पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें की बाइसवीं पेशकश लखनऊ के रहने वाली रांची से वीणा श्रीवास्तव जी. वीणा जी इ...
पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें की बाइसवीं पेशकश लखनऊ के रहने वाली रांची से वीणा श्रीवास्तव जी. वीणा जी इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानती हैं. वीणा जी ने अपने जीवन के एक सच्चे वाकए से अमन का पैग़ाम दिया है. यह उनलोगों के लिए एक इबरत है जो धर्म के नाम पे अपने जैसे दूसरे इंसान को पसंद नहीं करते, दूरी बना के रखते हैं...
बाद में चच्ची ने उनसे माफी मांगी और आएशा चच्ची का प्रयास बेकार नहीं गया। दोनों परिवार में आज भी दोस्ती बरकरार है। यह किस्सा लखनऊ के रकाबगंज का है। न जाने ऐसे कितने किस्से होंगे
क्या खून यह देखता है कि उसे हिंदू की रगों में दौड़ना है, ईसाई या मुसलमान की देह में नहीं जाना है वहां वो पानी बन जाएगा।... सबमें उसका एक ही रंग है लाल...जब प्रकृति ने कोई भेद नहीं किया तो हम क्यों भेद बरतते हैं क्यों अपने आस-पास नफरत की दीवार खींचते हैं। बाहर की दिक्कतें हमारे मुल्क के लिए परेशानी का सबब हैं ही तो क्या हम घर में सुख-चैन से नहीं रह सकते ? मिलकर नहीं रह सकते? क्यों एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं...? हमें याद रखने की जरूरत यह है कि पहले हम इंसान हैं, हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदुस्तानी हैं...बाद में किसी धर्म के मानने वाले.....अगर इंसानियत का धर्म ही याद रखें तो सारे झगड़े धीरे-धीरे स्वत: ही खत्म हो जाएंगे फिर खून की नदियां नहीं बहेंगी..बल्कि अमन और प्यार की धारा बहेगी....मुस्कुराहटों के फूल खिलेंगे......यही ख्वा़ब है दिल में.....
मैं लहू हूं
मुझे मत बांटो
मैं जम जाऊंगा
मुझे मत बहाओ
मैं थम जाऊंगा
मैं लहू हूं
मैं जम गया तो
अंत होगा एक जीवन का
अंत होगा एक जीवन का
उजड़ेगी मांग
एक सुहागिन की
आंचल सूना होगा
एक मां का
बहन की पुकार किसे बुलाएगी
मैं थम गया तो
अस्तित्व पड़ जाएगा
खतरे में
मानव का
मुझे
मत बनने दो पानी
वर्ना मानवता का
नहीं बचेगा
कोई चिह्न
बांटना ही है
तो बांटो
प्यार
क्या बांट सकते हो
मेरे रंग को ?
कभी नहीं
मैं लहू हूं
सबमें एक-सी
लालिमा लिये
एक ही रूप है मेरा
मानवता का
मत बिगाड़ो
इस रूप को
वर्ना कुरूपता
कर देगी अंत
मानवता का
फिर
कुछ नहीं रहेगा शेष
न रंग,न रूप
मुझे मत बहाओ
मैं पानी बन जाऊंगा
मैं लहू हूं
पानी नहीं...
सादर