आज बहुत सी बातें एक साथ घूम रही है, चलिए कुछ इधर की कुछ उधर की बातें हो जाएं : पश्चिमी सभ्यता और हिन्दुस्तानी सभ्यता का अंतर: हमारी ...
आज बहुत सी बातें एक साथ घूम रही है, चलिए कुछ इधर की कुछ उधर की बातें हो जाएं:
पश्चिमी सभ्यता और हिन्दुस्तानी सभ्यता का अंतर: हमारी पूर्वी तहज़ीब और पश्चिमी तहज़ीब में ख़ास फर्क़ है. वे सिमिलैरिटी यानी समानता की बात करते हैं और हम इक्वैलिटी यानी बराबरी की बात करते हैं. हम समानता की बात इसीलिए नहीं करते कि हर समाज और हर मज़हब में हर काम औरत से नहीं लिया जा सकता. जैसे मुसलमान औरत मुर्दे को क़ब्र में नहीं उतार सकती, क्योंकि खुदा ने उसके दिल को ममता से भरा हुआ बनाया है. ऐसा न हो कि वह इस काम को अंजाम देने में कहीं खुद ही न मर जाए. बिल्कुल ऐसे ही हमारे देश के हिंदू समाज में औरत चिता को अग्नि नहीं देती, क्योंकि वहां भी शायद यही फलस़फा है. इस तरह हिंदुस्तानी समाज में औरत के लिए समानता नहीं, बराबरी की बात कही गई है. इसीलिए हम सारे हिंदुस्तानी चाहे किसी समाज के हों, सिमिलैरिटी में नहीं, बल्कि इक्वैलिटी में विश्वास करते हैं. मेरा मानना है की औरत त्याग और ममता की की मिसाल हुआ करती है, इसे प्रेम से जीता जा सकता है, क्रोध या नीचा दिखा के नहीं.
औरत का पर्दा और ग़ुलामी: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति मिस्टर रीगन ने एक वक़्त अपनी संसद में कहा कि ईरान में औरतों की बहुत बुरी हालत है. उऩ्हें जानवरों की तरह परदे में बंद कर दिया गया है, तो आयतुल्लाह खुमैनी ने तेहरान में कहा कि मैं मिस्टर रीगन को दावत देता हूं. हम साथ जंगल में जाते हैं. अगर जंगल के जानवर परदे में हैं तो हम अपने समाज को ठीक कर लेते हैं और अगर जंगल के जानवर नंगे हों तो वह अपने समाज में सुधार कर लें.
क्या यह भारतीय संस्कृति की देन है या हम कहीं और से ले आये हैं ? :आज इस दौर मैं , हमारे समाज मैं माता को सर ढके पूरे कपड़ों मैं, और बेटी को कम कपड़ों मैं देखा जाना एक आम सी बात है; यही बेटी अगले १०-१५ सालों मैं माता बन चुकी होगी और सर ढके पूरे कपड़ों मैं किसी स्त्री के देखने के लिए किसी अजाएबघर मैं जाना होगा. अमरीकी लेखिका सुश्री वेन्डी शालीत लिखती हैः हम सांस्कृतिक दृष्टि से एक संवेदनशील युग में पहुंच गए हैं। इस समय पश्चिमी समाजों में परिवारों का टूटना, तलाक़, नशे की लत अशलीलता वह समस्याएं हैं जिनसे विशेष रूप से महिलाएं और लड़कियां चिंतित हैं। आज लड़कियों की इच्छा अतीत से भिन्न है। युवा पीढ़ी इस निरंकुशता से ऊब कर अब जीवन के प्राकृतिक ढर्रे पर लौटना चाहती है।
अब कुछ शायर और कविओं की बात हो जाए: मेरी शायर और कविओं से बहुत अच्छी ताल मेल नहीं बैठ पाती , जब की मैं भी एक शायर रह चुका हूँ. कारण : शायर और कवि, अपनी कविताओं मैं, किरदार पे, भक्ति पे, देश प्रेम पे, सदाक़त पे, सदाचार पे, इश्क और मुहब्बत पे बहुत कुछ लिखा करते हैं, लेकिन केवल २--४% ही ऐसे हैं जो उन बातों पे चलते भी हैं. इसमें कविओं की ग़लती नहीं, बल्कि मेरी ग़लती है की, मैं उनको वो समझ लेता हूँ जो वो लिखते हैं और बाद मैं वैसा ना मिलने पे तकलीफ हुआ करती है.
दुनिया से अधिक प्रेम के बारे मैं: अधिकतर लोग धार्मिक किताबों की नसीहतों पे अपनी सहूलियतों के अनुसार ही चला करते हैं. इसका कारण है उनका इस दुनिया से अधिक प्रेम करना. हजरत अली (अ.स) ने कहा: कोशिश करो की तुम दुनिया मैं रहो; दुनिया तुममे ना रहे, क्यूँ की कश्ती जब तक पानी मैं रहती है खूब तैरती है लेकिन जब पानी कश्ती मैं आ जाए तो वोह डूब जाती है.
करवा चौथ का व्रत: हिन्दुस्तान अपनी संस्कृति और परंपरा के लिये हमेशा ही पहचाना जाता रहा है। यहां की महिलाएं चाहे कितनी ही आधुनिक क्यों न हो जाएं, लेकिन करवाचौथ का व्रत पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ रखती हैं.ऐसे मैं पुरुष को भी कभी कोई व्रत पत्नी की लम्बी आयु के लिए रखना अवश्य चहिये.
गुण-अवगुण हर इंसान में पाए जाते हैं। भले ही कोई इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो उसमें भी बुराई हो सकती है। इसलिए जीवनसाथी की कमियों की बजाए अच्छाइयों पर ध्यान दें. प्रशंसा शब्द भले ही छोटा हो परंतु आप जिसकी तारीफ करते हैं, उससे एक ओर उसकी कार्यकुशलता बढ़ती है। वहीं संबंधों में मधुरता भी आती है। इसलिए अच्छा कार्य करने पर प्रशंसा करने में कभी भी कंजूसी न करें.