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शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया

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इंसान को समाजी एतेबार से एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती है।  यह कहा जा सकता है कि एक इंसान ज़िन्दगी बसर करने के लिए समाज के दूसरे सभी लोगो...

male इंसान को समाजी एतेबार से एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती है।  यह कहा जा सकता है कि एक इंसान ज़िन्दगी बसर करने के लिए समाज के दूसरे सभी लोगों का  का मोहताज होता है और चूँकि वह उनका मोहताज है इस लिए उसे उनके वुजूद और ख़िदमात का शुक्रिया अदा करना चाहिए। 
हर शख्स  को उस्ताद का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने उनके बच्चों को तालीम दी और उनकी तरबीयत की। सफ़ाई करने वाले का शुक्रिया अदा करना चाहिए  कि अगर वह न होता तो सब जगह गंदगी के ढेर नज़र आते और इसी तरह हिफ़ाज़त करने और पहरा देने वालों का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए कि अगर वह न होते तो अम्नियत न होती और कोई आराम की नींद सोने की हिम्मत न करता और सारे लोग ख़ुद ही पहरा देते। मां बाप का शुक्रिया अदा करना चहिये की अगर वोह ना होते तो हम अपने पैरों पे खड़े ना होते , मामूली से ग़ौर व फ़िक्र के बाद यह बात सामने आती है कि हर फ़र्द की ज़िन्दगी समाज के दूसरे अफ़राद की  मेहनतों का नतीजा है।
तरक़्क़ी याफ़्ता व मोहज़्ज़ब समाजों में छोटी छोटी और मामूली मामूली बातों पर शुक्रिया अदा करने का रिवाज है, लेकिन पिछड़े समाज़ों में मन्ज़र इसके बिल्कुल उलटा है, वहाँ शुक्रिया अदा करने के बजाए हमेशा एतेराज़ किये जाते हैं। 
उनकी सोंच  यही होती है कि शुक्रिया किस बात का अदा करें यह तो रोज़गार  है । अगर कोई ड्राईवर है तो उसे ड्राईवरी करनी चाहिए, मुहाफ़िज़ है तो उसे पहरा देना चाहिए और अगर सफ़ाई करने वाला है तो उसे सफ़ाई करना चाहिए।यह सोंच हकीकत मैं सही नहीं है. 
एक ड्राईवर जिसकी ज़िम्मेदारी हमें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना है अगर हम अपनी मंज़िल पर उतरते वक़्त उसका शुक्रिया अदा कर दें तो हमारा यह शुक्रिये का एक जुमला, उसकी पूरे दिन की थकन को दूर करने का सबब बनेगा और वह अपने इस फ़रीज़े को और ज़्यादा खुशी के साथ अंजाम देगा।
अगर घरेलू ज़िन्दगी में मर्द, अपनी बीवी की  ज़हमतों के बदले में एक बार भी उसका शुक्रिया अदा न करे, या इसके बरअक्स अगर बीवी, शौहर की बेशुमार ज़हमतों के बदले एक बार भी ज़बान पर शुक्रिये के अलफ़ाज़ न लाये तो ऐसे घर में कुछ मुद्दत के बाद अगर लडाई झगड़ा न भी हुआ तो मुहब्बत व ख़ुलूस यक़ीनी तौर रुख़सत हो जायेगा, और ऐसी फ़ज़ा में सिर्फ़ घुटन की ज़िन्दगी ही बाक़ी रह जायेगी।
शुक्र तीन तरह का होता है
1- नेमत को जानना और उसे पहचानना है।
2- नेमत अता करने वाले की तारीफ़ करना है।
3-  इंसान का अपनी क़ुदरत के मुताबिक़ उसका शुक्र अदा करना है।
इसी प्रकार कोई भी फर्द जब भी आपकी मदद करे या आप किसी कि मदद लें तो उसका शुक्रिया अपनी सलाहियतों के मुताबिक करें, क्तोंकी यह उसका हक है।
इस्लाम की नसीहतों में एक हिस्सा  शुक्रिये का भी पाया जाता है, जिसमें यह बताया जाता है कि तमाम बन्दों की ज़िम्मेदारी है कि वह अल्लाह से मिलने वाली नेमतों के बदले उसका शुक्र अदा करें।
हम इंसानों का फ़रीज़ा यह है कि नेमतों को अल्लाह की इनायत समझे और उसका शुक्र अदा करे, लेकिन चूँकि अल्लाह की इस नेअमत व रहमत के पहुँचने में इंसान वसीला बना है, लिहाज़ा उसका भी शुक्रिया अदा करना चाहिए लेकिन सिर्फ़ इसी हद तक कि वह अल्लाह की नेअमत पहुँचाने में वसीला बना है।
इस्लामी रिवायातों में मिलता है कि जिसने मख़लूक़ का शुक्र अदा नही किया, उसने ख़ालिक़ का भी शुक्र अदा नही किया।
एक हदीस में पैग़म्बरे अकरम (स) से इस तरह नक़्ल हुआ है: क़ियामत के दिन एक शख़्स को अल्लाह के सामने पेश किया जायेगा, कुछ देर बाद अल्लाह का हुक्म होगा कि इसे जहन्नम में डाल दिया जाये। वह शख़्स इस हुक्म के पर कहेगा  ख़ुदाया मैं तो तेरे क़ुरआन की तिलावत कर के उस पर अमल करता था, उसके जवाब में कहा जायेगा सही है कि तू क़ुरआन पढ़ा करता था मगर तूने उन नेअमतों का शुक्र अदा नही किया जो मैने तुझ पर नाज़िल की थीं। वह जवाब में वह कहेगा: ख़ुदाया मैने तो तेरी तमाम नेमतों का शुक्र अदा किया है, तब ख़िताब होगा: हाँ मगर तूने उनका शुक्र अदा नही किया जिनके ज़रिये से मेरी नेमतें तुझ तक पहुचती थीं।
और मैने अपने लिए लाज़िम कर लिया है कि उस इंसान के शुक्र को क़बूल नही करूगा जो मेरी नेअमत पहुँचाने वाले इंसान का शुक्र अदा न करे।
ज़ाहिर है कि जैसे जैसे लोगों में शुक्रिये का जज़्बा बढ़ता जायेगा वैसे वैसे उनके पास अल्लाह की नेमतों में इज़ाफ़ा होता जायेगा।

माँ बाप को चाहिए कि घर में अपने बच्चो को  यह समझायें कि अगर कोई तुम्हारे लिए किसी काम को अंजाम दो तो अगरचे नेमत देने वाला ख़ुदा है, लेकिन चूँकि वह ज़रिया बना है, इसलिए उसका भी शुक्र अदा करना चाहिए। अगर बच्चों में बचपन से ही यह जज़्बा पैदा हो जाये और बड़े उसकी ताईद करें और दूसरी तरफ़ वह ख़ुद अपने घर में बुज़ुर्गों को एक दूसरे का शुक्रिया अदा करते देखें तो वह मुस्तक़िबल में समाजी ज़िन्दगी में शुक्रिया अदा करने वाले अफ़राद बनेगे।
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया , उन लोगों का जिन्होंने मुझे मेरी कामिआं भी बताएं और मेरी सलाहियतों को निखारा. शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया उनका भी जो इस पोस्ट को पढ़ के, मुझे  और बेहतर लिखने पे मजबूर कर दें।
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