पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें" की उन्नीसवीं पेशकश . रश्मि प्रभा... जी. अपना परिचय देते हुए रशिम जी कहती ...
पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें" की उन्नीसवीं पेशकश .रश्मि प्रभा... जी. अपना परिचय देते हुए रशिम जी कहती हैं "
”सौभाग्य मेरा की मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं”……..रश्मि प्रभा...
मैंने रश्मि प्रभा जी. की को पढ़ा है और यह पंक्तियाँ मुझे बहुत ही पसंद आयीं
सूक्तियां बोलता है
रुपयों के बल पर
सिकंदर बनता है
पर एक टूटी झोपड़ी
महल के अस्तित्व को फीका कर जाये
बर्दाश्त नहीं कर पाता है
हर मोड़ पर झोपड़ी की रोटी का सोंधापन
प्रतिस्पर्धा का सबब बन जाता है …………….रश्मि प्रभा...
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रश्मि प्रभा जी कुछ इस तरह अमन के पैग़ाम दे रही हैं .
कैसा है ये जलजला
क्यूँ है ये धुंआ धुंआ
कब तक होगा शोर
नफरत भरी साँसों का
ना है खुश प्रकृति
ना घर में है सुकून
बचपन की पथराई आँखें
या खुदा
ये माज़रा क्या है !
बंज़र दिल है
बंज़र राहें
बंज़र हुए हैं सबके ख्वाब
एक बूंद अपनत्व की
कहीं से तो बरसे
ले उसे हथेली में
सबकी प्यास बुझे
ये आग थमे
धुंएँ से बाहर बचपन खिलखिलाए
आओ मिलकर शपथ उठायें
हम साथ साथ चलेंगे
अमन की राह को पल्लवित हम करेंगे
कहो सब मिलकर
'आमीन'
……….रश्मि प्रभा
शब्दों की यात्रा में, शब्दों के अनगिनत यात्री मिलते हैं, शब्दों के आदान प्रदान से भावनाओं का अनजाना रिश्ता बनता है - गर शब्दों के असली मोती भावनाओं की आँच से तपे हैं तो यकीनन गुलमर्ग यहीं है...सिहरते मन को शब्दों से तुम सजाओ, हम भी सजाएँ, यात्रा को सार्थक करें...…रश्मि प्रभा...