पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें की सोलहवीं पेशकश केवल राम जी -हिमाचल प्रदेश से ,इनकी पहचान के लिए इनके ये ल...
पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें की सोलहवीं पेशकश केवल राम जी -हिमाचल प्रदेश से ,इनकी पहचान के लिए इनके ये लव्ज़ ही काफी हैं...
कुछ को दोस्त , कुछ को दुश्मन बनाना अच्छा लगता है ,
मुझे तो रिश्ता -ए-इंसानियत निभाना अच्छा लगता है.
हमने खुद को वादों में बाँट कर रखा और हम निरंतर बंटते जा रहे हैं , कभी भाषावाद , जातिवाद , क्षेत्रवाद , अस्तित्ववाद, आतंकवाद न जाने कितने वाद , परन्तु कहीं पर भी नाम नहीं आया , समतावाद का ,सर्वात्मवाद का ..वास्तविकता यह थी कि हम सब खुदा कि संतान है . सभी में खुदा का नूर है , सभी कि एक सी भाषा है , सभी का एक धर्म है.….केवल राम --हिमाचल प्रदेश
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वास्तविकता तो यह थी मगर....!
वर्तमान वैश्विक परिद्रश्य पर अगर दृष्टिपात करें तो हमें एक आभासी सी दुनिया का एहसास होता है . भौतिक रूप से बेशक हम निरंतर उन्नति कर रहे हैं , पर क्या वास्तविकता में यह उन्नति - उन्नति है . सोचने वाली बात है ...जिस उन्नति के कारण हमने चाँद -तारों तक पहुँचने की बात सोच ली , पूरे विश्व को एक करने के बारे में सोचा ...पर हम कितना सफल हो पाए हैं अपने इन मंतव्यों में ..जितनी -जितनी हम भौतिक उन्नति करते गए, उतने हम नैतिक और संवेदनात्मक रूप से गिरते गए और अब तो हालत इस कदर हैं कि इंसान - इंसान के लहू का प्यासा बना फिरता है . भले ही हम बातों में कह दें की आज 'वैश्वीकरण' का दौर है ,और हम 'विश्वग्राम' की परिकल्पना को साकार करने में लगे हुए हैं ..पर जिन लोगों ने कभी गाँव का जीवन महसूस किया ही नहीं वो 'गाँव ' को सिर्फ शब्द समझते हैं ..बल्कि वास्तविकता में गाँव उसे कहते हैं, जहाँ पर दुःख की एक को होता है, तो दर्द सबको . आभाव एक को होता है,तो आभास सब को .अनहोनी एक के साथ होती है, तो आँखों में आंसू सबके होते हैं ..इसे तो कह सकते हैं कि यह गाँव का स्वरूप है . और हमें समझना चहिये था कि पूरा विश्व हमारा घर है . पर वास्तविकता इससे कोसों दूर नहीं, बल्कि इसके बिलकुल उलट है . आज हम नैतिकता और सदाचार का जीवन भूल गए हैं . इंसानियत की जगह हैवानियत ने ले ली है . और आज इन्सान- इंसान के दम घोंटने के लिए अपनी जेबों में बम तथा खतरनाक हथियार लेकर घूमता है तो यह कहाँ कि उन्नति, और कहाँ कि प्रगति और फिर कहाँ कि इंसानियत .
आज इंसानों के बीच फासले ही नहीं सम्बन्ध खाइयों में परिवर्तित हो गए हैं , यहाँ पर धर्म के नाम पर , जाति के नाम पर , भाषा के नाम पर , क्षेत्र के नाम पर न जाने कितने आधारों पर इंसान को बाँटने का प्रयास किया जाता है,.. एक दुसरे से अलग किया जाता है . मंदिर -मस्जिद में भेद किया जाता है , चर्च - गुरुद्वारे में भेद किया जाता है ...आखिर क्या आधार है इन भेदों का ? ..कोई बताने को तैयार नहीं . आज इंसानों में धर्म के आधार पर ज्यादा भेद किया जाता है .. जिस धर्म ने इंसान को इंसान बनाना था , आज उसी के कारण हम हैवान बनते जा रहे है : कहा तो यह गया था
" मेरे रसूल पर ईमान लाओ , हक़ से जुड़ जाओगे "
और हम हक़ से जुड़ने कि अपेक्षा उससे टूट रहे है . धर्म ग्रंथों में तो यह कहा गया था
" एक नूर ते सब जग उपजाया "पर यहाँ.....
सबके अपने -अपने नूर हैं ,
सब अपनी अपनी ख़ुशी में मगरूर है,
किसी को ईमान है,
तो किसी को गरूर है .
और इसी कारण
हम एक दुसरे से दूर हैं
और हम हक़ से जुड़ने कि अपेक्षा उससे टूट रहे है . धर्म ग्रंथों में तो यह कहा गया था
" एक नूर ते सब जग उपजाया "पर यहाँ.....
सबके अपने -अपने नूर हैं ,
सब अपनी अपनी ख़ुशी में मगरूर है,
किसी को ईमान है,
तो किसी को गरूर है .
और इसी कारण
हम एक दुसरे से दूर हैं
यह कुछ मौका परस्त लोगों कि सोच का असर है जिसके कारण आज इंसान कि हालत यह है कि
जमी जमां के बखि समस्त इक जोत है , न बाध है न घाट है , न बाध घाट होत है ,
पर इंसान के हालात इसके विपरीत हैं आज :
आदमी की शकल से डर रहा है आदमी ,
अपनों को लूट कर घर भर रहा है आदमी
मर रहा है आदमी , और मार रहा है आदमी समझ नहीं आता क्या कर रहा है आदमी
यह सब हमारी संकीर्ण मानसिकता के कारण हुआ है , इस बात को गहराई से समझने कि आवश्यकता है . अपनों को लूट कर घर भर रहा है आदमी
मर रहा है आदमी , और मार रहा है आदमी समझ नहीं आता क्या कर रहा है आदमी
हमने खुद को वादों में बाँट कर रखा और हम निरंतर बंटते जा रहे हैं , कभी भाषावाद , जातिवाद , क्षेत्रवाद , अस्तित्ववाद, आतंकवाद न जाने कितने वाद , परन्तु कहीं पर भी नाम नहीं आया , समतावाद का ,सर्वात्मवाद का ..वास्तविकता यह थी कि हम सब खुदा कि संतान है . सभी में खुदा का नूर है , सभी कि एक सी भाषा है , सभी का एक धर्म है ..और उससे भी सच्ची वास्तविकता हम सब सिर्फ और सिर्फ इन्सान हैं बाकि कुछ भी नहीं ..काश कि ऐसा रूप होता इस सृष्टि का ..और यहाँ पर बसने वालों के दिलों में होता यह जज्बा , और कुछ इस तरह मुड़ते वो वास्तविकता की तरफ और पूरे संकल्प से सोचते इन बातों को और धारण करते अपने जीवन में :
१..सभी इंसानों का एक ही राष्ट्र ....ब्रह्माण्ड
२...सभी इंसानों का एक ही धर्म ...इंसानियत
३...सभी इंसानों की एक ही भाषा ....प्रेम कि भाषा
४ ...सभी इंसानों का एक ही लक्ष्य .....शांति और सद्भाव
५ ..सभी इंसानों का एक ही ध्वज ......सत्य
६....सभी इंसानों का एक ही पैगाम .....अमन और शांति
एक दिन जिन्दगी हमसे यूँ ही रूठ जाएगी
सवालात होंगे सब खत्म, सिर्फ बातें ही रह जाएगी
सवालात होंगे सब खत्म, सिर्फ बातें ही रह जाएगी