जैसा की हमेशा से होता है, कोई भी त्यौहार आये हम -४-५ दिन पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं. ऐसी तैय्यारियाँ मैंने इस साल बकरा ईद पे ब्लोगेर्स...
जैसा की हमेशा से होता है, कोई भी त्यौहार आये हम -४-५ दिन पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं. ऐसी तैय्यारियाँ मैंने इस साल बकरा ईद पे ब्लोगेर्स को करते देखा. तीन अलग अलग समूह बना के ब्लोगेर्स आये. एक ने बताना शुरू किया क़ुरबानी क्या है, बकरा क्यों कटता और यह हिंसा क्यों नहीं है. दूसरा समूह आया , उसने इसको हिंसा बताया और बकरा बचाओ का नारा लगाया. और तीसरा समूह ऐसा था जो , इस ख़ुशी मैं सभी हिन्दू और मुसलमान भाइयों को ईद मुबारक दे रहा था.
इस साल मैंने देखा अनवर जमाल साहब ने बकरा काटा, अमित शर्मा जी चिल्लाए , सुज्ञ जी ने हिम्मत बंधाई, मासूम साहब ने अमन का झंडा दिखाया ,कुछ लोगों ने टिप्पणी संख्या बढ़ाने मैं सहयोग दिया,तारकेश्वर जी ने ज्ञान जमा कर के भाग लेना बेहतर समझा, कुछ लोगों ने मिर्च मसाले का भी इंतज़ाम किया, बेनामिओं ने तालियाँ बजाईं. इंसानियत चिल्लाई बकरे को छोड़ो मुझे बचाओ.
अभी अभी खबर आई हैं की इंसानियत की आवाज़ सभी ने सुन ली है, अब सब शांत हैं, और एक दूसरे को ज्ञान बढ़ाने का या टिप्पणी संख्या बढ़ाने (ठीक से मुझे याद नहीं), के लिए धन्यवाद् दे रहे हैं. अब यह तो वक़्त ही बताएगा की इंसानियत की आवाज़ सबने सुन ली है या इंसानियत को क़त्ल करने का कोई नया मौक़ा तलाशने मैं सब लगे हैं. टिप्पणी शतक ना बन सकने का अफ़सोस हमें भी रहा .
मैंने ब्लोगेर्स को समूह बना के एक दूसरे के धर्म के खिलाफ बोलते देखा. मैंने अपने धर्म को सही साबित करने के लिए झूट का सहारा लेते देखा. कुछ ब्लोग्स पे तो जाने पे ऐसा लगता है, की कोई गाली पुराण पढ़ी जा रही है. कुछ पे ऐसा लगता है, की इनको नफरत फैलाने के पैसे मिल रहे हैं. ब्लॉग पे लिखते लिखते अब तो कुछ इ मेल भी नफरत से भरे मिल जाया करते हैं. ऐसे मैं शांति पसंद इंसान कहां जाए?
हम इंसान तो बन नहीं पाते हिन्दू या मुसलमान, सिख या ईसाई पहले बन जाते हैं. हर व्यक्ति का फ़र्ज़ है की वोह अपने अपने धर्म की अच्छी बातों को सबको बताए और दूसरों के धर्म को बुरा भला ना कहे. हम आज के युग मैं हम अपने धर्म की नसीहतों पे ठीक से चल सकें तो परमात्मा का शुक्र अदा करना चाइये, कहां हम इन बातों मैं फँस जाते हैं की दूसरे के धर्म को मानने वाले क्या करते हैं या क्या नहीं करते.
यह हर जागरूक और शांति पसंद ब्लोगेर का धर्म है की ऐसे नफरत के सौदागरों के खिलाफ अपने ब्लॉग से आवाज़ उठाए, और अपने ब्लॉग के ज़रिये इंसानियत बचाओ अभियान चलाए. कुछ लोग यह कह के ज़िम्मेदारी से हाथ झाड लेते हैं, की हमें जो पसंद नहीं आता , हम वहां नहीं जाते, यह सही हल नहीं. आप के ना जाने से नफरत का फैलना नहीं रुकता. आप वहां ना जाएं लेकिन अपने ब्लॉग के ज़रिये नफरत फैलाने वालों के खिलाफ अवश्य आवाज़ उठाएं. जो इंसान केवल अपने बारे मैं सोंचता है वोह एक मृत सामान है. यह ब्लॉग जगत हमारे समाज से अलग नहीं है अगर समाज मैं शांति चाहिए तो सबको मिल के इसका प्रयास करना होगा.
हर धर्म ,किसी भी हाल मैं इंसानों मैं नफरत फैलाने के खिलाफ है, तो हम क्यों नहीं अपने अपने धर्म को मानते हुए ,एक दूसरे के साथ प्रेम और शांति से रह सकते? धर्म से भागो नहीं, बल्कि अपने धार्मिक ज्ञान को बढाओ और सभी धर्म के बारे मैं उनकी धार्मिक किताबों से जानो, तब कहीं जा के हृदय पवित्र होगा और जब इन्सान का हृदय पवित्र होगा तो इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन और समाज पर भी पड़ेगा और वह हर बुरे काम से और मानवता के विरुद्ध कोई भी काम करने से बचेगा.
इस ईद का यह दिन बुराई पे नेकी की फतह का दिन है और शांति और इंसानियत की कोशिश से बेहतर कौन सी नेकी हो सकती है?
मैं अपने उन सभी ब्लोगेर्स का शुक्रिया अदा करता हूँ, जिन्होंने मेरे ब्लॉग पे या मेल से मुझे ईद की शुभकामनाएं दीं. ईद मुबारक
इस साल मैंने देखा अनवर जमाल साहब ने बकरा काटा, अमित शर्मा जी चिल्लाए , सुज्ञ जी ने हिम्मत बंधाई, मासूम साहब ने अमन का झंडा दिखाया ,कुछ लोगों ने टिप्पणी संख्या बढ़ाने मैं सहयोग दिया,तारकेश्वर जी ने ज्ञान जमा कर के भाग लेना बेहतर समझा, कुछ लोगों ने मिर्च मसाले का भी इंतज़ाम किया, बेनामिओं ने तालियाँ बजाईं. इंसानियत चिल्लाई बकरे को छोड़ो मुझे बचाओ.
अभी अभी खबर आई हैं की इंसानियत की आवाज़ सभी ने सुन ली है, अब सब शांत हैं, और एक दूसरे को ज्ञान बढ़ाने का या टिप्पणी संख्या बढ़ाने (ठीक से मुझे याद नहीं), के लिए धन्यवाद् दे रहे हैं. अब यह तो वक़्त ही बताएगा की इंसानियत की आवाज़ सबने सुन ली है या इंसानियत को क़त्ल करने का कोई नया मौक़ा तलाशने मैं सब लगे हैं. टिप्पणी शतक ना बन सकने का अफ़सोस हमें भी रहा .
मैंने ब्लोगेर्स को समूह बना के एक दूसरे के धर्म के खिलाफ बोलते देखा. मैंने अपने धर्म को सही साबित करने के लिए झूट का सहारा लेते देखा. कुछ ब्लोग्स पे तो जाने पे ऐसा लगता है, की कोई गाली पुराण पढ़ी जा रही है. कुछ पे ऐसा लगता है, की इनको नफरत फैलाने के पैसे मिल रहे हैं. ब्लॉग पे लिखते लिखते अब तो कुछ इ मेल भी नफरत से भरे मिल जाया करते हैं. ऐसे मैं शांति पसंद इंसान कहां जाए?
हम इंसान तो बन नहीं पाते हिन्दू या मुसलमान, सिख या ईसाई पहले बन जाते हैं. हर व्यक्ति का फ़र्ज़ है की वोह अपने अपने धर्म की अच्छी बातों को सबको बताए और दूसरों के धर्म को बुरा भला ना कहे. हम आज के युग मैं हम अपने धर्म की नसीहतों पे ठीक से चल सकें तो परमात्मा का शुक्र अदा करना चाइये, कहां हम इन बातों मैं फँस जाते हैं की दूसरे के धर्म को मानने वाले क्या करते हैं या क्या नहीं करते.
यह हर जागरूक और शांति पसंद ब्लोगेर का धर्म है की ऐसे नफरत के सौदागरों के खिलाफ अपने ब्लॉग से आवाज़ उठाए, और अपने ब्लॉग के ज़रिये इंसानियत बचाओ अभियान चलाए. कुछ लोग यह कह के ज़िम्मेदारी से हाथ झाड लेते हैं, की हमें जो पसंद नहीं आता , हम वहां नहीं जाते, यह सही हल नहीं. आप के ना जाने से नफरत का फैलना नहीं रुकता. आप वहां ना जाएं लेकिन अपने ब्लॉग के ज़रिये नफरत फैलाने वालों के खिलाफ अवश्य आवाज़ उठाएं. जो इंसान केवल अपने बारे मैं सोंचता है वोह एक मृत सामान है. यह ब्लॉग जगत हमारे समाज से अलग नहीं है अगर समाज मैं शांति चाहिए तो सबको मिल के इसका प्रयास करना होगा.
हर धर्म ,किसी भी हाल मैं इंसानों मैं नफरत फैलाने के खिलाफ है, तो हम क्यों नहीं अपने अपने धर्म को मानते हुए ,एक दूसरे के साथ प्रेम और शांति से रह सकते? धर्म से भागो नहीं, बल्कि अपने धार्मिक ज्ञान को बढाओ और सभी धर्म के बारे मैं उनकी धार्मिक किताबों से जानो, तब कहीं जा के हृदय पवित्र होगा और जब इन्सान का हृदय पवित्र होगा तो इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन और समाज पर भी पड़ेगा और वह हर बुरे काम से और मानवता के विरुद्ध कोई भी काम करने से बचेगा.
इस ईद का यह दिन बुराई पे नेकी की फतह का दिन है और शांति और इंसानियत की कोशिश से बेहतर कौन सी नेकी हो सकती है?
मैं अपने उन सभी ब्लोगेर्स का शुक्रिया अदा करता हूँ, जिन्होंने मेरे ब्लॉग पे या मेल से मुझे ईद की शुभकामनाएं दीं. ईद मुबारक