अरब मैं जब इस्लाम आया था तो वहाँ ग़रीबी भी थी, जहालत भी थी. हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के किरदार को उन लोगों ने इतना बुलंद देखा, कि ईमान ले आय...
अरब मैं जब इस्लाम आया था तो वहाँ ग़रीबी भी थी, जहालत भी थी. हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के किरदार को उन लोगों ने इतना बुलंद देखा, कि ईमान ले आये, इस्लाम कुबूल कर लिया।
इस्लाम हकीकत मैं किरदार की बुलंदी से फैला है और इस सुबूत यह है की हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने एलान ए रिसालत उस वक़्त किया जब उनकी उम्र ४० साल की थी, और उनकी इमादारी, एखलाक, अमानतदारी, की लोग कसमें खाया करते थे। लोगों ने उनका बुलंद किरदार देखा और उनकी बात पे ईमान लाये, इस्लाम को कुबूल किया, कुरान को हक और अल्लाह की किताब माना।
हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने बताया बेईमानी की चिकनी रोटी खाने की बजाए अगर ईमानदारी की रुखी रोटी भी आदमी को नसीब हो जाए तो वह भी उसके लिए ज्यादा सुकूनदेह होगी। मोहम्मद साहब ने तो साफ-साफ कहा है, जो लोग बेईमानी से औरों की दौलत को हड़प रहे हैं, वे लोग अपने ही पेट में आग भर रहे हैं। जीवन के लिए धन की आवश्यकता है पर उसे उपार्जित करते वक्त नैतिकता को तिलांजलि नहीं दी जानी चाहिए। अगर किसी को आप कोई चीज नापकर दे रहे हैं तो बेईमानी न रखें और तौलकर दे रहे हैं तो उसमें भी ईमानदारी रखें। धन को पाने के लिए अगर आदमी अपने सदाचार को तिलांजलि देता है तो उसके जीवन के अन्तिम क्षणों मे पश्चाताप के अलावा उसके पास कुछ भी नहीं रहता है। आदमी पवित्र जीवन जीए, हमारी आंखें पवित्र हो, जिह्वा पवित्र हो, हमारी हर इन्द्रिय पवित्र हो। अगर ध्यान रख सको तो जरूर रखो, अमानत में कभी खयानत न हो, बातों में व्यर्थ का झूठ न बोलो। वायदे को पूरा करो और भाषा में शिष्टता को कभी तम खोओ। पराए बहू-बेटी को गलत नज़र से देखना और जीभ से गन्दी बातें निकालना, व्यविचार है।
उस समय का मुसलमान जब भी कोई गुनाह अनजाने मैं अंजाम देता और उसके सामने कुरान कि आयात पेश करदी जाती , वोह इंसान फ़ौरन हुक्म ए खुदा के आगे ,सर झुका देता और तौबा भी करता।
आज का मुसलमान ऐसा नहीं रह गया. हम आज जिस राह पे चल पड़े हैं,वोह हमें किस तरफ ले जा रहा है, आज हमें इस बात पे ग़ौर ओ फ़िक्र करने कि ज़रुरत है। आज के लोग पढ़े लिखे हैं, और जानते हैं की ,विज्ञानं कि किताबों मैं क्या है, इतिहास मैं क्या लिखा है और हमारी धार्मिक किताबों मैं क्या लिखा है लेकिन आज का यह पढ़ा लिखा इंसान आदमी धर्म की बातें तो बहुत करता है पर जब उन्हें आचरण में उतारने की स्थिति आती है तो वह प्राय: फिसल जाता है।
हमारे धर्म के सिद्धांत कुछ और कहते हैं और हमारा जीवन कुछ और हो जाता है। परिणामस्वरूप धर्म की बातें केवल शास्त्रों में लिखने तक, हमारी शायरी तक और लेखों तक ही सीमित रह जाती है। ऐसा आदमी जब कोई गुनाह करता है और उसके सामने कुरान की आयात पेश कर दो तो , तब भी अपने गुनाह को ना मानता है और ना ही उसे करने से बाज़ आता है, बल्कि कुरआन पेश करने वाले से ही दुश्मनी कर लेता है। अपने द्वारा गलती होने पर माफी मांगने का और दूसरों की गलतियों पर माफ कर दे ने का जज्बा अब नहीं रहा।
जिन्दगी में इससे बड़ी खयानत और क्या हो सकती है जब तुम उस व्यक्ति के साथ झूठ बोलते हो जो तुम्हें सच्चा और ईमानदार मानता है। कुरआन तो साफ कहती है कि सच्ची मोहब्बत वे ही कर पाते हैं जो जीवन को ईमानदारी से जोड़कर रखते हैं।
आज के इंसान, को समझने के लिए मैं आप सब को एक दो हदीथ सुनाना चाहूँगा। एक शख्स ने ख्वाब देखा : एक सफ़ेद रंग फ़रिश्ता है ,उसके परों पे कुरआन कि आएतें लिखी हैं, लेकिन वोह गंदगी खा रहा है।वो शख्स हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) कि खिदमत मैं हाज़िर हुआ और यह ख्वाब उसने बताया. रसूले खुदा(स.अ.व) ने जवाब दिया यह आखिरी दौर का इंसान है,जो जानता है कि कुरान मैं क्या लिखा है। किस काम को करने के लिए अल्लाह ने मना किया है, किस काम को करने की हिदायत दी गयी है। रोज़ पुण्य कमाने के लिए कुरआन पढता भी है लेकिन खुद को गुनाह से रोकता नहीं है। मतलब साफ़ है कि गुनाह जान बूझ के किया जाता है और ऐसे गुनाहगार के सही राह पे आने कि उम्मीद कम हुआ करती है।
नमाज़ किसी और की ज़मीन पे बिना उसकी इजाज़त नहीं पढी जा सकती,चोरी की बिजली, की रोशनी मैं नमाज़ कुबूल नहीं। हराम के माल से पैदा की गयी सहूलियतों के इस्तेमाल के साथ नमाज़ जैसी वाजिब इबादत भी कुबूल नहीं। फिर भी हम सोये हुए हैं और हराम के माल से, परहेज़ नहीं करते।
सवाल यह पैदा होता है कि आज का मुसलमान या हिन्दू ऐसा क्यों करता है? क्या उसे अल्लाह के वजूद पे, परमात्मा के वजूद पे यकीन नहीं? या अल्लाह के इन्साफ पे उनको शक है?
यह हाल केवल मुसलमान का नहीं, बल्कि हर धर्म के मानने वालों का है. धर्म कुछ और कहता है, करते कुछ और हैं। अधिकतर मामलों मैं पाया यह गया है, कि जब तक,धर्म कर्म करने मैं, इंसान का दुनिया मैं फाएदा होता हो, वोह इंसान खूब धर्म करम करता है. पूजा करोगे तो मुराद पूरी होगी, चढ़ावा बड़ा चढ़ाव गे तो , मुराद पूरी होगी. सदका दोगे तो तुम्हारा बीमार ठीक हो जाएगा। यहाँ तक तो सभी बड़े धार्मिक दिखते हैं. लेकिन जब धर्म कि नसीहतें मानने का वक़्त आता है तो इसी धार्मिक इंसान का चेहरा बदल जाता है। क्योंकि सत्य बोलेंगे तो दूकान का माल नहीं बिकेगा, सही तौल के देंगे तो, मुनाफा कम होगा. धर्म के नाम पे झगड़े नहीं करवाएंगे , तो कुर्सी हाथ से जाएगी. हिजाब पहन लेंगे तो ग़ैर मर्द ,करीब कैसे आएंगे।
सारांश यह कि जब दुनिया मैं, दौलत शोहरत और ओरत कि बात आती है, तो धर्म के उपदेश धर्म कि किताबों मैं बंद कर दिए जाते हैं।यह सत्य है कि इंसान एक सामाजिक प्राणी है. वो जिस समाज मैं रहता है, उस समाज के लोग उसकी तारीफ करें, उसकी इज्ज़त करें, यह सभी चाहते हैं और ऐसा चाहने मैं कोई बुराई भी नहीं है।
अगर जीवन मैं सफलता चाहते हो ,इज्ज़त चाहते हो और मरने के बाद भी ज़िंदगी की तमन्ना रखते हो तो अल्लाह , परमात्मा के ख़ुशी के लिये काम करो। उसका शुक्र अता करो की उसने हमको जीवन दिया। एक मासूम इंसान के रूप मैं पैदा किया। हमारे जीने के लिए सभी सहूलियतें पैदा की,और हमारे जीने के नियम के रूप मैं , हमें सहारा देने के लिए धर्म की किताब दी,और केवल किताब ही नहीं बल्कि उसपे व्यवहारिक रूप से चल के दिखाने वाले इमाम, नबी, पैग़म्बर, साधू संत,और नेक इंसान दिए। अब भी हम अल्लाह की नाफ़रमानी करें और शुक्र ना अदा करें तो आश्चर्य की बात है?
इमाम हुसैन (अ.स), जो की हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) के नवासे थे और मुसलमानों के इमाम थे, उन्होंने ने कर्बला मैं अहिंसा के साथ भूखे ,प्यासे , ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए , सब्र और अल्लाह के शुक्र के साथ , अपनी, दोस्तों और परिवार वालों की क़ुरबानी दे दी और महात्मा गाँधी ने इमाम हुसैन (अ.स) से सीख के , कामयाबी हासिल की।
समाज मैं इज्ज़त पाने का सही तरीका यह है कि आप ज्ञान प्राप्त करें, आप अपने आचरण को सही रखें। आज हम दूसरों को नीचा दिखा के ऊपर उठने का आसान रास्ता तलाशते हैं, जबकि सही रास्ता यह है की खुद को इल्म मैं, किरदार मैं इतना बुलंद करो की सामने वाला खुद छोटा लगने लगे। आदमी अपने जीवन में धन कमाए तो उसमें नेक नीयत और इमानदारी का जरूर ध्यान रखें। सदाचार का पहला चरण यह है यदि कोई हमें कितना भी प्रलोभन दे, पर अपने मार्ग से हम विचलित नहीं हों। जीवन में भूल-चूक कर भी अपनी इन्द्रियों के बहाव में मत बहो। जीवन में अगर धन चला जाए तो समझो कुछ नहीं गया है पर अगर चरित्र चला जाए तो समझो कि सब कुछ चला गया।
इस्लाम हकीकत मैं किरदार की बुलंदी से फैला है और इस सुबूत यह है की हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने एलान ए रिसालत उस वक़्त किया जब उनकी उम्र ४० साल की थी, और उनकी इमादारी, एखलाक, अमानतदारी, की लोग कसमें खाया करते थे। लोगों ने उनका बुलंद किरदार देखा और उनकी बात पे ईमान लाये, इस्लाम को कुबूल किया, कुरान को हक और अल्लाह की किताब माना।
हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने बताया बेईमानी की चिकनी रोटी खाने की बजाए अगर ईमानदारी की रुखी रोटी भी आदमी को नसीब हो जाए तो वह भी उसके लिए ज्यादा सुकूनदेह होगी। मोहम्मद साहब ने तो साफ-साफ कहा है, जो लोग बेईमानी से औरों की दौलत को हड़प रहे हैं, वे लोग अपने ही पेट में आग भर रहे हैं। जीवन के लिए धन की आवश्यकता है पर उसे उपार्जित करते वक्त नैतिकता को तिलांजलि नहीं दी जानी चाहिए। अगर किसी को आप कोई चीज नापकर दे रहे हैं तो बेईमानी न रखें और तौलकर दे रहे हैं तो उसमें भी ईमानदारी रखें। धन को पाने के लिए अगर आदमी अपने सदाचार को तिलांजलि देता है तो उसके जीवन के अन्तिम क्षणों मे पश्चाताप के अलावा उसके पास कुछ भी नहीं रहता है। आदमी पवित्र जीवन जीए, हमारी आंखें पवित्र हो, जिह्वा पवित्र हो, हमारी हर इन्द्रिय पवित्र हो। अगर ध्यान रख सको तो जरूर रखो, अमानत में कभी खयानत न हो, बातों में व्यर्थ का झूठ न बोलो। वायदे को पूरा करो और भाषा में शिष्टता को कभी तम खोओ। पराए बहू-बेटी को गलत नज़र से देखना और जीभ से गन्दी बातें निकालना, व्यविचार है।
उस समय का मुसलमान जब भी कोई गुनाह अनजाने मैं अंजाम देता और उसके सामने कुरान कि आयात पेश करदी जाती , वोह इंसान फ़ौरन हुक्म ए खुदा के आगे ,सर झुका देता और तौबा भी करता।
आज का मुसलमान ऐसा नहीं रह गया. हम आज जिस राह पे चल पड़े हैं,वोह हमें किस तरफ ले जा रहा है, आज हमें इस बात पे ग़ौर ओ फ़िक्र करने कि ज़रुरत है। आज के लोग पढ़े लिखे हैं, और जानते हैं की ,विज्ञानं कि किताबों मैं क्या है, इतिहास मैं क्या लिखा है और हमारी धार्मिक किताबों मैं क्या लिखा है लेकिन आज का यह पढ़ा लिखा इंसान आदमी धर्म की बातें तो बहुत करता है पर जब उन्हें आचरण में उतारने की स्थिति आती है तो वह प्राय: फिसल जाता है।
हमारे धर्म के सिद्धांत कुछ और कहते हैं और हमारा जीवन कुछ और हो जाता है। परिणामस्वरूप धर्म की बातें केवल शास्त्रों में लिखने तक, हमारी शायरी तक और लेखों तक ही सीमित रह जाती है। ऐसा आदमी जब कोई गुनाह करता है और उसके सामने कुरान की आयात पेश कर दो तो , तब भी अपने गुनाह को ना मानता है और ना ही उसे करने से बाज़ आता है, बल्कि कुरआन पेश करने वाले से ही दुश्मनी कर लेता है। अपने द्वारा गलती होने पर माफी मांगने का और दूसरों की गलतियों पर माफ कर दे ने का जज्बा अब नहीं रहा।
जिन्दगी में इससे बड़ी खयानत और क्या हो सकती है जब तुम उस व्यक्ति के साथ झूठ बोलते हो जो तुम्हें सच्चा और ईमानदार मानता है। कुरआन तो साफ कहती है कि सच्ची मोहब्बत वे ही कर पाते हैं जो जीवन को ईमानदारी से जोड़कर रखते हैं।
आज के इंसान, को समझने के लिए मैं आप सब को एक दो हदीथ सुनाना चाहूँगा। एक शख्स ने ख्वाब देखा : एक सफ़ेद रंग फ़रिश्ता है ,उसके परों पे कुरआन कि आएतें लिखी हैं, लेकिन वोह गंदगी खा रहा है।वो शख्स हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) कि खिदमत मैं हाज़िर हुआ और यह ख्वाब उसने बताया. रसूले खुदा(स.अ.व) ने जवाब दिया यह आखिरी दौर का इंसान है,जो जानता है कि कुरान मैं क्या लिखा है। किस काम को करने के लिए अल्लाह ने मना किया है, किस काम को करने की हिदायत दी गयी है। रोज़ पुण्य कमाने के लिए कुरआन पढता भी है लेकिन खुद को गुनाह से रोकता नहीं है। मतलब साफ़ है कि गुनाह जान बूझ के किया जाता है और ऐसे गुनाहगार के सही राह पे आने कि उम्मीद कम हुआ करती है।
नमाज़ किसी और की ज़मीन पे बिना उसकी इजाज़त नहीं पढी जा सकती,चोरी की बिजली, की रोशनी मैं नमाज़ कुबूल नहीं। हराम के माल से पैदा की गयी सहूलियतों के इस्तेमाल के साथ नमाज़ जैसी वाजिब इबादत भी कुबूल नहीं। फिर भी हम सोये हुए हैं और हराम के माल से, परहेज़ नहीं करते।
सवाल यह पैदा होता है कि आज का मुसलमान या हिन्दू ऐसा क्यों करता है? क्या उसे अल्लाह के वजूद पे, परमात्मा के वजूद पे यकीन नहीं? या अल्लाह के इन्साफ पे उनको शक है?
यह हाल केवल मुसलमान का नहीं, बल्कि हर धर्म के मानने वालों का है. धर्म कुछ और कहता है, करते कुछ और हैं। अधिकतर मामलों मैं पाया यह गया है, कि जब तक,धर्म कर्म करने मैं, इंसान का दुनिया मैं फाएदा होता हो, वोह इंसान खूब धर्म करम करता है. पूजा करोगे तो मुराद पूरी होगी, चढ़ावा बड़ा चढ़ाव गे तो , मुराद पूरी होगी. सदका दोगे तो तुम्हारा बीमार ठीक हो जाएगा। यहाँ तक तो सभी बड़े धार्मिक दिखते हैं. लेकिन जब धर्म कि नसीहतें मानने का वक़्त आता है तो इसी धार्मिक इंसान का चेहरा बदल जाता है। क्योंकि सत्य बोलेंगे तो दूकान का माल नहीं बिकेगा, सही तौल के देंगे तो, मुनाफा कम होगा. धर्म के नाम पे झगड़े नहीं करवाएंगे , तो कुर्सी हाथ से जाएगी. हिजाब पहन लेंगे तो ग़ैर मर्द ,करीब कैसे आएंगे।
सारांश यह कि जब दुनिया मैं, दौलत शोहरत और ओरत कि बात आती है, तो धर्म के उपदेश धर्म कि किताबों मैं बंद कर दिए जाते हैं।यह सत्य है कि इंसान एक सामाजिक प्राणी है. वो जिस समाज मैं रहता है, उस समाज के लोग उसकी तारीफ करें, उसकी इज्ज़त करें, यह सभी चाहते हैं और ऐसा चाहने मैं कोई बुराई भी नहीं है।
अगर जीवन मैं सफलता चाहते हो ,इज्ज़त चाहते हो और मरने के बाद भी ज़िंदगी की तमन्ना रखते हो तो अल्लाह , परमात्मा के ख़ुशी के लिये काम करो। उसका शुक्र अता करो की उसने हमको जीवन दिया। एक मासूम इंसान के रूप मैं पैदा किया। हमारे जीने के लिए सभी सहूलियतें पैदा की,और हमारे जीने के नियम के रूप मैं , हमें सहारा देने के लिए धर्म की किताब दी,और केवल किताब ही नहीं बल्कि उसपे व्यवहारिक रूप से चल के दिखाने वाले इमाम, नबी, पैग़म्बर, साधू संत,और नेक इंसान दिए। अब भी हम अल्लाह की नाफ़रमानी करें और शुक्र ना अदा करें तो आश्चर्य की बात है?
इमाम हुसैन (अ.स), जो की हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) के नवासे थे और मुसलमानों के इमाम थे, उन्होंने ने कर्बला मैं अहिंसा के साथ भूखे ,प्यासे , ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए , सब्र और अल्लाह के शुक्र के साथ , अपनी, दोस्तों और परिवार वालों की क़ुरबानी दे दी और महात्मा गाँधी ने इमाम हुसैन (अ.स) से सीख के , कामयाबी हासिल की।
समाज मैं इज्ज़त पाने का सही तरीका यह है कि आप ज्ञान प्राप्त करें, आप अपने आचरण को सही रखें। आज हम दूसरों को नीचा दिखा के ऊपर उठने का आसान रास्ता तलाशते हैं, जबकि सही रास्ता यह है की खुद को इल्म मैं, किरदार मैं इतना बुलंद करो की सामने वाला खुद छोटा लगने लगे। आदमी अपने जीवन में धन कमाए तो उसमें नेक नीयत और इमानदारी का जरूर ध्यान रखें। सदाचार का पहला चरण यह है यदि कोई हमें कितना भी प्रलोभन दे, पर अपने मार्ग से हम विचलित नहीं हों। जीवन में भूल-चूक कर भी अपनी इन्द्रियों के बहाव में मत बहो। जीवन में अगर धन चला जाए तो समझो कुछ नहीं गया है पर अगर चरित्र चला जाए तो समझो कि सब कुछ चला गया।