावत इसके खिलाफ बहुतों को उनकी सेहत के लिए सही नहीं लगा, तो उन्होंने दुसरे तरीके निकाल लिए. सबसे पहला हथियार था मेरे लिये दूसरों के दिल मैं शक और नफरत पैदा करना. किसी ने कहा आप अपनी तस्वीर लगा लें वरना आप कौन हैं पता नहीं लगता. एक सवाल मेरे दिल मैं आया कि मैं जो कह रहा हूँ वो देखो , वही समझो और उसी पे टिप्पणी करो. मेरी शक्सियत या मेरे धर्म से उनका क्या लेना देना?
यहे काम बहुत से टिप्पणी करने वाले भी किया करते हैं, टिप्पणी मैं बात होनी चाहिए लेख कि और बात करते हैं व्यक्ति विशेष कि. ऐसा करने वाले स्वं यह बता देते हैं उनका मकसद समाज मैं अशांति फैलाना है.
इसी प्रकार से कुछ ने शक की बीमारी के कारण यह कहना शुरू किया " आप भी दूसरों जैसे हो जाएंगे" “आप जनाब एक्स वाई ज़ेड के आदमी हैं”, कोई कहता "आप का नया रूप पसंद आया" कोई कहता आपका ब्लॉग धार्मिक है इस कारण हम नहीं आ सकते कोई पूछता "भाई आप क्या पैग़म्बर हैं?" कोई कहता कोई एक मात्र आप ही तो नहीं है झंडेबरदार!!.
कुछ ने कहा अरे आप कहां लग गए अमन और शांति के चक्कर मैं, मुन्नी बदनाम हुई का मज़ा लें .यहाँ जब आओ अमन और शांति की बात होती है. मज़ा तो वहां आता है जहाँ इश्क की बात हो, झगड़ों की बात हो, कुछ चटपटा ,मिले पढने को.
अलग अलग शब्दों के इस्तेमाल के साथ मतलब सबका साफ़ साफ़ एक ही था की आप का यह "अमन का पैग़ाम" नहीं चाहिए.
मैं दिल ही दिल मैं सोंचता क्या यह लोग मानसिक रूप से बीमार हैं? या किसी शक के शिकार हैं? क्या "अमन और शांति " के भी कोई खिलाफ हो सकता है? यह बात मेरी समझ मैं नहीं आती थी.
कुछ दिनों पहले मैंने एक ब्लोगेर "शेखचिल्ली के बाप" की टिप्पणी पढी "अमन के पैग़ाम" से धुंआ उठता देखा तो चला आया” मुझे आश्चर्य हुआ की यह क्या कह रहे हैं. पहले खुद की पोस्ट देखी, फिर टिप्पणी पढी , सब कुछ ठीक लगा , तो ब्लॉगजगत मैं ढूँढने लगा और उस समय मुझे समझ मैं पूरी तरह आ गया की कुछ ब्लोगर की पुरानी जोड़ तोड़, प्रेम और नफरत ,पसंद और न पसंद या कह लें "नफसा नफ्सी" का असर इस "अमन का पैग़ाम" पे पड़ रहा है.
जब शक पैदा करना उनका काम ना आया तो उनमें से कुछ दोस्त बन गए. और दोस्त बन के कोशिश करने लगे कि "अमन के पैग़ाम ब्लॉग पे ही झगडे हो जाएं. खुद तो कुछ ना कहते हाँ मुझे बताते देखो उसकी टिप्पणी ग़लत है, उसको भगा दो, देखो उस का लेख पेश ना करना उनका नाम खराब है.
मैं सोंचता कि यदि कोई टिप्पणी ग़लत है आप भी तो वहां कहें कि ग़लत हैं, आप तो बुज़ुर्ग ब्लोगर हैं मैं कहां नया नया अभी लोगों को ठीक से जान भी नहीं सका हूँ.
उनके ऐसा करने का एक ही कारण मैं समझ सका कि मैं भिड जाऊं किसी भी ब्लोगर से और अमन के पैग़ाम कि शांति भंग हो जाए.
सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि यह ब्लोगर स्वम अपने ब्लॉग पे तो उन सभी की टिप्पणी स्वीकार करते हैं और मुझसे कहते हैं कि उनकी टिप्पणी हटा दो या जवाब दो.
मैं उनको खूबसूरती से टाल जाता और जब उनको लगा कि उनका हथियार दोस्त बन के पीठ पे वार करने वाला काम नहीं करेगा तो खुल के मैदान मैं आ गए और इस बार उनका हथिआर था गुमराह करो लोगों को और उसके लिए सहारा लो गुटबाजी का. यह कुछ ही लोग हैं लेकिन एक मछली भी सारे तालाब को गन्दा कर सकती है. और यही वो मछलियाँ भी हैं जिनके कारण ब्लॉगजगत मैं असंतुलन बना रहता है. मैं नाम लेना उचित नहीं समझता क्योंकि मैं किसी इंसान की बेईज्ज़ती करने की जगह उसमें मौजूद बुराई को दूर करने मैं विश्वास रखता हूँ.
सवाल उठता है कि ..
क्या अपने आपस के झगडे , पसंद या न पसंद को किसी भी दुसरे के ब्लॉग से जोड़ के देखना सही है? या केवल शक के चलते किसी के दिये शांति सन्देश के खिलाफ बोलना या दूसरों को भड़काना क्या सही है? क्या धर्म के अंतर को "अमन के पैग़ाम” के खिलाफ भड़काने के लिए इस्तेमाल करना सही है? जबकि वो यह भी कहते हैं कि अमन के पैग़ाम ब्लॉग से उनको कोई शिकायत नहीं.
कहीं यह वो लोग तो नहीं जो नफरत की दुर्गंध से अभ्यस्त हैं और अब उनको "अमन का पैग़ाम की सुगंध असह्य लग रही है.
केवल राम जी ने एक सवाल उठाया खुद के लेख मैं "आज इंसानों के बीच फासले ही नहीं सम्बन्ध खाइयों में परिवर्तित हो गए हैं , यहाँ पर धर्म के नाम पर , जाति के नाम पर , भाषा के नाम पर , क्षेत्र के नाम पर न जाने कितने आधारों पर इंसान को बाँटने का प्रयास किया जाता है,.. एक दुसरे से अलग किया जाता है . मंदिर -मस्जिद में भेद किया जाता है , चर्च - गुरुद्वारे में भेद किया जाता है ...आखिर क्या आधार है इन भेदों का ?
लेकिन इस बात का जवाब इन नफरत के सौदागरों के पास मौजूद नहीं.
मैं यहाँ उन लोगों की बात नहीं कर रहा जिन्होंने हिन्दुस्तान को धर्म के नाम पे टुकड़ों मैं बाँटना स्वीकार कर लिया है. क्यों की उनकी सोंच तो साफ़ है.
बल्कि उन सफ़ेद पोशों की बात कर रहा हूँ जो सामने से तो अमन और शांति के खिलाफ नहीं बोलते लेकिन पीछे से इस कोशिश मैं लगे रहते हैं कि कैसे इस "अमन के पैग़ाम: को जंग का मैदान बना दें?
आखिर क्यों?
इसके विपरीत अमन के पैग़ाम को इतना अधिक सहयोग ब्लॉगजगत ने इतने कम समय मैं दिया , की जिसका शुक्रिया जितना अदा किया जाए कम है. मैं उन सभी ब्लोगर का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने अमन का पैग़ाम से समाज मैं अमन और शांति के लिए सन्देश दिया और यह साबित कर दिया कि उनके लिए इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है.. यदि आप अभी तक के पेश किये उन 36 लेखों को देखें तो आप पाएंगे "समाज मैं अमन और शांति के हर एक पहलू पे ब्लोगर्स ने अपनी बातें, तजुर्बे, विचार प्रकट किये हैं. उनको पढने वाले तो रोजाना २५० से ९०० तक रहे लेकिन उनकी सराहना करने वाले और उत्साह बढ़ाने वाले कम ही मिले.
इसका कारण एक तो विषय का चटपटा ना होना रहा और दूसरे गुटबाजी ने इतने अच्छे लेखों के बावजूद उत्साह बढ़ाने वालों को कम कर दिया.
अब ज़रा ध्यान से इमानदारी से लेख या कविता पे टिप्पणी करने वालों को देखें तो आप पाएंगे यह वो लोग हैं जो किसी गुटबाजी का शिकार नहीं और इनका धर्म केवल इंसानियत है. इनमें अधिकतर महिलाएं है क्यों कि अक्सर महिलाएं गुटबाजी का शिकार नहीं बनती हैं. (यहाँ मैं उनकी बात कर रहा हूँ जो गुटबाजी के कारण अच्छे लेखको का उत्साह नहीं बढ़ाने आते.)
मैं खुशदीप सहगल साहब का बहुत ही शुक्रगुजार हूँ जो व्यस्तता के कारण कम ही आ पाते हैं लेकिन अपने नव वर्ष २०११ की १२ कामनाओं मैं से एक कामना यह भी की " मासूम भाई का अमन का पैगाम पूरे देश में फैलेगा.." क्या खुशदीप भाई के लिए दिन मैं इज्ज़त नहीं पैदा होगी ?
यह एक सन्देश है ब्लॉगजगत के लिए कि देखो जिनको समाज मैं अमन और शांति की कोशिश करने वाले चाहिए वोह व्यस्त होने के बाद भी अपने ब्लॉग से सहयोग देता है और जिनको समाज मैं अमन और शांति नहीं चाहिए उनको आप कितने भी पैग़ाम दे दें, कितने भी शांति के सन्देश दे दें, उनपे कोई असर नहीं पड़ता वो तो मस्त हैं अपनी दुनिया मैं ,जहाँ चाटुकारी और झूटी शान के साथ अपने से अलग धर्म के लोगों के लिए दिलों मैं नफरत भरी है.. यह ऐसे लेखको का उत्साह ना बढ़ाने के हज़ार झूठे बहाने तलाश लेंगे लेकिन आप लाख कोशिश करलें समाज मैं अमन और शांति कि बात करने वालों और इस राह मैं कोशिश करने वालों कि राह मैं कांटे बोना बंद नहीं करेंगे.
इनको यह बड़ी आसानी से दिखाई देना है देखो वो धर्म के नाम पे नफरत फैला रहा है उसके खिलाफ हो जाओ लेकिन यह नहीं दिखता कि देखो वो समाज मैं शांति कि बातें कर रहा है ,उसका साथ दो...
आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने...
जब यह बात साफ़ है की अमन के पैग़ाम ब्लॉग से किसी को शिकायत नहीं और यह भी तै है की अमन के पैग़ाम देने से किसी का कोई नुकसान भी नहीं.
तो यह सब साजिशें क्यों?
इस क्यों का जवाब मैं समझदार पाठकों पे छोड़ता हूँ और सभी से अनुरोश करता हूँ की "अमन का पैग़ाम" पे पेश हो रहे सभी लेखकों का उत्साह बढाएं और खुद भी लेख , कविताएँ ,ग़ज़ल समाज मैं अमन और शांति पे भेजें और इस काफिले को इतना बड़ा बना दें की नफरतों की सभी दीवारें टूट जाए.
यकीनन इसमें मनगढ़न्त और सुनीसुनाई कहानी का कोई स्थान नहीं है, क्योंकि मनगढ़न्त कहानी अधिकतर स्वं स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लिखी जाती रही है.
यह सवाल अक्सर मुझसे पुछा गया कि आखिर यह "अमन का पैग़ाम" किसके लिए? इसका जवाब सीधा सा है कि अमन का पैग़ाम उनके लिए है जो समाज मैं अशांति फैलाते हैं. और इन पैगामों को उसी प्लेटफार्म से देना चाहिए जहां से नफरत फैलाई जा रही हो. अभी कुछ दिनों पहले जब मैं हिंदी ब्लॉगजगत मैं नया नया था धर्म के नाम पे बहुत कुछ नफरत फैलाई गयी और इन नफरतों का असर आज तक बाकी है. अधिकतर ब्लोगर ने अपने लेख मैं भी इस बात का ज़िक्र किया है कि धर्म कि आड़ ले कर ही सबसे अधिक नफरत फैलाई जाती है.
सबसे पहले तो यह अमन का पैग़ाम उनके लिए है जो ब्लॉगजगत मैं धर्मो के अंतर को विषय बना के दो इंसानों के बीच नफरत फैलाते हैं. यह लोग इसी समाज मैं रहते हैं और इस समाज मैं भी बखूबी इस नफरत फैलाने के काम को अंजाम देते हैं.
अमन का पैग़ाम उस बिगड़े बेटे के लिए भी है जो रात देर से घर आके घर कि शांति भंग करता है, उस मर्द के लिए भी है जो रात मैं पी के बीवी पे ज़ुल्म कर के घर कि शांति भंग करता है, यह उस सास के लिए भी है जो बहु पे ज़ुल्म करती है, यह उस पदाधिकारी के लिए भी है जो रिश्वत ले के काम करता है और समाज कि शांति भंग करता है..
क्या आप को नहीं लगता कि यह सभी हममें से ही हैं? यदि हाँ तो अमन का पैग़ाम क्या कहीं बाहर जा के दिया जाए?
जब मैं नया नया था इस ब्लॉगजगत मैं तो उस समय मैं न तो किसी ब्लोगेर को नाम से जानता था न उसकी ज़हनियत से. जिसकी बात सही लगी समर्थन दे दिया जिसकी बात ग़लत लगी तो अपनी बात सामने रख दी. होना भी यही चाहिए.
मुझे अधिकतर ब्लोगेर का समर्थन मिला और आज तक मिल रहा है. जिन ब्लोगर का समर्थन मिल रहा है उनको देख आप सभी समझ सकते हैं की वो सभी किसी गुटबाजी का का शिकार नहीं. आम को आम और अंगूर को अंगूर ही समझते हैं. क्योंकि इस बात का कोई मतलब नहीं है की ब्लोगर आम की तारीफ करे और आप उसको अंगूर का शौक़ीन केवल इसलिए बता दें की उसके गाँव मैं अंगूर बहुत होते हैं.
अधिकतर ब्लोगर ऐसे थे जिनको नफरत की दुर्गन्ध भरे माहौल मैं "अमन का पैग़ाम एक सुगंध जैसा लगा और वो सराहना करने लगे.
चूंकि पैग़ाम अमन का था खुल के बगावत इसके खिलाफ बहुतों को उनकी सेहत के लिए सही नहीं लगा, तो उन्होंने दुसरे तरीके निकाल लिए. सबसे पहला हथियार था मेरे लिये दूसरों के दिल मैं शक और नफरत पैदा करना. किसी ने कहा आप अपनी तस्वीर लगा लें वरना आप कौन हैं पता नहीं लगता. एक सवाल मेरे दिल मैं आया कि मैं जो कह रहा हूँ वो देखो , वही समझो और उसी पे टिप्पणी करो. मेरी शक्सियत या मेरे धर्म से उनका क्या लेना देना?
यहे काम बहुत से टिप्पणी करने वाले भी किया करते हैं, टिप्पणी मैं बात होनी चाहिए लेख कि और बात करते हैं व्यक्ति विशेष कि. ऐसा करने वाले स्वं यह बता देते हैं उनका मकसद समाज मैं अशांति फैलाना है.
इसी प्रकार से कुछ ने शक की बीमारी के कारण यह कहना शुरू किया " आप भी दूसरों जैसे हो जाएंगे" “आप जनाब एक्स वाई ज़ेड के आदमी हैं”, कोई कहता "आप का नया रूप पसंद आया" कोई कहता आपका ब्लॉग धार्मिक है इस कारण हम नहीं आ सकते कोई पूछता "भाई आप क्या पैग़म्बर हैं?" कोई कहता कोई एक मात्र आप ही तो नहीं है झंडेबरदार!!.
कुछ ने कहा अरे आप कहां लग गए अमन और शांति के चक्कर मैं, मुन्नी बदनाम हुई का मज़ा लें .यहाँ जब आओ अमन और शांति की बात होती है. मज़ा तो वहां आता है जहाँ इश्क की बात हो, झगड़ों की बात हो, कुछ चटपटा ,मिले पढने को.
अलग अलग शब्दों के इस्तेमाल के साथ मतलब सबका साफ़ साफ़ एक ही था की आप का यह "अमन का पैग़ाम" नहीं चाहिए.
मैं दिल ही दिल मैं सोंचता क्या यह लोग मानसिक रूप से बीमार हैं? या किसी शक के शिकार हैं? क्या "अमन और शांति " के भी कोई खिलाफ हो सकता है? यह बात मेरी समझ मैं नहीं आती थी.
कुछ दिनों पहले मैंने एक ब्लोगेर "शेखचिल्ली के बाप" की टिप्पणी पढी "अमन के पैग़ाम" से धुंआ उठता देखा तो चला आया” मुझे आश्चर्य हुआ की यह क्या कह रहे हैं. पहले खुद की पोस्ट देखी, फिर टिप्पणी पढी , सब कुछ ठीक लगा , तो ब्लॉगजगत मैं ढूँढने लगा और उस समय मुझे समझ मैं पूरी तरह आ गया की कुछ ब्लोगर की पुरानी जोड़ तोड़, प्रेम और नफरत ,पसंद और न पसंद या कह लें "नफसा नफ्सी" का असर इस "अमन का पैग़ाम" पे पड़ रहा है.
जब शक पैदा करना उनका काम ना आया तो उनमें से कुछ दोस्त बन गए. और दोस्त बन के कोशिश करने लगे कि "अमन के पैग़ाम ब्लॉग पे ही झगडे हो जाएं. खुद तो कुछ ना कहते हाँ मुझे बताते देखो उसकी टिप्पणी ग़लत है, उसको भगा दो, देखो उस का लेख पेश ना करना उनका नाम खराब है.
मैं सोंचता कि यदि कोई टिप्पणी ग़लत है आप भी तो वहां कहें कि ग़लत हैं, आप तो बुज़ुर्ग ब्लोगर हैं मैं कहां नया नया अभी लोगों को ठीक से जान भी नहीं सका हूँ.
उनके ऐसा करने का एक ही कारण मैं समझ सका कि मैं भिड जाऊं किसी भी ब्लोगर से और अमन के पैग़ाम कि शांति भंग हो जाए.
सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि यह ब्लोगर स्वम अपने ब्लॉग पे तो उन सभी की टिप्पणी स्वीकार करते हैं और मुझसे कहते हैं कि उनकी टिप्पणी हटा दो या जवाब दो.
मैं उनको खूबसूरती से टाल जाता और जब उनको लगा कि उनका हथियार दोस्त बन के पीठ पे वार करने वाला काम नहीं करेगा तो खुल के मैदान मैं आ गए और इस बार उनका हथिआर था गुमराह करो लोगों को और उसके लिए सहारा लो गुटबाजी का. यह कुछ ही लोग हैं लेकिन एक मछली भी सारे तालाब को गन्दा कर सकती है. और यही वो मछलियाँ भी हैं जिनके कारण ब्लॉगजगत मैं असंतुलन बना रहता है. मैं नाम लेना उचित नहीं समझता क्योंकि मैं किसी इंसान की बेईज्ज़ती करने की जगह उसमें मौजूद बुराई को दूर करने मैं विश्वास रखता हूँ.
सवाल उठता है कि ..
क्या अपने आपस के झगडे , पसंद या न पसंद को किसी भी दुसरे के ब्लॉग से जोड़ के देखना सही है? या केवल शक के चलते किसी के दिये शांति सन्देश के खिलाफ बोलना या दूसरों को भड़काना क्या सही है? क्या धर्म के अंतर को "अमन के पैग़ाम” के खिलाफ भड़काने के लिए इस्तेमाल करना सही है? जबकि वो यह भी कहते हैं कि अमन के पैग़ाम ब्लॉग से उनको कोई शिकायत नहीं.
कहीं यह वो लोग तो नहीं जो नफरत की दुर्गंध से अभ्यस्त हैं और अब उनको "अमन का पैग़ाम की सुगंध असह्य लग रही है.
केवल राम जी ने एक सवाल उठाया खुद के लेख मैं "आज इंसानों के बीच फासले ही नहीं सम्बन्ध खाइयों में परिवर्तित हो गए हैं , यहाँ पर धर्म के नाम पर , जाति के नाम पर , भाषा के नाम पर , क्षेत्र के नाम पर न जाने कितने आधारों पर इंसान को बाँटने का प्रयास किया जाता है,.. एक दुसरे से अलग किया जाता है . मंदिर -मस्जिद में भेद किया जाता है , चर्च - गुरुद्वारे में भेद किया जाता है ...आखिर क्या आधार है इन भेदों का ?
लेकिन इस बात का जवाब इन नफरत के सौदागरों के पास मौजूद नहीं.
मैं यहाँ उन लोगों की बात नहीं कर रहा जिन्होंने हिन्दुस्तान को धर्म के नाम पे टुकड़ों मैं बाँटना स्वीकार कर लिया है. क्यों की उनकी सोंच तो साफ़ है.
बल्कि उन सफ़ेद पोशों की बात कर रहा हूँ जो सामने से तो अमन और शांति के खिलाफ नहीं बोलते लेकिन पीछे से इस कोशिश मैं लगे रहते हैं कि कैसे इस "अमन के पैग़ाम: को जंग का मैदान बना दें?
आखिर क्यों?
इसके विपरीत अमन के पैग़ाम को इतना अधिक सहयोग ब्लॉगजगत ने इतने कम समय मैं दिया , की जिसका शुक्रिया जितना अदा किया जाए कम है. मैं उन सभी ब्लोगर का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने अमन का पैग़ाम से समाज मैं अमन और शांति के लिए सन्देश दिया और यह साबित कर दिया कि उनके लिए इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है.. यदि आप अभी तक के पेश किये उन 36 लेखों को देखें तो आप पाएंगे "समाज मैं अमन और शांति के हर एक पहलू पे ब्लोगर्स ने अपनी बातें, तजुर्बे, विचार प्रकट किये हैं. उनको पढने वाले तो रोजाना २५० से ९०० तक रहे लेकिन उनकी सराहना करने वाले और उत्साह बढ़ाने वाले कम ही मिले.
इसका कारण एक तो विषय का चटपटा ना होना रहा और दूसरे गुटबाजी ने इतने अच्छे लेखों के बावजूद उत्साह बढ़ाने वालों को कम कर दिया.
अब ज़रा ध्यान से इमानदारी से लेख या कविता पे टिप्पणी करने वालों को देखें तो आप पाएंगे यह वो लोग हैं जो किसी गुटबाजी का शिकार नहीं और इनका धर्म केवल इंसानियत है. इनमें अधिकतर महिलाएं है क्यों कि अक्सर महिलाएं गुटबाजी का शिकार नहीं बनती हैं. (यहाँ मैं उनकी बात कर रहा हूँ जो गुटबाजी के कारण अच्छे लेखको का उत्साह नहीं बढ़ाने आते.)
मैं खुशदीप सहगल साहब का बहुत ही शुक्रगुजार हूँ जो व्यस्तता के कारण कम ही आ पाते हैं लेकिन अपने नव वर्ष २०११ की १२ कामनाओं मैं से एक कामना यह भी की " मासूम भाई का अमन का पैगाम पूरे देश में फैलेगा.." क्या खुशदीप भाई के लिए दिन मैं इज्ज़त नहीं पैदा होगी ?
यह एक सन्देश है ब्लॉगजगत के लिए कि देखो जिनको समाज मैं अमन और शांति की कोशिश करने वाले चाहिए वोह व्यस्त होने के बाद भी अपने ब्लॉग से सहयोग देता है और जिनको समाज मैं अमन और शांति नहीं चाहिए उनको आप कितने भी पैग़ाम दे दें, कितने भी शांति के सन्देश दे दें, उनपे कोई असर नहीं पड़ता वो तो मस्त हैं अपनी दुनिया मैं ,जहाँ चाटुकारी और झूटी शान के साथ अपने से अलग धर्म के लोगों के लिए दिलों मैं नफरत भरी है.. यह ऐसे लेखको का उत्साह ना बढ़ाने के हज़ार झूठे बहाने तलाश लेंगे लेकिन आप लाख कोशिश करलें समाज मैं अमन और शांति कि बात करने वालों और इस राह मैं कोशिश करने वालों कि राह मैं कांटे बोना बंद नहीं करेंगे.
इनको यह बड़ी आसानी से दिखाई देना है देखो वो धर्म के नाम पे नफरत फैला रहा है उसके खिलाफ हो जाओ लेकिन यह नहीं दिखता कि देखो वो समाज मैं शांति कि बातें कर रहा है ,उसका साथ दो...
आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने...
जब यह बात साफ़ है की अमन के पैग़ाम ब्लॉग से किसी को शिकायत नहीं और यह भी तै है की अमन के पैग़ाम देने से किसी का कोई नुकसान भी नहीं.
तो यह सब साजिशें क्यों?
इस क्यों का जवाब मैं समझदार पाठकों पे छोड़ता हूँ और सभी से अनुरोश करता हूँ की "अमन का पैग़ाम" पे पेश हो रहे सभी लेखकों का उत्साह बढाएं और खुद भी लेख , कविताएँ ,ग़ज़ल समाज मैं अमन और शांति पे भेजें और इस काफिले को इतना बड़ा बना दें की नफरतों की सभी दीवारें टूट जाए.
कैसा है ये जलजला क्यूँ है ये धुंआ धुंआ कब तक होगा शोर नफरत भरी साँसों का ...रश्मि प्रभा | प्रण कर लें हम सब इस देश के वासी हैं न हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बल्कि भारतवासी हैं। अंपने देश को अमन के दुशमनों से बचायें सारे मिल कर अमन का पैगाम फैलायें..निर्मला कपिला |