पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें" की चौतीस्वीं वी पेशकश दीप पाण्डेय (विचार शून्य) अगर कोई आपसे कहे की...
दीप पाण्डेय (विचार शून्य)
अगर कोई आपसे कहे की अमन का पैगाम दो तो आप क्या करेंगे . आप अगर लेखक हैं तो एक शानदार लेख लिख देंगे. आपमें अगर कविता कहने की क्षमता है तो आप कविता लिखेंगे पर मेरे जैसा एक आम आदमी क्या कहेगा? सोचिये की एक आम आदमी किस तरह से अमन का पैगाम देगा और अगर देगा भी तो वो किसके लिए होगा?
मेरी समझ से एक आम आदमी जो दंगों और अशांति का सबसे ज्यादा मोल चुकाता है उसे किसी भी पैगाम या सन्देश की जरुरत ही नहीं है. मैंने अपने आस पास के आम लोगों में चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम कभी भी कट्टर दुश्मनी नहीं देखी है. एक आम आदमी नहीं चाहता की कभी भी उसके शहर में कोई दंगा या फसाद हो या किसी भी प्रकार की अशांति फैले क्योंकि इस प्रकार की चीजों की सबसे ज्यादा मार उसे ही झेलनी पड़ती है. एक आम आदमी दो वक्त चैन से रोटी खाना चाहता है.
देश में दंगे होते हैं, अमन चैन बिगड़ता है. आम आदमी मार खाता हैं और उसके बाद कुछ विद्वान लोग आकार उस आम आदमी को ही प्रेम, सौहार्द और भाईचारे से रहने की सीख देने लगाते हैं. कहा जाता है की सभी धर्म एक समान हैं. धर्मों में कोई अंतर नहीं है. ये लोग ढूंढ़ ढूंढ़ कर दो धर्मों की समानताएं खोजते हैं और यही होता है प्रेम का सन्देश या अमन का पैगाम.
मेरी सोच इससे थोड़ी भिन्न है. मैं सोचता हूँ की अगर हम आम आदमी को दो धर्मों की समानता दिखाने की जगह उनकी भिन्नता के दर्शन कराएँ और ये बताएं की ये एक दुसरे से भिन्न क्यों हैं तो क्या होगा?
वैसे आप ही बताएं की आम और खजूर भला एक कैसे हो सकते हैं? बेशक दोनों ही फल हैं. ईश्वर ने दोनों को इन्सान के जरिये धरती से पैदा किया है लेकिन दोनों के लिए अलग अलग जलवायु और जगह चुनी गयी है. आम भारत में पैदा होता है और खजूर अरब देशों में. एक गर्मियों का फल है तो दूसरा शीत ऋतू में ज्यादा उपयोग में लाया जाता है. आम जनता ये बातें समझती है. लड़ाई झगडा तो तब शुरू होता है जब खुद को पंडित समझने वाला एक व्यक्ति कहता है की आम फलों का राजा है और वहीँ कोई खुद को आलिम समझने वाला व्यक्ति खजूर को मानव जाति का उद्धारकर्ता फल बताने लगता है. एक और तीसरा व्यक्ति जो खुद को इनसे भी ज्यादा समझदार मानता है और वो कहता है की दोनों ही फल एक समान हैं.
बन गयी ना आम जनता घनचक्कर. लोगों ने आपने फायदे के लिए सत्य को छिपा लिया. सत्य क्या है? सत्य ये है की ना तो आम और ना ही खजूर एकमात्र उत्तम फल है और ना ही दोनों फल एकसमान हैं. इनकी अपनी अपनी खूबियाँ और कमियां हैं. होना ये चाहिए की जिसे आम पसंद हैं वो आम खाए पर खजूर पसंद करने वाले से घृणा ना करे और जिसे खजूर पसंद हैं वो आम के रसियाओं से बैर ना रखे . आम उत्पादक खजूर के आयात का विरोध ना करें और आयातित खजूर पसंद करने वाले उसकी गुठलियाँ बोने के लिए आम के बाग़ उजाड़ने का स्वप्न कभी ना देखें. सभी अपनी अपनी दुकाने सजाएँ और आम जनता जिसे पसंद करेगी अपना लेगी.
कुछ विद्वान लोग सोच रहे होंगे की धर्म जैसे गूढ़ विषय को ये पगला आम और खजूर में ही निबटा रहा है . धर्म तो बड़ा जटिल विषय है. ये इतनी सरलता से आम आदमी की समझ में आने वाला नहीं है. तो इस बारे में, मैं यही कहूँगा की अगर आपका धर्म आम आदमी के लिए जटिल है तो सच मानिये ईश्वर ने इसे आम आदमी के लिए बनाया ही नहीं है क्योंकि ईश्वर तो हमेशा ही यूजर फ्रेंडली चीजें ही रचते आये हैं.
चलिए एक क्षण के लिए मान लिया की आम आदमी को अमन के पैगाम की जरुरत नहीं है तो इसकी जरुरत भला किसे है? मेरी समझ से ये संदेशा दिया जाना चाहिए उन लोगों को जो ये मानते हैं की खजूर ही सर्वोत्तम फल है या फिर उन लोगों को जिन्हें हर बीमारी की जड़ें खजूर में ही दिखती हैं. एक आम आदमी के तौर पर मैंने तो हमेशा ही ईमानदारी से इस विषय पर प्रयास किया है पर विद्वान लोग एक आम आदमी की बात का विश्वास कैसे कर पाएंगे. इसलिए प्यार मोहब्बत की इस हरी भरी वसुंधरा पर निवास करने वाले आम भारतीय नागरिकों को द्वेस, वैमनस्य की धूल भरी आंधी से बचने का सन्देश देने वाले विद्वान लोगों से मैं ये प्रार्थना करना चाहूँगा की वो खुद ऐसी आंधी को देख कर रेत में मुंह ना छिपायें बल्कि सामने आकार इन शांति प्यार और भाईचारे के दुश्मनों का जमकर और खुलकर विरोध करें ताकि एक आम भारतीय अमन चैन और सकूँ से अपना जीवन व्यतीत कर सके.
…….दीप पाण्डेय (विचार शून्य)
पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें" की चौतीस्वीं वी पेशकश अगर कोई आपसे कहे की अमन का पैगाम दो तो आप क्या करेंगे . आप अगर लेखक हैं तो एक शानदार लेख लिख देंगे. आपमें अगर कविता कहने की क्षमता है तो आप कविता लिखेंगे पर मेरे जैसा एक आम आदमी क्या कहेगा? सोचिये की एक आम आदमी किस तरह से अमन का पैगाम देगा और अगर देगा भी तो वो किसके लिए होगा?
मेरी समझ से एक आम आदमी जो दंगों और अशांति का सबसे ज्यादा मोल चुकाता है उसे किसी भी पैगाम या सन्देश की जरुरत ही नहीं है. मैंने अपने आस पास के आम लोगों में चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम कभी भी कट्टर दुश्मनी नहीं देखी है. एक आम आदमी नहीं चाहता की कभी भी उसके शहर में कोई दंगा या फसाद हो या किसी भी प्रकार की अशांति फैले क्योंकि इस प्रकार की चीजों की सबसे ज्यादा मार उसे ही झेलनी पड़ती है. एक आम आदमी दो वक्त चैन से रोटी खाना चाहता है.
देश में दंगे होते हैं, अमन चैन बिगड़ता है. आम आदमी मार खाता हैं और उसके बाद कुछ विद्वान लोग आकार उस आम आदमी को ही प्रेम, सौहार्द और भाईचारे से रहने की सीख देने लगाते हैं. कहा जाता है की सभी धर्म एक समान हैं. धर्मों में कोई अंतर नहीं है. ये लोग ढूंढ़ ढूंढ़ कर दो धर्मों की समानताएं खोजते हैं और यही होता है प्रेम का सन्देश या अमन का पैगाम.
मेरी सोच इससे थोड़ी भिन्न है. मैं सोचता हूँ की अगर हम आम आदमी को दो धर्मों की समानता दिखाने की जगह उनकी भिन्नता के दर्शन कराएँ और ये बताएं की ये एक दुसरे से भिन्न क्यों हैं तो क्या होगा?
वैसे आप ही बताएं की आम और खजूर भला एक कैसे हो सकते हैं? बेशक दोनों ही फल हैं. ईश्वर ने दोनों को इन्सान के जरिये धरती से पैदा किया है लेकिन दोनों के लिए अलग अलग जलवायु और जगह चुनी गयी है. आम भारत में पैदा होता है और खजूर अरब देशों में. एक गर्मियों का फल है तो दूसरा शीत ऋतू में ज्यादा उपयोग में लाया जाता है. आम जनता ये बातें समझती है. लड़ाई झगडा तो तब शुरू होता है जब खुद को पंडित समझने वाला एक व्यक्ति कहता है की आम फलों का राजा है और वहीँ कोई खुद को आलिम समझने वाला व्यक्ति खजूर को मानव जाति का उद्धारकर्ता फल बताने लगता है. एक और तीसरा व्यक्ति जो खुद को इनसे भी ज्यादा समझदार मानता है और वो कहता है की दोनों ही फल एक समान हैं.
बन गयी ना आम जनता घनचक्कर. लोगों ने आपने फायदे के लिए सत्य को छिपा लिया. सत्य क्या है? सत्य ये है की ना तो आम और ना ही खजूर एकमात्र उत्तम फल है और ना ही दोनों फल एकसमान हैं. इनकी अपनी अपनी खूबियाँ और कमियां हैं. होना ये चाहिए की जिसे आम पसंद हैं वो आम खाए पर खजूर पसंद करने वाले से घृणा ना करे और जिसे खजूर पसंद हैं वो आम के रसियाओं से बैर ना रखे . आम उत्पादक खजूर के आयात का विरोध ना करें और आयातित खजूर पसंद करने वाले उसकी गुठलियाँ बोने के लिए आम के बाग़ उजाड़ने का स्वप्न कभी ना देखें. सभी अपनी अपनी दुकाने सजाएँ और आम जनता जिसे पसंद करेगी अपना लेगी.
कुछ विद्वान लोग सोच रहे होंगे की धर्म जैसे गूढ़ विषय को ये पगला आम और खजूर में ही निबटा रहा है . धर्म तो बड़ा जटिल विषय है. ये इतनी सरलता से आम आदमी की समझ में आने वाला नहीं है. तो इस बारे में, मैं यही कहूँगा की अगर आपका धर्म आम आदमी के लिए जटिल है तो सच मानिये ईश्वर ने इसे आम आदमी के लिए बनाया ही नहीं है क्योंकि ईश्वर तो हमेशा ही यूजर फ्रेंडली चीजें ही रचते आये हैं.
चलिए एक क्षण के लिए मान लिया की आम आदमी को अमन के पैगाम की जरुरत नहीं है तो इसकी जरुरत भला किसे है? मेरी समझ से ये संदेशा दिया जाना चाहिए उन लोगों को जो ये मानते हैं की खजूर ही सर्वोत्तम फल है या फिर उन लोगों को जिन्हें हर बीमारी की जड़ें खजूर में ही दिखती हैं. एक आम आदमी के तौर पर मैंने तो हमेशा ही ईमानदारी से इस विषय पर प्रयास किया है पर विद्वान लोग एक आम आदमी की बात का विश्वास कैसे कर पाएंगे. इसलिए प्यार मोहब्बत की इस हरी भरी वसुंधरा पर निवास करने वाले आम भारतीय नागरिकों को द्वेस, वैमनस्य की धूल भरी आंधी से बचने का सन्देश देने वाले विद्वान लोगों से मैं ये प्रार्थना करना चाहूँगा की वो खुद ऐसी आंधी को देख कर रेत में मुंह ना छिपायें बल्कि सामने आकार इन शांति प्यार और भाईचारे के दुश्मनों का जमकर और खुलकर विरोध करें ताकि एक आम भारतीय अमन चैन और सकूँ से अपना जीवन व्यतीत कर सके.
…….दीप पाण्डेय (विचार शून्य)