पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम' पे सितारों की तरह चमकें की सत्रहवीं पेशकश हर दिल अज़ीज़ जनाब सतीश सक्सेना जी . हक के साथी ज़रा सा ...
पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम' पे सितारों की तरह चमकें की सत्रहवीं पेशकश हर दिल अज़ीज़ जनाब सतीश सक्सेना जी. हक के साथी ज़रा सा जज्बाती ,बस अधिक कुछ नहीं कहूँगा क्यों की अगर कहने लगा सतीश भाई के बारे मैं तो एक साथ २-३ लेख़ भी कम पड़ेगा. सतीश भाई का तारूफ उनके ही लव्जों मैं "हँसते हुए व स्वाभिमान के साथ जीने की इच्छा रखता है! झूठ बोलना, दिखावा करना, तथा अन्याय सहन करना पसंद नहीं है !ईश्वर से सिर्फ एक प्रार्थना कि अंतिम समय तक, जरूरत मंदों के कार्य आने लायक शक्ति बनी रहे, भूल से भी किसी का दिल न दुखाऊँ और अंतिम समय किसी की आँख में एक आंसू देख प्राण त्याग कर सकूं !
यह तारूफ मुझे ब्लॉगजगत मैं आने के पहले दिन से बहुत पसंद रहा , जिसको आज मौक़ा मिलते ही पेश कर दिया.. जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं है पशु निरा है , और मृतक समान है ! …..सतीश सक्सेना |
इस सम्बन्द्ध में मैं गौरव अग्रवाल की एक पोस्ट पर दिए गए विडिओ देखने का अनुरोध अवश्य करूंगा ...वाकई यह पोस्ट, ब्लागजगत में प्रकाशित बेहतरीन लेखों में से एक है जो देश भक्ति और एकता का बेहतरीन सन्देश देती है !
हमारे देश की विसंगतियों में से, धार्मिक असहिष्णुता मुझे सबसे ख़राब लगती है ! हर एक इंसान को अपनी श्रद्धा और भावना के साथ इबादत का अधिकार है और हमें इस अधिकार की क़द्र करनी आनी चाहिए ! अगर हम अपनी पूजा करते हुए, दूसरों के धर्म में कमी निकालने की कोशिश करते हैं तो यकीनन हम बेवजह, दूसरों को आहत ही नहीं कर रहे बल्कि परस्पर नफरत को बढ़ावा भी दे रहे हैं ! ऐसे उत्प्रेरक लोगों को अपराधी का दर्ज़ा दिया जाना चाहिए ! इस सम्बन्ध में मैं योगेन्द्र मौदगिल की दो लाइनें याद दिलाता हूँ जो सब कुछ कह रही हैं !
"मस्जिद की मीनारें बोलीं मंदिर के कंगूरों से,
संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से "
मुझे विश्वास है अगर हम एक जुट होकर एक साथ प्यार से, बिना एक दूसरे पर शक किये, रहना सीख जाएँ तो हम से अधिक खुशहाल और कौन होगा ? यह बात न केवल ब्लागर पर बल्कि परिवार और देश पर भी समान रूप से प्रभावी साबित होगी ! …..सतीश सक्सेना