आज कल बहुत से ब्लोगेर्स ना जाने क्यों नफरतों के बीज बोने मैं बड़े ही ज़ोर शोर से लगे हुए हैं, धार्मिक आस्था और भावनाओं का सहारा ले के हिन्द...
आज कल बहुत से ब्लोगेर्स ना जाने क्यों नफरतों के बीज बोने मैं बड़े ही ज़ोर शोर से लगे हुए हैं, धार्मिक आस्था और भावनाओं का सहारा ले के हिन्दू और मुसलमान के बीच नफरत फैला रहे हैं. यकीनन इसमें उनका कोई ना कोई जाती फैदा ही होगा, वरना धर्म तो कोई भी हो इंसानियत के खिलाफ नफरत का पैग़ाम देने को सही नहीं कहता, एक इंसान कभी ज़ालिम नहीं हो सकता जब तक की वोह किसी बड़ी लालच मैं अँधा ना हो जाए..
अध्यात्मवाद को तिलांजलि देकर धार्मिक कट्टरवाद की राह पर चलना इंसानियत के खिलाफ है क्योंकि इसमें हजारों बेगुनाहों की जान जाने का खतरा हमेशा बना रहता है. धार्मिक कट्टरवाद की राह पर चलने वाले अक्सर ऐसी दलीलें पेश करते हैं, जैसे उनके धर्म पे और उसको मानने वालों पे बड़ा ज़ुल्म होता आया है. जब की हकीकत मैं धार्मिक कट्टरवाद सियासी संस्थाओं और दलों का वो हथियार है, जिसके ज़रिये राज करने की कोशिश की जाती रही है. धार्मिक कट्टरवाद अक्सर आगे चल कर आतंकवाद मैं बदल जाता है और आतंकवाद का राजनीतिकरण आज आपको बहुत से देशों मैं देखने को मिल जाएगा. जिन जिन देशों मैं आतंकवाद का राजनीतिकरण हुआ या होता जा रहा है वोह देश कभी तरक्की नहीं कर सका. किसी धर्म की कुछ धार्मिक कट्टरवादी संस्थाओं या दलों के कारण, या कुछ बादशाहों के ज़ुल्म के कारण,उस धर्म के सभी लोगों को कटघरे मैं खड़ा करदेना या उनके सहारे एक दूसरे के दिलों मैं नफरत पैदा करना कहां तक सही है? मैं इस बात पे बार बार जोर देता हूँ की हम सबको चहिये की सभी धर्मों का अध्ययन करें और देखें की सभी धर्म क्या सन्देश देते हैं तभी धर्म के नाम पे नफरत की दीवार गिराई जा सकती है.
यह भी एक दलील दी जाती है की धर्म अगर शांति का सन्देश भी देता हो और उसको मानने वाला अशांति फैलाए तो आम इंसान तो उसी धर्म को बुरा कहेगी. हकीकत मैं यह इंसाफ नहीं है. गुण-अवगुण हर इंसान में पाए जाते हैं, इसका उस इंसान के धर्म से कुछ लेना देना नहीं है. अगर नफरत करना ही है तो उस संस्था, उस दल या इंसान से करो, जो बेगुनाहों की जान लेता है ना की उस समुदाय या धर्म के सभी लोगों के लिए नफरत के बीज बो के इंसानियत का क़त्ल करो.
इंसान की जान की कीमत इस्लाम मैं, किसी भी मस्जिद, नमाज़, रोज़े. हज्ज, दाढ़ी या बुर्के के फतवों से ऊपर है, यह बात हर मुसलमान और ग़ैर मुसलमान दोनों को समझनी चहिये.
अगर एक इंसान सुबह रोज़ा रख के, हज्ज पे जाने के लिए निकला और रास्ते मैं किसी दरिया किनारे नमाज़ पढने लगा. इतने मैं उसने किसी डूबने वाले की आवाज़ सुनी "हे राम मुझे बचाओ" . इस्लाम के अनुसार उस इंसान के लिए यह ज़रूरी है की,नमाज़ को तोड़ दे, हज्ज के लिए अगर ना भी जा पाए तो ठीक लेकिन उस इंसान की जान बचा ले. जबकि उस इंसान की मदद की आवाज़ "हे राम मुझे बचाओ स्वम यह कह रही है की मदद मांगने वाला हिन्दू धर्म का है. अब आप स्वम फैसला करें क्या यह इस्लाम , किसी बेगुनाह की जान लेने की इजाज़त दे सकता है.
ठीक इसी प्रकार इस्लाम मैं नमाज़ केवल उसी जगह पे पढ़ी जा सकती है जो उसकी अपनी हो, और अगर किसी और की है तो उसने वहां नमाज़ पढने की इजाज़त दी हो. अगर ऐसा ना हुआ तो किसी और की जगह पे पढना नमाज़ सही नहीं. क्या यह इस्लाम धर्म किसी और की इबादतगाह, मंदिर या चर्च को तोड़ के वहां नमाज़ पढने की इजाज़त दे सकता है?
यह बात सभी मुसलमान मानते हैं की कुरान की आयातों को पढने के बहुत से फाएदे हैं, आयतल कुर्सी के लिए कहा गया है की इसको पढने से पडोसी की भी हिफाज़त होती है. यहाँ कहीं नहीं कहा गया की दूसरे धर्म के मानने वाले पडोसी की हिफाज़त नहीं होती. हर मुसलमान आयतल कुर्सी पढ़ा करता है या यह कह लें की पडोसी की भी हिफाज़त की दुआ करता है. अब ऐसा मुसलमान क्या किसी बेगुनाह की जान ले सकता है या किसी और धर्म को मानने वालों से नफरत कर सकता है?
किसी का हक मार के, किसी बेगुनाह की जान बचा के,किसी भी इंसान को तकलीफ पहुंचा के , खुद को मुसलमान कहना शर्म की बात है और अधिकतेर मुसलमान इस बात को जानते भी है और मानते भी है.
आम इंसान आज भी शांति पसंद है, और शांति चाहता है. हम एक बहुजातीय, बहुभाषीय, बहुधर्मीय देश भारत के नागरिक हैं, और यह हमरा धर्म है की अपनी एकता और अखंडता को शांति और प्रेम सन्देश से बचाएं.
आज भारत देश यह आवाज़ दे रहा है “राम मुझे बचाओ” इन नफरत के सौदागरों और इंसानियत दुश्मनों से.
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