अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तीन दिन की भारत यात्रा पर शनिवार दोपहर १२:३० को मुंबई पहुंचे. इस यात्रा के दौरान अमेरिकी व्यवसायियों के लिए ...
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तीन दिन की भारत यात्रा पर शनिवार दोपहर १२:३० को मुंबई पहुंचे. इस यात्रा के दौरान अमेरिकी व्यवसायियों के लिए भारतीय बाजार खोलने और आतंकवाद विरोधी रणनीति जैसे राजनीतिक मुद्दों पर विचार विमर्श किया. ओबामा और उनकी पत्नी का विमान की सीढि़यों से नीचे उतरते ही भव्य स्वागत किया गया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने उनकी अगवानी की और उन्होंने उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया। ओबामा की अगवानी करने वाली अन्य हस्तियों में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री सलमान खुर्शीद और अमेरिका में भारतीय राजदूत मीरा शंकर भी शामिल थीं.
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुंबई के ताज होटल पहुँचकर 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों के प्रभावितों से मुलाकात की और कहा "आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमरीका और भारत एक जुट हैं ,इस देश के राष्ट्रपिता की हत्या के मौक़े पर आपके पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने कहा था चाहे हवाएं कितनी ही तेज़ क्यों न हों आंधियां ही क्यों न चल रही हों, हम कभी भी आज़ादी की मशाल को बुझने नहीं देंगे. आप भारत में इस पर विश्वास करते हैं और हम अमरीका में इस पर विश्वास करते हैं. हम आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने के लिए भारत के साथ हैं. हम लोगों ने और सारी दुनिया ने इन हमलों को देखा और सभी को इस पर दुख हुआ. हमलावर विभिन्न धर्मों के लोगों को निशाना बनाना चाहते थे लेकिन विफल रहे. लेकिन हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों ने मिलकर उसका सामना किया"
ओबामा का कहना है की आतंकवाद के ख़िलाफ़ हम भारत के साथ अपने सहयोग को और आगे ले जाना चाहते हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है की कैसे? क्या सिर्फ वादे कर लेने से या बड़ी बड़ी बातें करने से यह सहयोग साबित होगा या वास्तविक आतंकवादीओं की पहचान कर के उनके खिलाफ जंग करने से आतंकवाद ख़त्म होगा.
भारत मैं जितने भी छोटे बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं, उनमें या तो पाकिस्तान का नाम आया या फिर कुछ हिन्दुस्तानी नाम आये जिनको पाकिस्तान ने शरण दी हुई है या फिर कुछ हिन्दू संघटनो का नाम अब सुनाई देने लगा है. घरेलु आतंकवाद से तो हिंदुस्तान निपट लेगा लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे जो आतंकवाद फैला है क्या उससे लड़ने का वादा ओबामा का सही है?
मुंबई मैं अपने वादों मैं ओबामा ने कहीं पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन दिल्ली पहुँच कर ओबामा ने आतंकवादियों को पनाह देने वाले मुल्कों को सचेत किया है. बुश भी अपने समय मैं कम या अधिक ऐसे ही भरोसे दिलाते रहते थे लेकिन किया कुछ भी नहीं.
अमेरिका ने हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया है और आज भी वही हो रहा है. अमेरिका हमेशा से एक ही मकसद पे काम करता रहा है वोह है मुसलमानों के उन देशों पे क़ब्ज़ा करना जहाँ तेल के भण्डार हैं और इस काम के लिए वोह अन्य आस पास के देशों से रिश्ते बना के उनका इस्तेमाल करता है. बड़ी ताकतों को सलाम करना, उनकी ग़लतियों को अनदेखा करना और उनके ज़ुल्मों को भूलते जाना ,इंसान की आदत सी बन गयी है.
ओसामा बिन लादेन ने तालिबान को पैदा किया और ओसामा को अमेरिका ने पैदा किया , इस सत्य से सब वाकिफ हैं. जगदीश्वर चतुर्वेदी की एक रिपोर्ट पढी थी जिसमें उन्होंने कहा था की "विलक्षण बात यह है कि अमेरिका की जो संस्थाएं प्रत्यक्षतः आतंक विरोधी विश्व व्यापी मुहिम का फैसला लेती रही हैं उनके द्वारा ही आतंकियों को आर्थिक-नैतिक-राजनीतिक मदद मिलती रही है"(http://www.pravakta.com/story/१३१२६)
जागरण न्यूज़ के अनुसार "अब यह सिद्ध हो चुका है कि हेडली लश्कर के साथ-साथ अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए भी काम करता था। उसकी यात्राओं, वार्तालाप, पृष्ठभूमि, योजनाओं आदि को लेकर ये एजेंसिया पूरी तरह से अनभिज्ञ नहीं हो सकतीं, लेकिन मुंबई हमले के पहले या बाद में उन्होंने भारत को ऐसी कोई सूचना नहीं दी"
क्या विश्व इस बात से आँख बंद कर सकता है की इराक और अफगानिस्तान मैं कितने बेगुनाह नागरिक मरे गए? और यह सवाल सबके दिल ओ दिमाग मैं आता है की क्यों? क्या सद्दाम के इराक मैं रसेनिक अस्त्र मिले? जवाब है नहीं?
अब जब अमेरिकी सैनिक इराक से हट रहे हैं तो नज़ारा बदलता जा रहा है, अमन और शांति दिखाई दे रही है उन जगहों पे जहाँ से अमेरिकी सैनिक हटाए जा रहे हैं. "शिया धर्मगुरु और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि हाल में अपनी इराक यात्रा के दौरान उन्होंने पाया कि जिन इलाकों से अमेरिकी सैनिक हट चुके हैं, वहाँ अब कोई समस्या नहीं है. दरअसल अमेरिकी फौजी सभी समस्याओं की जड़ थे. उन्होंने कहा कि उन देशों से आतंकवाद का खात्मा हुआ है या हिंसा कम हुई है जहां से अमेरिका ने अपनी सेना हटा ली है जबकि वे देश आतंकवाद और हिंसा से जूझ रहे हैं जहां अमेरिकी सेना डटी हुई है.
इराक के बाद अब इरान अमेरिका के निशाने पे है , जबकि इन दोनों देशों का आतंकवाद से कोई रिश्ता कभी नहीं रहा. और पाकिस्तान जैसे देश के खिलाफ यही अमेरिका किसी युद्ध का एलान नहीं करता क्यों? जब की पकिस्तान और आतंकवाद का रिश्ता पुराना है और वोह भी अमेरिका की ही देन है.
ओबामा से सेंट जेवियर मुंबई की एक छात्रा ने पुछा "“जेहाद से आपका क्या मतलब है ?” जेहाद की आतंकी अपने तरीके से व्याख्या करते हैं जो लोग धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं उन्हें अलग थलग करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए ,जेहाद अगर हिंसा है तो कहीं से भी मान्य नहीं है "
हकीकत सब जानते हैं कि जिहाद बेगुनाहों की जान लेने का नाम नहीं है और ना ही हिंसा का नाम है. तो यह जिहादी जो इस्लाम के उसूलों के खिलाफ काम करते हैं, अचानक २०-२५ वर्षों मैं कहां से पैदा हो गए? आज कल जो जिहाद के नाम पे आतंकवाद फैल रहा है यह इस्लाम की देन नहीं बल्कि विश्व स्तर पे शुरू की हुई एक बड़ी साजिश है, जिसका फाएदा , हकीकत मैं, ना पाकिस्तान को मिल रहा है ना अफ्घनिस्तान को और ना ही किसी मुसलमान को. हकीकत यह है की इस आतंकवाद का ज़िम्मेदार वही है, जो इसका फाएदा ले रहा है? यह कोई धार्मिक उन्माद नहीं ताक़त का उन्माद है.
जब कोई देश, बादशाह, ज़ुल्म करता है तो उसको युद्ध कहा जाता है, और जब यही लोग किसी गिरोह का इस्तेमाल पीछे से अपने राजनितिक फाएदे के लिए करते हैं तो आतंकवाद कहलाता है. ज़ुल्म खुद अपने आप मैं आतंकवाद ख़त्म करने का नाम नहीं बल्कि उसको बढ़ावा देने का नाम है.
ओबामा खुद को मुसलमानों का मित्र कहते हैं लेकिन अधिक अच्छा होता की वोह खुद को इंसानियत का मित्र कहते.
फिर भी हमें आशावादी होना चहिये और यह उम्मीद करते हैं की ओबामा की भारत यात्रा ,भारत देश मैं शांति काएम करने मैं सहायक होगी. आखिरकार आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई हमारी अकेले की लड़ाई तो नहीं है.
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुंबई के ताज होटल पहुँचकर 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों के प्रभावितों से मुलाकात की और कहा "आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमरीका और भारत एक जुट हैं ,इस देश के राष्ट्रपिता की हत्या के मौक़े पर आपके पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने कहा था चाहे हवाएं कितनी ही तेज़ क्यों न हों आंधियां ही क्यों न चल रही हों, हम कभी भी आज़ादी की मशाल को बुझने नहीं देंगे. आप भारत में इस पर विश्वास करते हैं और हम अमरीका में इस पर विश्वास करते हैं. हम आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने के लिए भारत के साथ हैं. हम लोगों ने और सारी दुनिया ने इन हमलों को देखा और सभी को इस पर दुख हुआ. हमलावर विभिन्न धर्मों के लोगों को निशाना बनाना चाहते थे लेकिन विफल रहे. लेकिन हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों ने मिलकर उसका सामना किया"
ओबामा का कहना है की आतंकवाद के ख़िलाफ़ हम भारत के साथ अपने सहयोग को और आगे ले जाना चाहते हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है की कैसे? क्या सिर्फ वादे कर लेने से या बड़ी बड़ी बातें करने से यह सहयोग साबित होगा या वास्तविक आतंकवादीओं की पहचान कर के उनके खिलाफ जंग करने से आतंकवाद ख़त्म होगा.
भारत मैं जितने भी छोटे बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं, उनमें या तो पाकिस्तान का नाम आया या फिर कुछ हिन्दुस्तानी नाम आये जिनको पाकिस्तान ने शरण दी हुई है या फिर कुछ हिन्दू संघटनो का नाम अब सुनाई देने लगा है. घरेलु आतंकवाद से तो हिंदुस्तान निपट लेगा लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे जो आतंकवाद फैला है क्या उससे लड़ने का वादा ओबामा का सही है?
मुंबई मैं अपने वादों मैं ओबामा ने कहीं पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन दिल्ली पहुँच कर ओबामा ने आतंकवादियों को पनाह देने वाले मुल्कों को सचेत किया है. बुश भी अपने समय मैं कम या अधिक ऐसे ही भरोसे दिलाते रहते थे लेकिन किया कुछ भी नहीं.
अमेरिका ने हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया है और आज भी वही हो रहा है. अमेरिका हमेशा से एक ही मकसद पे काम करता रहा है वोह है मुसलमानों के उन देशों पे क़ब्ज़ा करना जहाँ तेल के भण्डार हैं और इस काम के लिए वोह अन्य आस पास के देशों से रिश्ते बना के उनका इस्तेमाल करता है. बड़ी ताकतों को सलाम करना, उनकी ग़लतियों को अनदेखा करना और उनके ज़ुल्मों को भूलते जाना ,इंसान की आदत सी बन गयी है.
ओसामा बिन लादेन ने तालिबान को पैदा किया और ओसामा को अमेरिका ने पैदा किया , इस सत्य से सब वाकिफ हैं. जगदीश्वर चतुर्वेदी की एक रिपोर्ट पढी थी जिसमें उन्होंने कहा था की "विलक्षण बात यह है कि अमेरिका की जो संस्थाएं प्रत्यक्षतः आतंक विरोधी विश्व व्यापी मुहिम का फैसला लेती रही हैं उनके द्वारा ही आतंकियों को आर्थिक-नैतिक-राजनीतिक मदद मिलती रही है"(http://www.pravakta.com/story/१३१२६)
जागरण न्यूज़ के अनुसार "अब यह सिद्ध हो चुका है कि हेडली लश्कर के साथ-साथ अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए भी काम करता था। उसकी यात्राओं, वार्तालाप, पृष्ठभूमि, योजनाओं आदि को लेकर ये एजेंसिया पूरी तरह से अनभिज्ञ नहीं हो सकतीं, लेकिन मुंबई हमले के पहले या बाद में उन्होंने भारत को ऐसी कोई सूचना नहीं दी"
क्या विश्व इस बात से आँख बंद कर सकता है की इराक और अफगानिस्तान मैं कितने बेगुनाह नागरिक मरे गए? और यह सवाल सबके दिल ओ दिमाग मैं आता है की क्यों? क्या सद्दाम के इराक मैं रसेनिक अस्त्र मिले? जवाब है नहीं?
अब जब अमेरिकी सैनिक इराक से हट रहे हैं तो नज़ारा बदलता जा रहा है, अमन और शांति दिखाई दे रही है उन जगहों पे जहाँ से अमेरिकी सैनिक हटाए जा रहे हैं. "शिया धर्मगुरु और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि हाल में अपनी इराक यात्रा के दौरान उन्होंने पाया कि जिन इलाकों से अमेरिकी सैनिक हट चुके हैं, वहाँ अब कोई समस्या नहीं है. दरअसल अमेरिकी फौजी सभी समस्याओं की जड़ थे. उन्होंने कहा कि उन देशों से आतंकवाद का खात्मा हुआ है या हिंसा कम हुई है जहां से अमेरिका ने अपनी सेना हटा ली है जबकि वे देश आतंकवाद और हिंसा से जूझ रहे हैं जहां अमेरिकी सेना डटी हुई है.
इराक के बाद अब इरान अमेरिका के निशाने पे है , जबकि इन दोनों देशों का आतंकवाद से कोई रिश्ता कभी नहीं रहा. और पाकिस्तान जैसे देश के खिलाफ यही अमेरिका किसी युद्ध का एलान नहीं करता क्यों? जब की पकिस्तान और आतंकवाद का रिश्ता पुराना है और वोह भी अमेरिका की ही देन है.
ओबामा से सेंट जेवियर मुंबई की एक छात्रा ने पुछा "“जेहाद से आपका क्या मतलब है ?” जेहाद की आतंकी अपने तरीके से व्याख्या करते हैं जो लोग धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं उन्हें अलग थलग करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए ,जेहाद अगर हिंसा है तो कहीं से भी मान्य नहीं है "
हकीकत सब जानते हैं कि जिहाद बेगुनाहों की जान लेने का नाम नहीं है और ना ही हिंसा का नाम है. तो यह जिहादी जो इस्लाम के उसूलों के खिलाफ काम करते हैं, अचानक २०-२५ वर्षों मैं कहां से पैदा हो गए? आज कल जो जिहाद के नाम पे आतंकवाद फैल रहा है यह इस्लाम की देन नहीं बल्कि विश्व स्तर पे शुरू की हुई एक बड़ी साजिश है, जिसका फाएदा , हकीकत मैं, ना पाकिस्तान को मिल रहा है ना अफ्घनिस्तान को और ना ही किसी मुसलमान को. हकीकत यह है की इस आतंकवाद का ज़िम्मेदार वही है, जो इसका फाएदा ले रहा है? यह कोई धार्मिक उन्माद नहीं ताक़त का उन्माद है.
जब कोई देश, बादशाह, ज़ुल्म करता है तो उसको युद्ध कहा जाता है, और जब यही लोग किसी गिरोह का इस्तेमाल पीछे से अपने राजनितिक फाएदे के लिए करते हैं तो आतंकवाद कहलाता है. ज़ुल्म खुद अपने आप मैं आतंकवाद ख़त्म करने का नाम नहीं बल्कि उसको बढ़ावा देने का नाम है.
ओबामा खुद को मुसलमानों का मित्र कहते हैं लेकिन अधिक अच्छा होता की वोह खुद को इंसानियत का मित्र कहते.
फिर भी हमें आशावादी होना चहिये और यह उम्मीद करते हैं की ओबामा की भारत यात्रा ,भारत देश मैं शांति काएम करने मैं सहायक होगी. आखिरकार आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई हमारी अकेले की लड़ाई तो नहीं है.