रिश्तों का बनना और बिगड़ना एक आम सी बात है. जब भी कोई नया रिश्ता बनता है तो बहुत ख़ुशी होती है और उनके बिगड़ने का दुःख बहुत तकलीफ देता है,...
रिश्तों का बनना और बिगड़ना एक आम सी बात है. जब भी कोई नया रिश्ता बनता है तो बहुत ख़ुशी होती है और उनके बिगड़ने का दुःख बहुत तकलीफ देता है, इसलिए इन रिश्तों को बनाने या बिगाड़ने के पहले हज़ार बार सोंचना चहिये वरना बाद मैं कहना पड़ता है, काश हमने ऐसा ना किया होता.
रिश्ते भी दो प्रकार के हुआ करते हैं, एक वोह जो हमारे जन्म के साथ खुद बन जाते हैं, जैसे, माता पिता, मामा, चची , भाई बहन इत्यादि , और दूसरे वोह रिश्ते जो उम्र के हर दौर मैं हम स्वम बनाते जाते हैं.
हमारे रिश्तेदार एक पेड़ की अलग अलग शाखों की तरह हैं, और हर वोह खानदान फूलता फलता है जिसकी शाखें एक दूसरे की मदद फूलने फलने मैं किया करती है और हर वो पेड़ सूखने लगता है जिसकी शाखें एक दूसरे को ही काटने लगती हैं.
आज लोग अपनी पहचान किरदार की बदौलत नहीं, बल्कि पैसे से बनाना चाहते हैं और इस पैसे कमाने की होड़ मैं हमने एक-दूसरे के बारे में सोचना , एक-दूसरे के दर्द को महसूस करना ही बंद कर दिया है. आज हम टीवी की ख़बरों के कारण दूर देश मैं मुसीबत मैं फँसी एक बिल्ली के हालात तो जानते हैं लेकिन अपने ही शहर के रिश्तेदारों के हाल से अनजान हैं .इसका कारण शायद तरक्की के साथ हमारे अंदर स्वार्थ का बढ़ता जाना ही है. आगे बढ़ते रिश्तेदार के प्रति इर्षा और गिरते रिश्तेदार से अनजान बने रहना आज एक आम सी बात हो गयी है. और यह रिश्तेदार जब कभी आपस मैं मिलते भी हैं, तो मुस्कराहट केवल दिखावा मात्र की ही हुआ करती हैं.
वैसे भी हमें दूसरों के सुख मैं सुखी होने की जगह कुढने की आदत सी पड़ती जा रही है. दूसरों की सफ़ेद कमीज़ देख के हम खुश होने की जगह यह सोंच के कुढ़ते रहते हैं की उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद क्यों? और इसका हल हमें अपनी कमीज़ की गन्दगी निकालने की जगह सामने वाली की कमीज़ काली करना अधिक भाता है. आपस मैं ,नफरत और दुश्मनी का यह भी एक कारण है,
इस्लाम मैं तो उस इंसान पे जन्नत तो क्या जन्नत की खुशबू भी हराम कर दी गयी है, जो अपने रिश्तेदारों से रिश्ता तोड़ ले या उनके साथ फरेब करे. लेकिन इतना सख्त कानून भी हमारे दिलों मैं अपने रिश्तेदारों के लिए मुहब्बत पैदा नहीं कर पा रहा है. यही कारण है की अपने आस पास बहुत से करीबी रिश्तेदारों के होते हुए भी, इंसान अकेले पन का शिकार होता जा रहा है. ख़ुशी तो फिर भी दूसरों को दिखाने के लिए, शान ओ शौकत बताने के लिए रिश्तेदारों से हम बाँट लिया करते है लेकिन अपनी परेशानिओं मैं खुद को अकेला पाते हैं . आज पैसा मानवता से ज्यादा अहम हो गया है.
रिश्तेदारों का रहन सहन, खानपान ,खानदान , दर्जा बहुत हद तक एक जैसा होता है,ये एक दूसरे के बारे मैं बहुत कुछ ऐसा जानते हैं जो बाहर वाले के लिए जान पाना मुश्किल हुआ करता है और इसी कारण बाहरी रिश्तों के मुकाबले, रिश्तेदारों मैं प्रेम और भाईचारे का पैदा होना आसान हुआ करता है और हम ग़लती यह कर जाते हैं, की जो रिश्ते हमने खुद बनाये हैं उनको अक्सर अधिक अहमियत दे जाते हैं , यहाँ तक की अपने ही रिश्तेदार , जो अपने ही जैसा है, उसकी बुराइयां भी , खुद के बनाये दोस्त, चाचा, मामा से करने मैं शर्म नहीं महसूस करते. जो इंसान अपने रिश्तेदारों से वफ़ा ना निभा सके वो गैरों से क्या वफादारी निभाएगा.
एक रिश्तेदार अगर अपने ही किसी रिश्तेदार का हक ना मारे ,आपस के फैसले इन्साफ के साथ करे और बुरे वक़्त मैं एक दूसरे का साथ दें तो रिश्तों मैं कडवाहट आने का दूसरा कोई कारण मुझे नहीं दिखाई देता.
खुद का बनाया रिश्ता अधिकतर ज़रूरतों पे टिका होता है और पूरे जीवन बनता बिगड़ता रहता है. यह बाहरी रिश्ता एक बार छूटा या टूटा तो दोबारा नहीं जुड़ता, रिश्तेदार तो फिर भी मिल जाया करते हैं. इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं की खुद के बनाए दोस्त वफ़ा नहीं करते लेकिन एक इमानदार दोस्त कुछ एक किस्मत वालों को ही मिला करते हैं.
सामाजिक रिश्ते ,जैसे किसी बुज़ुर्ग को मामा, चाचा, कह्देना या महिलाओं का किसी पुरुष से बात करते समय भाई,भाईसाहब कह देना केवल एक सम्मानजनक क भाव को दर्शाता है, और यह हमारी भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है. इन्ही मैं से कुछ लोग अक्सर हमारे अधिक करीब आ जाया करते हैं और बहुत बार यह रिश्ते दोस्ती मैं बदल जाते हैं या यह हमें अपने सगे रिश्तेदारों जैसे लगने लगते हैं.
जहाँ तक इंसानियत के नाते या सम्मान देने वाले रिश्तों की बात है,तो यह कहीं भी बनाया जा सकता है लेकिन करीबी रिश्ते बनाए जाने के पहले बहुत सोंच विचार की आवश्यकता हुआ करती है.यह ध्यान देना आवश्यक है की यह रिश्ता आपस मैं एक दूसरे के मिजाज़ और किरदार के कारण बना है या आपस मैं एक दूसरे की ज़रुरत को पूरा करने के लिए बनाया गया है. क्योंकि ऐसे रिश्ते अक्सर ज़रुरत ख़त्म होने पे, दूरी होने के कारण या बात चीत ना हो सकने के कारण अक्सर धुंधले पड जाया करते हैं
जो रिश्ते हम आपस में बना लेते हैं, उनकी नोकझोंक अक्सर इस ब्लॉग जगत मैं भी देखने को मिला करती है और इसका कारण भी अधिकतर ,ना इंसाफी ,झूट, या किसी मुद्दे पे नज़रिए का फर्क हुआ करता है. अक्सर यह देखने मैं आया है की जब हम किसी से दोस्ती करते हैं तो उसके आस पास के दोस्त या रिश्तेदार भी जाने या अनजाने मैं आपके करीब आ जाया करते हैं जो अधिकतर आप की अपने दोस्त से अनबन होने साथ दूर भी हो जाया करते हैं. इसलिए अपने दोस्त के मिलने वालों को कभी अपने दोस्त से अधिक अहमियत नहीं दी जानी चहिये, इससे रिश्तों मैं कडवाहट आ जाया करती है.
हजरत अली (अ.स) का यह कथन की तुम्हारे दोस्त भी तीन तरह के हैं और दुश्मन भी तीन क़िस्म के हैं। तुम्हारा दोस्त, तुम्हारे दोस्त का दोस्त और तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन तुम्हारे दोस्त हैं.एक ऐसा सत्य है, जिसको हम नज़रंदाज़ करते हैं और इसी कारण से भी अक्सर हमारे अच्छे मित्र हमसे दूर हो जाते हैं. हम अपने दोस्त को ना पसंद करने वालों से अक्सर दूरी नहीं बना पाते और दलील यह देते हैं , की उसका रिश्ता उसके साथ और हमारा रिश्ता हमारे साथ. लेकिन यह व्यवहारिक नहीं है. किसी को भी अपने दुश्मनों से मिलने वाले लोग पसंद नहीं और ऐसा करने पे आपकी दोस्ती या ताल्लुकात अपने दोस्त के साथ ख़त्म हो जाया करते हैं.
मैंने संक्षेप मैंने कुछ ऐसी बातों पे प्रकाश डालने की कोशिश की है जिनके कारण हमारे आपसी रिश्तों मैं दरार पड जाया करती है. रिश्तों को निभाना भी एक कला है, जिसका सीखना इस समाज मैं अमन , शांति काएम रखने के लिए आवश्यक हुआ करता है. मैं यह भी आशा करता हूँ की हमारे ब्लोगेर भाई,बहन भी इस विषय पे कुछ प्रकाश डालेंगे.
रिश्तेदारों से, दोस्तों से हमारे अच्छे रिश्ते हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं। सकारात्मक ऊर्जा के साथ वे आपको जीने का हौंसला देते हैं। जब जिंदगी के रास्ते बंद हो जाते हैं और कोई उम्मीद नहीं बचती तब अच्छे रिश्तेदारों और दोस्त ही जीने का सहारा बनते हैं.
तो चलिए इस दीपावली मैं अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और प्रियजनों से अपने रिश्ते और मज़बूत करें, शिकायतें दूर करें और यदि आपकी ग़लती के कारण रिश्तों मैं कडवाहट आयी थी तो माफी मांग लें क्यों की माफी मांगने वाला ही हकीकत मैं बड़ा होता है.
रिश्ते भी दो प्रकार के हुआ करते हैं, एक वोह जो हमारे जन्म के साथ खुद बन जाते हैं, जैसे, माता पिता, मामा, चची , भाई बहन इत्यादि , और दूसरे वोह रिश्ते जो उम्र के हर दौर मैं हम स्वम बनाते जाते हैं.
हमारे रिश्तेदार एक पेड़ की अलग अलग शाखों की तरह हैं, और हर वोह खानदान फूलता फलता है जिसकी शाखें एक दूसरे की मदद फूलने फलने मैं किया करती है और हर वो पेड़ सूखने लगता है जिसकी शाखें एक दूसरे को ही काटने लगती हैं.
आज लोग अपनी पहचान किरदार की बदौलत नहीं, बल्कि पैसे से बनाना चाहते हैं और इस पैसे कमाने की होड़ मैं हमने एक-दूसरे के बारे में सोचना , एक-दूसरे के दर्द को महसूस करना ही बंद कर दिया है. आज हम टीवी की ख़बरों के कारण दूर देश मैं मुसीबत मैं फँसी एक बिल्ली के हालात तो जानते हैं लेकिन अपने ही शहर के रिश्तेदारों के हाल से अनजान हैं .इसका कारण शायद तरक्की के साथ हमारे अंदर स्वार्थ का बढ़ता जाना ही है. आगे बढ़ते रिश्तेदार के प्रति इर्षा और गिरते रिश्तेदार से अनजान बने रहना आज एक आम सी बात हो गयी है. और यह रिश्तेदार जब कभी आपस मैं मिलते भी हैं, तो मुस्कराहट केवल दिखावा मात्र की ही हुआ करती हैं.
वैसे भी हमें दूसरों के सुख मैं सुखी होने की जगह कुढने की आदत सी पड़ती जा रही है. दूसरों की सफ़ेद कमीज़ देख के हम खुश होने की जगह यह सोंच के कुढ़ते रहते हैं की उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद क्यों? और इसका हल हमें अपनी कमीज़ की गन्दगी निकालने की जगह सामने वाली की कमीज़ काली करना अधिक भाता है. आपस मैं ,नफरत और दुश्मनी का यह भी एक कारण है,
इस्लाम मैं तो उस इंसान पे जन्नत तो क्या जन्नत की खुशबू भी हराम कर दी गयी है, जो अपने रिश्तेदारों से रिश्ता तोड़ ले या उनके साथ फरेब करे. लेकिन इतना सख्त कानून भी हमारे दिलों मैं अपने रिश्तेदारों के लिए मुहब्बत पैदा नहीं कर पा रहा है. यही कारण है की अपने आस पास बहुत से करीबी रिश्तेदारों के होते हुए भी, इंसान अकेले पन का शिकार होता जा रहा है. ख़ुशी तो फिर भी दूसरों को दिखाने के लिए, शान ओ शौकत बताने के लिए रिश्तेदारों से हम बाँट लिया करते है लेकिन अपनी परेशानिओं मैं खुद को अकेला पाते हैं . आज पैसा मानवता से ज्यादा अहम हो गया है.
रिश्तेदारों का रहन सहन, खानपान ,खानदान , दर्जा बहुत हद तक एक जैसा होता है,ये एक दूसरे के बारे मैं बहुत कुछ ऐसा जानते हैं जो बाहर वाले के लिए जान पाना मुश्किल हुआ करता है और इसी कारण बाहरी रिश्तों के मुकाबले, रिश्तेदारों मैं प्रेम और भाईचारे का पैदा होना आसान हुआ करता है और हम ग़लती यह कर जाते हैं, की जो रिश्ते हमने खुद बनाये हैं उनको अक्सर अधिक अहमियत दे जाते हैं , यहाँ तक की अपने ही रिश्तेदार , जो अपने ही जैसा है, उसकी बुराइयां भी , खुद के बनाये दोस्त, चाचा, मामा से करने मैं शर्म नहीं महसूस करते. जो इंसान अपने रिश्तेदारों से वफ़ा ना निभा सके वो गैरों से क्या वफादारी निभाएगा.
एक रिश्तेदार अगर अपने ही किसी रिश्तेदार का हक ना मारे ,आपस के फैसले इन्साफ के साथ करे और बुरे वक़्त मैं एक दूसरे का साथ दें तो रिश्तों मैं कडवाहट आने का दूसरा कोई कारण मुझे नहीं दिखाई देता.
खुद का बनाया रिश्ता अधिकतर ज़रूरतों पे टिका होता है और पूरे जीवन बनता बिगड़ता रहता है. यह बाहरी रिश्ता एक बार छूटा या टूटा तो दोबारा नहीं जुड़ता, रिश्तेदार तो फिर भी मिल जाया करते हैं. इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं की खुद के बनाए दोस्त वफ़ा नहीं करते लेकिन एक इमानदार दोस्त कुछ एक किस्मत वालों को ही मिला करते हैं.
सामाजिक रिश्ते ,जैसे किसी बुज़ुर्ग को मामा, चाचा, कह्देना या महिलाओं का किसी पुरुष से बात करते समय भाई,भाईसाहब कह देना केवल एक सम्मानजनक क भाव को दर्शाता है, और यह हमारी भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है. इन्ही मैं से कुछ लोग अक्सर हमारे अधिक करीब आ जाया करते हैं और बहुत बार यह रिश्ते दोस्ती मैं बदल जाते हैं या यह हमें अपने सगे रिश्तेदारों जैसे लगने लगते हैं.
जहाँ तक इंसानियत के नाते या सम्मान देने वाले रिश्तों की बात है,तो यह कहीं भी बनाया जा सकता है लेकिन करीबी रिश्ते बनाए जाने के पहले बहुत सोंच विचार की आवश्यकता हुआ करती है.यह ध्यान देना आवश्यक है की यह रिश्ता आपस मैं एक दूसरे के मिजाज़ और किरदार के कारण बना है या आपस मैं एक दूसरे की ज़रुरत को पूरा करने के लिए बनाया गया है. क्योंकि ऐसे रिश्ते अक्सर ज़रुरत ख़त्म होने पे, दूरी होने के कारण या बात चीत ना हो सकने के कारण अक्सर धुंधले पड जाया करते हैं
जो रिश्ते हम आपस में बना लेते हैं, उनकी नोकझोंक अक्सर इस ब्लॉग जगत मैं भी देखने को मिला करती है और इसका कारण भी अधिकतर ,ना इंसाफी ,झूट, या किसी मुद्दे पे नज़रिए का फर्क हुआ करता है. अक्सर यह देखने मैं आया है की जब हम किसी से दोस्ती करते हैं तो उसके आस पास के दोस्त या रिश्तेदार भी जाने या अनजाने मैं आपके करीब आ जाया करते हैं जो अधिकतर आप की अपने दोस्त से अनबन होने साथ दूर भी हो जाया करते हैं. इसलिए अपने दोस्त के मिलने वालों को कभी अपने दोस्त से अधिक अहमियत नहीं दी जानी चहिये, इससे रिश्तों मैं कडवाहट आ जाया करती है.
हजरत अली (अ.स) का यह कथन की तुम्हारे दोस्त भी तीन तरह के हैं और दुश्मन भी तीन क़िस्म के हैं। तुम्हारा दोस्त, तुम्हारे दोस्त का दोस्त और तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन तुम्हारे दोस्त हैं.एक ऐसा सत्य है, जिसको हम नज़रंदाज़ करते हैं और इसी कारण से भी अक्सर हमारे अच्छे मित्र हमसे दूर हो जाते हैं. हम अपने दोस्त को ना पसंद करने वालों से अक्सर दूरी नहीं बना पाते और दलील यह देते हैं , की उसका रिश्ता उसके साथ और हमारा रिश्ता हमारे साथ. लेकिन यह व्यवहारिक नहीं है. किसी को भी अपने दुश्मनों से मिलने वाले लोग पसंद नहीं और ऐसा करने पे आपकी दोस्ती या ताल्लुकात अपने दोस्त के साथ ख़त्म हो जाया करते हैं.
मैंने संक्षेप मैंने कुछ ऐसी बातों पे प्रकाश डालने की कोशिश की है जिनके कारण हमारे आपसी रिश्तों मैं दरार पड जाया करती है. रिश्तों को निभाना भी एक कला है, जिसका सीखना इस समाज मैं अमन , शांति काएम रखने के लिए आवश्यक हुआ करता है. मैं यह भी आशा करता हूँ की हमारे ब्लोगेर भाई,बहन भी इस विषय पे कुछ प्रकाश डालेंगे.
रिश्तेदारों से, दोस्तों से हमारे अच्छे रिश्ते हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं। सकारात्मक ऊर्जा के साथ वे आपको जीने का हौंसला देते हैं। जब जिंदगी के रास्ते बंद हो जाते हैं और कोई उम्मीद नहीं बचती तब अच्छे रिश्तेदारों और दोस्त ही जीने का सहारा बनते हैं.
तो चलिए इस दीपावली मैं अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और प्रियजनों से अपने रिश्ते और मज़बूत करें, शिकायतें दूर करें और यदि आपकी ग़लती के कारण रिश्तों मैं कडवाहट आयी थी तो माफी मांग लें क्यों की माफी मांगने वाला ही हकीकत मैं बड़ा होता है.