क्या आप समाज सुधारक है? यदि हाँ तो सोंचें क्या आप एक आज़ाद इंसान हैं, या किसी के ग़ुलाम? आज़ाद इंसान हैं तो सोंचें समाज को कैसा बना लेना चा...
क्या आप समाज सुधारक है? यदि हाँ तो सोंचें क्या आप एक आज़ाद इंसान हैं, या किसी के ग़ुलाम?
आज़ाद इंसान हैं तो सोंचें समाज को कैसा बना लेना चाहते हैं? अपने जैसा या वैसा जो जनहित मैं हो?
जो वास्तव मैं समाज सुधारक हैं वोह समाज मैं शान्ति की, अमन की बात करते हैं, जो समाज को अपने जैसा बना लेना चाहते हैं वोह आत्मा की इच्छाओं के ग़ुलाम हैं और यह लोग इन बातों की परवाह नहीं करते की उनकी बातों से समाज मैं नफरत फैले या झगडे हो जाएं.
यह लोग अपनी आत्मा की बुराईयों के ग़ुलाम हैं और व्यक्तिगत लाभ के तहत काम किया करते हैं. ऐसे लोग इंसान देख के बात किया करते हैं और हमेशा दो चेहरे वाले हुआ करते हैं. अपनी बात को सत्य साबित करने के लिए यह आप को हमेशा झूट का सहारा लेते मिल जाएंगे.
कुरआन मैं इनके बारे मैं कुछ ऐसे बताया गया है: जब उन (दो चेहरे वाले) से कहा जाता है कि तुम ज़मीन पर बुराई न फैलाओ तो वह कहते हैं कि हम तो केवल सुधारक हैं.
अक्सर ऐसे लोगों को धर्म का सहारा लेते देखा जाता है समाज मैं नफरत फैलाने के लिए, क्यों की यह जानते हैं, इश्वेर एक है लेकिन उसको पूजने का उसकी इबादत का तरीका अलग अलग और यह इसी का फाएदा यह लेते हैं.
इनके सामने जब अमन की बात करो हक की बात करो तो यह अंधे, बहरे और गूंगे बन जाते हैं और मौके की तलाश मैं रहते हैं कब कोई मौक़ा मिले कब शांति की बात करने वाले के खिलाफ लोगों के दिलों मैं शक पैदा करें.
इस समाज मैं जितनी भी अच्छाइयां मोजूद हैं वोह सब केवल आज़ाद इंसानों की देन हैं. ग़ुलाम कभी समाज नहीं बनाता और जब बनाता है तो उस समाज को नफरत, लालच, भ्रष्टाचार, दुराचार, और अज्ञानता से भर देता है.
हर इंसान जानता है की, झूट, फरेब, अज्ञानता की पहचान है और इसका सहारा इंसान किसी लालच मैं ही लिया करता है. लालच स्वम आत्मा की ग़ुलामी है.
ज़ुल्म का हथियार है, झूट और फरेब और नतीजा है समाज मैं अशांति , इन्साफ का हथियार है सच्चाई और नतीजा है शांति.
श्रीमद् भगवद गीता में कुछ ऐसे बताया गया है:
कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥२६॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं.
आज़ाद इंसान हैं तो सोंचें समाज को कैसा बना लेना चाहते हैं? अपने जैसा या वैसा जो जनहित मैं हो?
जो वास्तव मैं समाज सुधारक हैं वोह समाज मैं शान्ति की, अमन की बात करते हैं, जो समाज को अपने जैसा बना लेना चाहते हैं वोह आत्मा की इच्छाओं के ग़ुलाम हैं और यह लोग इन बातों की परवाह नहीं करते की उनकी बातों से समाज मैं नफरत फैले या झगडे हो जाएं.
यह लोग अपनी आत्मा की बुराईयों के ग़ुलाम हैं और व्यक्तिगत लाभ के तहत काम किया करते हैं. ऐसे लोग इंसान देख के बात किया करते हैं और हमेशा दो चेहरे वाले हुआ करते हैं. अपनी बात को सत्य साबित करने के लिए यह आप को हमेशा झूट का सहारा लेते मिल जाएंगे.
कुरआन मैं इनके बारे मैं कुछ ऐसे बताया गया है: जब उन (दो चेहरे वाले) से कहा जाता है कि तुम ज़मीन पर बुराई न फैलाओ तो वह कहते हैं कि हम तो केवल सुधारक हैं.
अक्सर ऐसे लोगों को धर्म का सहारा लेते देखा जाता है समाज मैं नफरत फैलाने के लिए, क्यों की यह जानते हैं, इश्वेर एक है लेकिन उसको पूजने का उसकी इबादत का तरीका अलग अलग और यह इसी का फाएदा यह लेते हैं.
इनके सामने जब अमन की बात करो हक की बात करो तो यह अंधे, बहरे और गूंगे बन जाते हैं और मौके की तलाश मैं रहते हैं कब कोई मौक़ा मिले कब शांति की बात करने वाले के खिलाफ लोगों के दिलों मैं शक पैदा करें.
इस समाज मैं जितनी भी अच्छाइयां मोजूद हैं वोह सब केवल आज़ाद इंसानों की देन हैं. ग़ुलाम कभी समाज नहीं बनाता और जब बनाता है तो उस समाज को नफरत, लालच, भ्रष्टाचार, दुराचार, और अज्ञानता से भर देता है.
हर इंसान जानता है की, झूट, फरेब, अज्ञानता की पहचान है और इसका सहारा इंसान किसी लालच मैं ही लिया करता है. लालच स्वम आत्मा की ग़ुलामी है.
ज़ुल्म का हथियार है, झूट और फरेब और नतीजा है समाज मैं अशांति , इन्साफ का हथियार है सच्चाई और नतीजा है शांति.
श्रीमद् भगवद गीता में कुछ ऐसे बताया गया है:
कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥२६॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं.