आज के दौर मैं प्रेम सन्देश की जगह अब नफरत के गर्म बाज़ार ने ले ली है. बस किसी भी तरह से इंसानों के जज़्बात को भड़काओ और एक दूसरे के दिलों मै...
आज के दौर मैं प्रेम सन्देश की जगह अब नफरत के गर्म बाज़ार ने ले ली है. बस किसी भी तरह से इंसानों के जज़्बात को भड़काओ और एक दूसरे के दिलों मैं नफरत पैदा करो. धर्म की आड़ मैं, कभी हिन्दुस्तान पाकिस्तान के बटवारे की आड़ मैं, कभी बादशाहों के किरदार की आड़ मैं । नफरत के बीज दिलों मैं ऐसे बोये जा रहे हैं जैसे इंसानियत और मानवाधिकार का कोई वजूद ही नहीं रह गया हो।
यह लेख़ उनलोगों के लिए है जो यह नहीं जान पाते की आखिर इस्लाम है क्या? यह अमन और शांति का सन्देश देता है या नफरत और आतंक का ?
मनुष्य के जीने के अधिकार: मानवाधिकार उन अधिकारों में से है जो मानवीय प्रवृत्ति का अनिवार्य अंश है। इसमें जीने के अधिकार को, मुनष्य का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अधिकार कहा जा सकता है। मूल रूप से अन्य सभी मानवाधिकार, उसी समय प्राप्त हो सकते हैं जब मनुष्य के जीने के अधिकार पर ध्यान दिया गया हो ।
जीवन ईश्वर का उपहार और ऐसा अधिकार है जिसे हर मनुष्य के लिए निश्चित बनाया गया है और सारे लोगों और समाजों तथा सरकारों का यह कर्तव्य है कि वह इस अधिकार की रक्षा करें। इस्लाम की दृष्टि से हर मनुष्य का जीने का अधिकार इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि क़ुरआने मजीद ने इस अधिकार के हनन को सारे मनुष्यों की हत्या के समान कहा है। कुरआन मैं कहा गया है अगर एक बेगुनाह की जान ली तो ऐसा है जैसे समस्त मनुष्य जाती की हत्या की। इसी लिए इस्लाम ने युद्ध को अस्वीकारीय बताया है और केवल विशेष परिस्थितियों जैसे आत्म रक्षा में या पीड़ितों की रक्षा के लिए युद्ध को सही ठहराया है किंतु इस प्रकार के युद्धों में भी आम नागरिकों, बंदियों, घायलों , महिलाओं बल्कि पशुओं और पेड़ पौधों के अधिकारों पर ध्यान देना भी आवश्यक बताया गया है। मुस्लिम के धर्म गुरु मौलाना क़ल्ब ए सादिक साहब ने अभी कुछ दिन पहले कहा था की अगर आप के पास केवेल दो विकल्प हो, किसी इंसान की जान बचा लो या मस्जिद तोड़ दो, तो इस्लाम कहता है, इंसान की जान बचालो ।
मानव सम्मान: इस्लाम, मानव सम्मान और उसकी प्रतिष्ठा को अत्याधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान समझता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य,भलाई द्वारा अपना सम्मान बढ़ा सकते हैं और इसी प्रकार भष्टाचार और पापों द्वारा अपना सम्मान गंवा भी सकते हैं।
समानता का अधिकार : सामूहिक रूप से मानव समाज का हर सदस्य, एक परिवार का भाग है जिन्हें ईश्वर की उपासना और आदम की संतान होने के कारण एक समान समझा जाता है। सारे लोग, मानवीय सम्मान और कर्तव्यों की दृष्टि से समान हैं बिना किसी जाति, वर्ण, भाषा, लिंग, धर्म या विचारधारा या सामाजिक स्थान के अंतर्गत भेदभाव के। इस आधार पर मानवता में सारे लोग एक समान हैं और जो विषय उनके मध्य एक दूसरे से श्रेष्ठता का कारण बनता है वह पापों से बचना और ईश्वर से निकटता है। ईश्वर के निकट सबसे अधिक प्रिय वही है जो अन्य मनुष्यों के लिए सब से अधिक लाभदायक होता है और किसी को भी किसी पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है और यदि है तो उसका मापदंड ईश्वर से भय और पापों से दूरी ही है जो निश्चित रूप से एक आध्यात्मिक विशेषता है और ईश्वर उसका प्रतिफल देता है
महिला व पुरुष के मध्य समानता: मानवीय दृष्टि से महिला व पुरुष समान हैं और जिस प्रकार से महिलाओं के कर्तव्य हैं उसी प्रकार उन्हें अधिकार भी दिये गये हैं और महिला को, एक स्वाधीन सामाजिक व आर्थिक व्यक्तित्व वाला सदस्य समझा गया है। जैसाकि हम देखते हैं इस्लाम में महिलाओं के लिए बहुत से अधिकार रखे गये हैं और उन्हें व्यक्तित्व की दृष्टि से पुरुषों की भांति समझा गया है। किंतु यह भी निश्चित है कि महिला और पुरुष के मध्य मौजूद कुछ अंतरों के कारण कुछ अधिकारों और कर्तव्यों में भी अंतर पाया जाता है। इस्लाम मैं पुरुष को परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला तथा रक्षक बताया गया है ।
अब अगर कोई मुसलमान इस्लाम की बताई इन बातों पे अमल नहीं करता है तो यह उस इंसान की अपनी कमी है , ना की इस्लाम धर्म मैं कोई कमी है। किसी बेगुनाह पे ज़ुल्म करना , आतंक फैलाना, किसी के भी धर्म को बुरा भला कहना , किसी के भी धर्म को बदनाम करना, इंसानों के बीच नफरत की दीवारें खड़ी करना, किसी भी धर्म का सन्देश नहीं और अगर किसी धर्म मैं यह आदेश दिया गया है, तो वोह धर्म नहीं अधर्म है।
यह लेख़ उनलोगों के लिए है जो यह नहीं जान पाते की आखिर इस्लाम है क्या? यह अमन और शांति का सन्देश देता है या नफरत और आतंक का ?
मनुष्य के जीने के अधिकार: मानवाधिकार उन अधिकारों में से है जो मानवीय प्रवृत्ति का अनिवार्य अंश है। इसमें जीने के अधिकार को, मुनष्य का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अधिकार कहा जा सकता है। मूल रूप से अन्य सभी मानवाधिकार, उसी समय प्राप्त हो सकते हैं जब मनुष्य के जीने के अधिकार पर ध्यान दिया गया हो ।
जीवन ईश्वर का उपहार और ऐसा अधिकार है जिसे हर मनुष्य के लिए निश्चित बनाया गया है और सारे लोगों और समाजों तथा सरकारों का यह कर्तव्य है कि वह इस अधिकार की रक्षा करें। इस्लाम की दृष्टि से हर मनुष्य का जीने का अधिकार इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि क़ुरआने मजीद ने इस अधिकार के हनन को सारे मनुष्यों की हत्या के समान कहा है। कुरआन मैं कहा गया है अगर एक बेगुनाह की जान ली तो ऐसा है जैसे समस्त मनुष्य जाती की हत्या की। इसी लिए इस्लाम ने युद्ध को अस्वीकारीय बताया है और केवल विशेष परिस्थितियों जैसे आत्म रक्षा में या पीड़ितों की रक्षा के लिए युद्ध को सही ठहराया है किंतु इस प्रकार के युद्धों में भी आम नागरिकों, बंदियों, घायलों , महिलाओं बल्कि पशुओं और पेड़ पौधों के अधिकारों पर ध्यान देना भी आवश्यक बताया गया है। मुस्लिम के धर्म गुरु मौलाना क़ल्ब ए सादिक साहब ने अभी कुछ दिन पहले कहा था की अगर आप के पास केवेल दो विकल्प हो, किसी इंसान की जान बचा लो या मस्जिद तोड़ दो, तो इस्लाम कहता है, इंसान की जान बचालो ।
मानव सम्मान: इस्लाम, मानव सम्मान और उसकी प्रतिष्ठा को अत्याधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान समझता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य,भलाई द्वारा अपना सम्मान बढ़ा सकते हैं और इसी प्रकार भष्टाचार और पापों द्वारा अपना सम्मान गंवा भी सकते हैं।
समानता का अधिकार : सामूहिक रूप से मानव समाज का हर सदस्य, एक परिवार का भाग है जिन्हें ईश्वर की उपासना और आदम की संतान होने के कारण एक समान समझा जाता है। सारे लोग, मानवीय सम्मान और कर्तव्यों की दृष्टि से समान हैं बिना किसी जाति, वर्ण, भाषा, लिंग, धर्म या विचारधारा या सामाजिक स्थान के अंतर्गत भेदभाव के। इस आधार पर मानवता में सारे लोग एक समान हैं और जो विषय उनके मध्य एक दूसरे से श्रेष्ठता का कारण बनता है वह पापों से बचना और ईश्वर से निकटता है। ईश्वर के निकट सबसे अधिक प्रिय वही है जो अन्य मनुष्यों के लिए सब से अधिक लाभदायक होता है और किसी को भी किसी पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है और यदि है तो उसका मापदंड ईश्वर से भय और पापों से दूरी ही है जो निश्चित रूप से एक आध्यात्मिक विशेषता है और ईश्वर उसका प्रतिफल देता है
महिला व पुरुष के मध्य समानता: मानवीय दृष्टि से महिला व पुरुष समान हैं और जिस प्रकार से महिलाओं के कर्तव्य हैं उसी प्रकार उन्हें अधिकार भी दिये गये हैं और महिला को, एक स्वाधीन सामाजिक व आर्थिक व्यक्तित्व वाला सदस्य समझा गया है। जैसाकि हम देखते हैं इस्लाम में महिलाओं के लिए बहुत से अधिकार रखे गये हैं और उन्हें व्यक्तित्व की दृष्टि से पुरुषों की भांति समझा गया है। किंतु यह भी निश्चित है कि महिला और पुरुष के मध्य मौजूद कुछ अंतरों के कारण कुछ अधिकारों और कर्तव्यों में भी अंतर पाया जाता है। इस्लाम मैं पुरुष को परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला तथा रक्षक बताया गया है ।
अब अगर कोई मुसलमान इस्लाम की बताई इन बातों पे अमल नहीं करता है तो यह उस इंसान की अपनी कमी है , ना की इस्लाम धर्म मैं कोई कमी है। किसी बेगुनाह पे ज़ुल्म करना , आतंक फैलाना, किसी के भी धर्म को बुरा भला कहना , किसी के भी धर्म को बदनाम करना, इंसानों के बीच नफरत की दीवारें खड़ी करना, किसी भी धर्म का सन्देश नहीं और अगर किसी धर्म मैं यह आदेश दिया गया है, तो वोह धर्म नहीं अधर्म है।