हजरत अली इब्ने अबी तालिब जो मुसलमानों के खलीफा थे अपने एक खुतबे मैं कितनी खूबसूरती से चमगादड़ के बारे मैं आज से १४०० साल पहले बताया, इस से ...
हजरत अली इब्ने अबी तालिब जो मुसलमानों के खलीफा थे अपने एक खुतबे मैं कितनी खूबसूरती से चमगादड़ के बारे मैं आज से १४०० साल पहले बताया, इस से आप उनके इल्म का अंदाज़ा लगा सकते हैं (नहजुल बालाघा खुतबा १५३)
चमगादड़ एक अजीबो ग़रीब परिन्दा (विचित्र पक्षी) है। जो अंडे देने के बजाय़ बच्चे देता ,दाना भरने के बजाय दूध पिलाता, और बगैर परो के परवाज़(उड़ता) करता है। उसकी उंगलियाँ झिल्लीदार होती हैं जिन से परो का काम लेता है। इन परो का फैलाव डेढ़ इन्च से पाँच फीट तक होता है। यह अपने पैरो के बल चल फिर नही सकता, इस लिये उड़ कर रोज़ी हासिल करता और दरख़तो व छतों में उलटा लटका रहता है। दिन की रौशनी में उसे कुछ दिखाई नही देता इस लिये ग़ुरूबे आफ़ताब (सूर्यास्त)के बाद ही परवाज़ करता है और कीड़े मकोड़े और रात को उड़ने वाले परवाने खाता है। चमगादड़ो की एक क़िस्म फल खाती है और बाज़ गोश्त ख़ोर (मांसाहारी) होती हैं जो मछलियों का शिकार करती हैं।
शिमाली अमरीका (उत्तरी अमरीका) के तारीक ग़ारों (अंधेरी गुफ़ाओं) में ख़ूख़्वार (रक्तहार) चमगादड़े भी बड़ी कसरत से पाई जाती हैं। इनकी ख़ुराक इन्सानी व हैवानी ख़ून है। जब वह किसी इन्सान का ख़ून चूसती हैं तो इन्सानी ख़ून में ज़हर (विष) सरायत कर जाता है जिसके नतीजे में पहले हलका सा बुख़ार और सर दर्द होता है फिर साँस की नली मुतवर्रिम(सूजन) हो जाती है। खाना पीना छूट जाता है । जिस्म के नीचे वाला हिस्सा बेहिस होकर रह जाता है। आख़िर साँस की आमद व रफ़्त बंद हो जाती है और वह दम तोड़ देता है। यह ख़ूआशाम चमगादड़े उस वक़्त हमला करती हैं जब आदमी बेहोश हो या सो रहा हो। जागते में हमला कम होता है और ख़ून चूसते वक़्त दर्द का एहसास तक नही होता। चमगादड़ की आँख ख़ास क़िस्म की होती है जो सिर्फ़ तारीकी (अंधेरे) ही में काम करती है, और दिन के उजाले में कुछ नही देख सकती। इसकी वजह यह है कि आँखों की पुतली का फैलाव आँख की वुस्अत के मुक़ाबले में बड़ा होता है और तेज़ रौशनी में सिमट जाता है और कोई चीज़ दिखाई नही देती। यह एसा ही है जैसे एक बड़ी ताक़त के कैमरे से खुली रौशनी में तस्वीर उतारी जाये तो रौशनी की छूट से तसवीर धुंधली उतरती है। इसी लिये कैमरे के शीशे का साइज़ जो बमंज़िला आँख की पुतली के होता है छोटा कर दिया जाता है ताकि रौशनी का चका चौंध कम हो जाय और तस्वीर साफ़ उतरे। अगर चमगादड़ की आँख की पुतली का फैलाव आँख के मुक़ाबले में कम होता तो वह भी दूसरे जानवरों की तरह दिन में देख सकती थी।
चमगादड़ एक अजीबो ग़रीब परिन्दा (विचित्र पक्षी) है। जो अंडे देने के बजाय़ बच्चे देता ,दाना भरने के बजाय दूध पिलाता, और बगैर परो के परवाज़(उड़ता) करता है। उसकी उंगलियाँ झिल्लीदार होती हैं जिन से परो का काम लेता है। इन परो का फैलाव डेढ़ इन्च से पाँच फीट तक होता है। यह अपने पैरो के बल चल फिर नही सकता, इस लिये उड़ कर रोज़ी हासिल करता और दरख़तो व छतों में उलटा लटका रहता है। दिन की रौशनी में उसे कुछ दिखाई नही देता इस लिये ग़ुरूबे आफ़ताब (सूर्यास्त)के बाद ही परवाज़ करता है और कीड़े मकोड़े और रात को उड़ने वाले परवाने खाता है। चमगादड़ो की एक क़िस्म फल खाती है और बाज़ गोश्त ख़ोर (मांसाहारी) होती हैं जो मछलियों का शिकार करती हैं।
शिमाली अमरीका (उत्तरी अमरीका) के तारीक ग़ारों (अंधेरी गुफ़ाओं) में ख़ूख़्वार (रक्तहार) चमगादड़े भी बड़ी कसरत से पाई जाती हैं। इनकी ख़ुराक इन्सानी व हैवानी ख़ून है। जब वह किसी इन्सान का ख़ून चूसती हैं तो इन्सानी ख़ून में ज़हर (विष) सरायत कर जाता है जिसके नतीजे में पहले हलका सा बुख़ार और सर दर्द होता है फिर साँस की नली मुतवर्रिम(सूजन) हो जाती है। खाना पीना छूट जाता है । जिस्म के नीचे वाला हिस्सा बेहिस होकर रह जाता है। आख़िर साँस की आमद व रफ़्त बंद हो जाती है और वह दम तोड़ देता है। यह ख़ूआशाम चमगादड़े उस वक़्त हमला करती हैं जब आदमी बेहोश हो या सो रहा हो। जागते में हमला कम होता है और ख़ून चूसते वक़्त दर्द का एहसास तक नही होता। चमगादड़ की आँख ख़ास क़िस्म की होती है जो सिर्फ़ तारीकी (अंधेरे) ही में काम करती है, और दिन के उजाले में कुछ नही देख सकती। इसकी वजह यह है कि आँखों की पुतली का फैलाव आँख की वुस्अत के मुक़ाबले में बड़ा होता है और तेज़ रौशनी में सिमट जाता है और कोई चीज़ दिखाई नही देती। यह एसा ही है जैसे एक बड़ी ताक़त के कैमरे से खुली रौशनी में तस्वीर उतारी जाये तो रौशनी की छूट से तसवीर धुंधली उतरती है। इसी लिये कैमरे के शीशे का साइज़ जो बमंज़िला आँख की पुतली के होता है छोटा कर दिया जाता है ताकि रौशनी का चका चौंध कम हो जाय और तस्वीर साफ़ उतरे। अगर चमगादड़ की आँख की पुतली का फैलाव आँख के मुक़ाबले में कम होता तो वह भी दूसरे जानवरों की तरह दिन में देख सकती थी।