अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया ,हम सबको इस बात कि ख़ुशी है कि लोगों कि आशंकाएं गलत साबित हुईं. सब ने इस फैसले का स्वागत कि...
अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया ,हम सबको इस बात कि ख़ुशी है कि लोगों कि आशंकाएं गलत साबित हुईं. सब ने इस फैसले का स्वागत किया और आज देख मैं अमन सुकून है। इसके लिए हिंदुस्तान के सभी नागरिक बधाई के हक़दार हैं। हमने यह साबित कर दिया कि हम आज बाबरी मस्जिद जैसे विवादों को भूलकर तरक्की की राह पर जाना चाहते हैं।
जहाँ एक ओर हिंदुस्तान का नागरिक शांति काएम रहने से खुश हैं वहीं नेता इस फ़िक्र मैं लग गया है कि उनकी राजनीति अब कैसे चलेगी ? क्योंकि नेताओं कि राजनीती वोट बैंक पे चला करती है, और यह हमेशा उनको खुश करने कि कोशिश करते हैं, जहाँ से अधिक वोट इनको मिलें।
लोगों का मानना है कि यह फैसला देने मैं सबूत और तथ्य कि जगह 'आस्था' को ही आधार बनाया है, अगर इस बात को सत्य मान भी लिया जाए तब भी इस्लाम और मुसलमान कि नजर से यह फैसला गलत नहीं है।
दो दिन पहले ही शिया मुस्लिम के धर्म गुरु मौलाना कल्ब ए सादिक ने यह भी कहा, कि किसी का मंदिर या मस्जिद तोडना सही नहीं,लेकिन अगर फैसला यह करना हो कि, मस्जिद टूटे या इंसान कि जान बचाई जाए, तो मैं यही कहूँगा कि इंसान कि जान बचालो, क्योंकि मस्जिद तो फिर भी बन जाएगी लेकिन यह इंसान मर गया तो वापस नहीं आएगा।
इस्लाम, इंसानों कि जान कि कीमत,को इबादत गाहों से अधिक महत्त्व देता है। इस्लाम मैं शांति और अमन कि अहमियत सबसे अधिक है। यह सब जानते हैं कि जब मुसलमान नमाज़ पढता है , तो नमाज़ ख़त्म होने से पहले वोह और कोई काम नहीं कर सकता, यहाँ तक कि अपनी दिशा भी नहीं बदल सकता.।लेकिन अगर उसी नमाज़ पढने वाले को यह एहसास हो जाए, कि पडोसी का घर जल रहा है, या किसी इंसान कि जान खतरे मैं है, तो अल्लाह हुक्म देता है, नमाज़ को तोड़ दो और बचा लो उस इंसान कि जान। नमाज़ तो बाद मैं भी पढ़ ली जाएगी अगर यह इंसान मर गया तो वापस नहीं आएगा.लेकिन यह छूट केवल जान माल और इज्ज़त बचाने के लिए ही है।
इस्लाम और मुसलमान कि नजर मैं हर वोह फैसला गलत होता, जिसके नतीजे मैं , इंसानों कि जान जाती और इस फैसले के बाद अमन और शांति काएम है, और इतनी शांति है , कि नेताओं को फ़िक्र हो रही है, अब उनके वोट बैंक का क्या होगा ? कुछ नहीं तो चलो सुप्रीम कोर्ट मैं ही ले चलते हैं केस को, कुछ दिन और रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद से, अपनी रोटीआं सेंक लेंगे।
यह नेता अपने ख्यालात पेश कर रहे हैं कि यह फैसला "अल्पसंख्यक मुस्लिम सम्प्रदाय को निराश करने वाला है।" जबकि ग़ौर करने कि बात यह है कि मुसलमानों के अधिकतर धर्म गुरु अयोध्या का फैसला आने के बाद चुप है , या खुश हैं कि अमन शांति काएम है. शिया धर्मगुरु के करीबी रिश्तेदार जनाब शम्सी साहब ने तो १५ लाख का चंदा भी दे डाला राम मंदिर बनाए जाने के लिए.
यह देश के हर नागरिक कि ज़िम्मेदारी है कि , जिस नेता का बयां जनहित मैं ना हो, नफरत कि दीवारें ,कड़ी कर रहा हो, उसके बयां के खिलाफ अवाफ उठाएं. इंसानियत और भाईचारे से बड़ा कोई धर्म नहीं है.
अदालत का यह क़दम सामाजिक सौहार्द की पुनर्स्थापना का क़दम, कहा जा सकता है, जिस से हिंदुस्तान का हर नागरिक खुश है, क्योंकि देश जान और माल के एक बड़े नुकसान से बच गया। देश मैं शांति देश कि तरक्की का सुबूत है और देश कि तरक्की हमारी तरक्की है।
तुलसीदास जी को अपने समय मैं , ’मांग के खईबो ,मसीद में सोईबो’ में कोई दिक्कत नहीं थी, लगता है वो दिन फिर से वापस लौट आएंगे ।
जहाँ एक ओर हिंदुस्तान का नागरिक शांति काएम रहने से खुश हैं वहीं नेता इस फ़िक्र मैं लग गया है कि उनकी राजनीति अब कैसे चलेगी ? क्योंकि नेताओं कि राजनीती वोट बैंक पे चला करती है, और यह हमेशा उनको खुश करने कि कोशिश करते हैं, जहाँ से अधिक वोट इनको मिलें।
लोगों का मानना है कि यह फैसला देने मैं सबूत और तथ्य कि जगह 'आस्था' को ही आधार बनाया है, अगर इस बात को सत्य मान भी लिया जाए तब भी इस्लाम और मुसलमान कि नजर से यह फैसला गलत नहीं है।
दो दिन पहले ही शिया मुस्लिम के धर्म गुरु मौलाना कल्ब ए सादिक ने यह भी कहा, कि किसी का मंदिर या मस्जिद तोडना सही नहीं,लेकिन अगर फैसला यह करना हो कि, मस्जिद टूटे या इंसान कि जान बचाई जाए, तो मैं यही कहूँगा कि इंसान कि जान बचालो, क्योंकि मस्जिद तो फिर भी बन जाएगी लेकिन यह इंसान मर गया तो वापस नहीं आएगा।
इस्लाम, इंसानों कि जान कि कीमत,को इबादत गाहों से अधिक महत्त्व देता है। इस्लाम मैं शांति और अमन कि अहमियत सबसे अधिक है। यह सब जानते हैं कि जब मुसलमान नमाज़ पढता है , तो नमाज़ ख़त्म होने से पहले वोह और कोई काम नहीं कर सकता, यहाँ तक कि अपनी दिशा भी नहीं बदल सकता.।लेकिन अगर उसी नमाज़ पढने वाले को यह एहसास हो जाए, कि पडोसी का घर जल रहा है, या किसी इंसान कि जान खतरे मैं है, तो अल्लाह हुक्म देता है, नमाज़ को तोड़ दो और बचा लो उस इंसान कि जान। नमाज़ तो बाद मैं भी पढ़ ली जाएगी अगर यह इंसान मर गया तो वापस नहीं आएगा.लेकिन यह छूट केवल जान माल और इज्ज़त बचाने के लिए ही है।
इस्लाम और मुसलमान कि नजर मैं हर वोह फैसला गलत होता, जिसके नतीजे मैं , इंसानों कि जान जाती और इस फैसले के बाद अमन और शांति काएम है, और इतनी शांति है , कि नेताओं को फ़िक्र हो रही है, अब उनके वोट बैंक का क्या होगा ? कुछ नहीं तो चलो सुप्रीम कोर्ट मैं ही ले चलते हैं केस को, कुछ दिन और रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद से, अपनी रोटीआं सेंक लेंगे।
यह नेता अपने ख्यालात पेश कर रहे हैं कि यह फैसला "अल्पसंख्यक मुस्लिम सम्प्रदाय को निराश करने वाला है।" जबकि ग़ौर करने कि बात यह है कि मुसलमानों के अधिकतर धर्म गुरु अयोध्या का फैसला आने के बाद चुप है , या खुश हैं कि अमन शांति काएम है. शिया धर्मगुरु के करीबी रिश्तेदार जनाब शम्सी साहब ने तो १५ लाख का चंदा भी दे डाला राम मंदिर बनाए जाने के लिए.
यह देश के हर नागरिक कि ज़िम्मेदारी है कि , जिस नेता का बयां जनहित मैं ना हो, नफरत कि दीवारें ,कड़ी कर रहा हो, उसके बयां के खिलाफ अवाफ उठाएं. इंसानियत और भाईचारे से बड़ा कोई धर्म नहीं है.
अदालत का यह क़दम सामाजिक सौहार्द की पुनर्स्थापना का क़दम, कहा जा सकता है, जिस से हिंदुस्तान का हर नागरिक खुश है, क्योंकि देश जान और माल के एक बड़े नुकसान से बच गया। देश मैं शांति देश कि तरक्की का सुबूत है और देश कि तरक्की हमारी तरक्की है।
तुलसीदास जी को अपने समय मैं , ’मांग के खईबो ,मसीद में सोईबो’ में कोई दिक्कत नहीं थी, लगता है वो दिन फिर से वापस लौट आएंगे ।