नमस्कार!! मै रचना बजाज… मूलत: मध्यप्रदेश की हूँ. अभी नासिक (महा.) मे रहती हूँ. परिवार के साथ ही देश और दुनिया मे कहाँ, क्या, क्यों औ...
रचना बजाज…मूलत: मध्यप्रदेश की हूँ. अभी नासिक (महा.) मे रहती हूँ.
परिवार के साथ ही देश और दुनिया मे कहाँ, क्या, क्यों और कैसे हो रहा है,थोडा सा समझने की कोशिश करती हूँ.अपनी सोच के साथ शब्दों की कसरत मुझे पसंद है सो कभी- कभी कुछ लिख भी लेती हूँ.साहित्य ज्यादा पढा नही है अत: मेरे लेखन की भाषा भी आमतौर पर बोल-चाल वाली आम भाषा ही होती है.जिस समय, जैसा भी सोच पाती हूँ और लिखने का मन करता है लिख देती हूँ.
कभी इस देश मे तो कभी उस देश मे, कभी इस शहर मे तो कभी उस शहर मे…एक धमाका और कई जाने तबाह हो जाती हैं..इस सत्ता ( या फिर अस्तित्व ??) की लडाई मे किसी की जीत नही होती लेकिन हर बार हारती सिर्फ मानवता है….पता नही किन परिस्थितियों की वजह से मानव इतना खूँखार और विद्रोही हो जाता है…
मुझे ये कहना है—
चलो चलें नव युग की ओर !!
चलो—–
चलो—-
चलो—
चलो–
चलो—
चलो—
नमस्कार!! मै परिवार के साथ ही देश और दुनिया मे कहाँ, क्या, क्यों और कैसे हो रहा है,थोडा सा समझने की कोशिश करती हूँ.अपनी सोच के साथ शब्दों की कसरत मुझे पसंद है सो कभी- कभी कुछ लिख भी लेती हूँ.साहित्य ज्यादा पढा नही है अत: मेरे लेखन की भाषा भी आमतौर पर बोल-चाल वाली आम भाषा ही होती है.जिस समय, जैसा भी सोच पाती हूँ और लिखने का मन करता है लिख देती हूँ.
कभी इस देश मे तो कभी उस देश मे, कभी इस शहर मे तो कभी उस शहर मे…एक धमाका और कई जाने तबाह हो जाती हैं..इस सत्ता ( या फिर अस्तित्व ??) की लडाई मे किसी की जीत नही होती लेकिन हर बार हारती सिर्फ मानवता है….पता नही किन परिस्थितियों की वजह से मानव इतना खूँखार और विद्रोही हो जाता है…
मुझे ये कहना है—
चलो चलें नव युग की ओर !!
माना, तुममे रोष बहुत है,
नये खून का जोश बहुत है!
गुस्से को अब छोडो भी तुम,
लक्ष्यों को अब मोडो भी तुम!
थामो नव जीवन की डोर!
नये खून का जोश बहुत है!
गुस्से को अब छोडो भी तुम,
लक्ष्यों को अब मोडो भी तुम!
थामो नव जीवन की डोर!
चलो—–
माना, तुमने बहुत है खोया,
क्षमता से कुछ कम ही पाया.
छूटा जो, वो सब पा लोगे,
सही राह पर अगर चलोगे.
देखो आई नई भोर!
क्षमता से कुछ कम ही पाया.
छूटा जो, वो सब पा लोगे,
सही राह पर अगर चलोगे.
देखो आई नई भोर!
चलो—-
कितने कष्टों को तुम सहते!
खुद को ही तुम छलते रहते.
क्यूँ जिल्लत का जीवन जीते?
अँधेरों मे तुम क्यूँ रहते?
देखो अब सूरज की ओर!
खुद को ही तुम छलते रहते.
क्यूँ जिल्लत का जीवन जीते?
अँधेरों मे तुम क्यूँ रहते?
देखो अब सूरज की ओर!
चलो—
हम जैसे, तुम भी आये हो,
तुम भी मनु के ही जाए हो!
हम जैसे अधिकार तुम्हारे,
तुम हो हम सबके ही प्यारे!
पकडो अब आशा का छोर!
तुम भी मनु के ही जाए हो!
हम जैसे अधिकार तुम्हारे,
तुम हो हम सबके ही प्यारे!
पकडो अब आशा का छोर!
चलो–
मानवता की साख को देखो,
खुद के अन्दर झाँक के देखो!
दुष्ट विचारों को तुम त्यागो,
गलती की तो माफी माँगो!!
क्यूँ डरते? जैसे हो चोर!
खुद के अन्दर झाँक के देखो!
दुष्ट विचारों को तुम त्यागो,
गलती की तो माफी माँगो!!
क्यूँ डरते? जैसे हो चोर!
चलो—
झगडों से क्या हासिल होगा?
मानव का ही खून बहेगा.
माँ की शीश को अब न झुकाओ,
शक्ति को मत व्यर्थ गवाँओ!
सही दिशा मे लगाओ जोर!
मानव का ही खून बहेगा.
माँ की शीश को अब न झुकाओ,
शक्ति को मत व्यर्थ गवाँओ!
सही दिशा मे लगाओ जोर!
चलो—
मित्रों के तुम गर्व बनो अब,
भाई का सम्बल बन जाओ!
पत्नी को उसका हक दे दो,
बच्चों को भी खिलौना लाओ!!
बन्द करो युद्धों का शोर!!
चलो चलें नव युग की ओर !!
भाई का सम्बल बन जाओ!
पत्नी को उसका हक दे दो,
बच्चों को भी खिलौना लाओ!!
बन्द करो युद्धों का शोर!!
चलो चलें नव युग की ओर !!
चलो चलें नव युग की ओर !!