कल कुँवर' कुसुमेश जी की एक बेहतरीन ग़ज़ल पे नजर पडी जिसमें उन्होंने " अंतिम ठिकाने " की बात कही जो इस दिल को छु सी गयी और ...
कल कुँवर' कुसुमेश जी की एक बेहतरीन ग़ज़ल पे नजर पडी जिसमें उन्होंने "अंतिम ठिकाने" की बात कही जो इस दिल को छु सी गयी और कुछ ख्यालात उभरे दिल ओ दिमाग मैं जिन्हें आप सब के साथ बाँट लेना चाहता हूँ. मैं जनता हूँ की हम सब अपने अंतिम ठिकाने के बारे मैं सुनना, पढना तो दूर सोंचना भी पसंद नहीं करते. फिर भी कुछ लिखने की हिम्मत कर रहा हूँ इस आशा के साथ की ,आप सब भी अपने विचार, इस अंतिम ठिकाने के बारे मैं, प्रकट करेंगे. क्यों की इस सच्चाई से भागना ही इंसान को हैवान बना देता है.
इंसान भी एक हैवान है, जिसमें अक्ल है एहसास है और इच्छाएं हैं. इसलिए यह दूसरे हैवानों (जानवरों) से अलग इंसान कहलाता है. लेकिन इंसान को हैवान की शक्ल मैं भी हम हर रोज़ देखते हैं. कभी बेगुनाह की जान लेते, कभी परायी स्त्री पे नजर डालते, कभी जानवरों की तरह कम वस्त्रों मैं घुमते इत्यादि
यह इंसान हैवान कैसे बन जाता है और क्यों बनता है, इस सवाल का जवाब अगर हमें मिल जाए तो शायद हममें से कुछ खुद को हैवान बनने से रोक सकें.
हमें अल्लाह ने पैदा किया तो हमारे अंदर अक्ल के साथ साथ इच्छाओं को भी पैदा किया. यह इच्छाएं दो तरह की हैं. एक वो इच्छाएं जो हमारी जीवन से सम्बंधित ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अल्लाह ने पैदा की हैं, इन इच्छाओं को सीखने की ज़रुरत नहीं हुआ करती, यह जन्म के साथ स्वम ही पैदा हो जाया करती हैं. जैसे भूख और प्यास का लगना और इसको पूरा करने के लिए पानी पीने और खाना खाने की इच्छा का पैदा होना, जवानी के आते ही सेक्स की इच्छा इत्यादि . अल्लाह ने जो इच्छाएँ पैदा की हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ,उसका इंतज़ाम भी किया है. जैसे बच्चे के जन्म लेते ही, उसके खाने पीने का इंतज़ाम, अल्लाह ही करता है.
इन इच्छाओं को पूरा करने पे कोई रोक भी नहीं लगाई है, बस कानून बनाया है,जिस से इंसान हद से ना गुज़र जाए, और अपनी इन इच्छाओं को हलाल तरीक़े से पूरा करे . जैसे रहने खाने का इंतज़ाम मेहनत से करो, दूसरों का माल मत लूटो, किसी स्त्री को अपना विवाह कर के बनाओ, पर स्त्री पे नजर ना डालो इत्यादि
दूसरी वोह इच्छाएँ हैं जिनका हमारी ज़रूरतों से कुछ लेना देना नहीं, यह समाज के उस वर्ग की देन है जिनकी फ़िक्र अंतिम ठिकाने से अधिक इस दुनिया के ऐश ओ आराम के बारे मैं हुआ करती है . जैसे नशे की इच्छा , ज़रुरत से अधिक पैसे की लालच, पर स्त्री को पाने की इच्छा ,शोर्टकट शोहरत की इच्छा इत्यादि. अल्लाह ने जो इच्छाएं हममें हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैदा की ,उन्ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए जब जब इंसान ने अपनी हद को पार किया हैवान बना. इन रिअलिटी शोज़ की कामयाबी इसी वर्ग के लोगों पे टिकी हुआ करती है. जिस प्रकार धर्मों ने हमें हमारी हदें बता के हमें इंसान बनाने की कोशिश की उसी तरह रिअलिटी शोज़ हमें हमारी हदें तोड़ के हैवान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
इच्छाओं की पूर्ती के लिए हद को पार करने वालों की ही देन है रिअलिटी शोज़, आदर्श सोसाइटी जैसे घपले, बलात्कार इत्यादि , यहाँ तक की आतंकवाद भी इन्हें की देन है.
इन दोनों प्रकार की इच्छाओं मैं फर्क करते हुए एक इंसान की तरह जीवन व्यतीत वही कर पाता है जिसे अपने अंतिम ठिकाने का इल्म हो .जब जब समाज की पैदा की हुई यह इच्छाएँ हमारी अक्ल और एहसास पे हावी (ग़ालिब) हो जाती हैं हम एक हैवान नजर आते हैं. और जब यह अक्ल इच्छाओं को दबा देती है तो हम एक नेक इंसान नजर आते हैं.
कुछ लोग अपने अच्छे किरदार की वजह से मर के भी जिंदा रहते हैं और कुछ ऐसे हैं जो जिन्दा हैं लेकिन मुर्दा सामान है. जो इंसान अपने जीवन मैं किसी के काम ना आ सके उसे खुद को जिंदा नहीं समझना चहिये.
मौत भी एक नींद है, उसके बाद भी एक सुबह है, जब सबको उठना है और इस जीवन मैं किये गए कर्मो के हिसाब किताब के बाद एक नयी दुनिया मैं जाना है. वोह नयी दुनिया हमारे कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक दोनों हो सकती है. इसलिए हमें अपना जीवन पवित्रता, सच्चाई, उदारता तथा नैतिकता के साथ व्यतीत करना चहिये और यही अल्लाह का बताया वोह रास्ता है, जिस से हम मरने के बाद भी लोगों के दिलों मैं हमेशा जीवित रह सकते हैं.
हजरत अली (अ.स) ने नहजुल बालागा मैं फ़रमाया कि लोगों के बीच ऐसे रहो कि अगर मर जाओं तो वो तुम पर रोयें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे अभिलाषी हो.
हम सब अगर अपने सभी इच्छाओं की पूर्ती करते समय अपने अंतिम ठिकाने के बारे मैं भी सोंचें तो यकीन है मुझे की हम ऐसे इन्सान बन सकते हैं जिस पे इंसानियत को गर्व होगा.
मुझे खौफ़े-ख़ुदा हर दम रहेगा,
'कुँवर' अंतिम ठिकाना जानता है
इंसान भी एक हैवान है, जिसमें अक्ल है एहसास है और इच्छाएं हैं. इसलिए यह दूसरे हैवानों (जानवरों) से अलग इंसान कहलाता है. लेकिन इंसान को हैवान की शक्ल मैं भी हम हर रोज़ देखते हैं. कभी बेगुनाह की जान लेते, कभी परायी स्त्री पे नजर डालते, कभी जानवरों की तरह कम वस्त्रों मैं घुमते इत्यादि
यह इंसान हैवान कैसे बन जाता है और क्यों बनता है, इस सवाल का जवाब अगर हमें मिल जाए तो शायद हममें से कुछ खुद को हैवान बनने से रोक सकें.
हमें अल्लाह ने पैदा किया तो हमारे अंदर अक्ल के साथ साथ इच्छाओं को भी पैदा किया. यह इच्छाएं दो तरह की हैं. एक वो इच्छाएं जो हमारी जीवन से सम्बंधित ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अल्लाह ने पैदा की हैं, इन इच्छाओं को सीखने की ज़रुरत नहीं हुआ करती, यह जन्म के साथ स्वम ही पैदा हो जाया करती हैं. जैसे भूख और प्यास का लगना और इसको पूरा करने के लिए पानी पीने और खाना खाने की इच्छा का पैदा होना, जवानी के आते ही सेक्स की इच्छा इत्यादि . अल्लाह ने जो इच्छाएँ पैदा की हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ,उसका इंतज़ाम भी किया है. जैसे बच्चे के जन्म लेते ही, उसके खाने पीने का इंतज़ाम, अल्लाह ही करता है.
इन इच्छाओं को पूरा करने पे कोई रोक भी नहीं लगाई है, बस कानून बनाया है,जिस से इंसान हद से ना गुज़र जाए, और अपनी इन इच्छाओं को हलाल तरीक़े से पूरा करे . जैसे रहने खाने का इंतज़ाम मेहनत से करो, दूसरों का माल मत लूटो, किसी स्त्री को अपना विवाह कर के बनाओ, पर स्त्री पे नजर ना डालो इत्यादि
दूसरी वोह इच्छाएँ हैं जिनका हमारी ज़रूरतों से कुछ लेना देना नहीं, यह समाज के उस वर्ग की देन है जिनकी फ़िक्र अंतिम ठिकाने से अधिक इस दुनिया के ऐश ओ आराम के बारे मैं हुआ करती है . जैसे नशे की इच्छा , ज़रुरत से अधिक पैसे की लालच, पर स्त्री को पाने की इच्छा ,शोर्टकट शोहरत की इच्छा इत्यादि. अल्लाह ने जो इच्छाएं हममें हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैदा की ,उन्ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए जब जब इंसान ने अपनी हद को पार किया हैवान बना. इन रिअलिटी शोज़ की कामयाबी इसी वर्ग के लोगों पे टिकी हुआ करती है. जिस प्रकार धर्मों ने हमें हमारी हदें बता के हमें इंसान बनाने की कोशिश की उसी तरह रिअलिटी शोज़ हमें हमारी हदें तोड़ के हैवान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
इच्छाओं की पूर्ती के लिए हद को पार करने वालों की ही देन है रिअलिटी शोज़, आदर्श सोसाइटी जैसे घपले, बलात्कार इत्यादि , यहाँ तक की आतंकवाद भी इन्हें की देन है.
इन दोनों प्रकार की इच्छाओं मैं फर्क करते हुए एक इंसान की तरह जीवन व्यतीत वही कर पाता है जिसे अपने अंतिम ठिकाने का इल्म हो .जब जब समाज की पैदा की हुई यह इच्छाएँ हमारी अक्ल और एहसास पे हावी (ग़ालिब) हो जाती हैं हम एक हैवान नजर आते हैं. और जब यह अक्ल इच्छाओं को दबा देती है तो हम एक नेक इंसान नजर आते हैं.
कुछ लोग अपने अच्छे किरदार की वजह से मर के भी जिंदा रहते हैं और कुछ ऐसे हैं जो जिन्दा हैं लेकिन मुर्दा सामान है. जो इंसान अपने जीवन मैं किसी के काम ना आ सके उसे खुद को जिंदा नहीं समझना चहिये.
मौत भी एक नींद है, उसके बाद भी एक सुबह है, जब सबको उठना है और इस जीवन मैं किये गए कर्मो के हिसाब किताब के बाद एक नयी दुनिया मैं जाना है. वोह नयी दुनिया हमारे कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक दोनों हो सकती है. इसलिए हमें अपना जीवन पवित्रता, सच्चाई, उदारता तथा नैतिकता के साथ व्यतीत करना चहिये और यही अल्लाह का बताया वोह रास्ता है, जिस से हम मरने के बाद भी लोगों के दिलों मैं हमेशा जीवित रह सकते हैं.
हजरत अली (अ.स) ने नहजुल बालागा मैं फ़रमाया कि लोगों के बीच ऐसे रहो कि अगर मर जाओं तो वो तुम पर रोयें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे अभिलाषी हो.
हम सब अगर अपने सभी इच्छाओं की पूर्ती करते समय अपने अंतिम ठिकाने के बारे मैं भी सोंचें तो यकीन है मुझे की हम ऐसे इन्सान बन सकते हैं जिस पे इंसानियत को गर्व होगा.