आज चलो एक कहानी सुनाता हूँ । हुआ कुछ ऐसा कि ; प्राचीन काल में दो संत एक दूसरे के गहरे मित्र थे। उन दोनों के बीच बड़ी घनिष्ठता थी ।...
आज चलो एक कहानी सुनाता हूँ । हुआ कुछ ऐसा कि ; प्राचीन काल में दो संत एक दूसरे के गहरे मित्र थे। उन दोनों के बीच बड़ी घनिष्ठता थी । उनमें से एक मोटा और पेटू था तथा कभी भी उसका पेट नहीं भरता था किंतु दूसरा संत दुबला-पतला था। वह कम खाता था बल्कि किसी किसी दिन तो उसका खाने का मन ही नहीं करता था। एक दिन दोनों को लम्बी यात्रा पर जाना पड़ा। काफ़ी मार्ग तै करने के बाद वे दोनों बहुत थकी हुई अवस्था में एक नगर के द्वार पर पहुंचे और संयोग से जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार कर लिए गए। दोनों को बंदी बना कर रखा गया। वहां से भागने का कोई मार्ग नहीं था। जेल के सभी दरवाज़े और खिड़कियां मज़बूती से बंद कर दिए गए थे केवल छत पर हवा और प्रकाश के लिए एक छोटा सा रौशनदान था।
दोनों संत बेचारे यह तक नहीं जानते थे कि उन्हें किस अपराध में क़ैद किया गया है। उन्हें बस किसी सिपाही से यह सुनने को मिला था कि दोनों पर जासूसी का आरोप है। मोटे दरवेश संत को बहुत अधिक भूख लगी हुई थी। उसने कहा कि अरे हम कहां और जासूसी कहां। दुबला पतला संत बहुत अधिक प्यासा था और काफ़ी पैदल चलने के कारण उसके पैरों में दर्द हो रहा था। उसने अपने पैरों को दबाते हुए कहा कि हमारा हुलिया कहीं से भी जासूसों जैसा नहीं लगता। पता नहीं किस मूर्ख ने हमारे बारे में यह बात उड़ा दी है कि हम जासूस हैं। ईश्वर हमारी रक्षा करे। पता नहीं हमें इस क़ैद से छुटकारा मिलेगा भी या नहीं। मोटे संत ने कहा कि नहीं भई हमें शीघ्र ही मुक्त कर दिया जाएगा। जब जांच की जाएगी और यह पता चल जाएगा कि हम निर्दोष हैं तो हमें छोड़ दिया जाएगा। दूसरे संत ने कहा कि यह बात उतनी सरल नहीं है जितनी तुम समझ रहे हो। मोटे संत ने कहा कि सच कहते हो। यदि कोई हमारी शत्रुता में यह गवाही दे दे कि हम जासूस हैं तो फिर कौन हमें निर्दोष सिद्ध करेगा। दुबले पतले संत ने कहा कि कोई भी नहीं, और मैं इसी बात से चिंतित हूं। हमने तो अब तक जासूसी के बारे में सोचा भी नहीं था और इस आरोप में धर लिए गए हैं, यदि बात आरोप से आगे बढ़ी और यह सिद्ध कर दिया गया कि हम जासूस हैं तो निश्चित रूप से हमें फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। संभव है कि हमारे मारे जाने के बाद उन्हें पता चले कि हम निर्दोष थे किंतु उस समय उसका कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि हम तो मर चुके होंगे।
वे दोनों अभागे संत , जो जासूसी के बारे में कुछ जानते ही नहीं थे और वास्तव में निर्दोष थे, उस अन्धकारमयी कारावास में बड़े दुखी और असहाय से रहने लगे। उनकी समझ में नहीं आता था कि क्या करें। वे जितना भी चीख़ते-चिल्लाते और दीवारों पर हाथ मारते कोई भी उनकी आवाज़ नहीं सुनता था। वे निराशा के साथ चुप हो जाते और प्रतीक्षा करते कि शायद ईश्वर की कृपा हो जाए और उन्हें उस कारावास से मुक्ति मिल जाए। निराशा उन्हें मौत से पहले ही न मार दे इस लिए वे अपने मन में विभिन्न प्रकार की निराधार आशाएं पाले हुए थे और कहते थे कि संभव है कि निर्दोष व्यक्ति फांसी के फंदे तक तो जा सकता है किंतु फांसी नहीं चढ़ सकता है और क्या पता कल हर बात हमारे हित में हो जाए और हमें छोड़ दिया जाए।
वे दोनों एक दूसरे से इसी प्रकार की बातें किया करते थे किंतु कोई भी उनकी बातों को नहीं सुनता था। दुबला पतला संत कहता था कि यदि मुझे मुक्ति मिल जाए तो मैं इतनी सरपट भागूंगा कि हवा भी मुझे छू नहीं पाएगी और मैं पलट कर भी नहीं देखूंगा और पलट कर कभी इस नगर में नहीं आऊंगा। मोटा संत कहता कि मैं भी कभी इस नगर में पलट कर नहीं आऊंगा चाहे पूरे संसार की खाने-पीने की वस्तुएं इस नगर में हों और मुझ निःशुल्क दे दी जाएं, मैं नहीं लौटूंगा।
इसी प्रकार दो सप्ताह का समय बीत गया और वे दोनों अभागे संत इस दौरान उसी अंधकारमयी कारावास में रहे। दो सप्ताहों के बाद पता चला कि वे दोनों निर्दोष हैं। कारावास का दरवाज़ा खोला गया, मोटा संत मर चुका था जबकि उसका दुर्बल मित्र जीवित था। कारावास के निकट एकत्रित होने वाले लोग एक दूसरे से पूछ रहे थे कि यह दुर्बल व्यक्ति किस प्रकार भूख-प्यास सहन करके इतने दिनों तक जीवित रह गया, इन अभागों को एक दिन आड़ करके सूखी रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा और बहुत कम पानी दिया जाता था, कोई भी होता तो इन दो सप्ताहों में भूख और प्यास से मर गया होता। दुबला पतला संत जो जीवित बच गया था और अपने मित्र की मृत्यु पर विलाप कर रहा था, यह सोच रहा था कि अंततः उसका मित्र एक निराधार आरोप के चलते मारा गया। अब जब इन लोगों को पता चल गया है कि हम निर्दोष हैं तो ये किस प्रकार उससे क्षमा मांग सकते हैं?
लोग तो केवल उसे मोटे व्यक्ति के मरने और दुर्बल व्यक्ति के जीवित बच जाने के बारे में बातें कर रहे थे और जिस विषय के बारे में कोई भी नहीं सोच रहा था, वह यह था कि वह अभागा मोटा संत , निर्दोष मारा गया था।
इस्लाम का यह कानून है चाहे १० गुनाहगार छूट जाएं लेकिन किसी एक बेगुनाह को सजा ना हो।
दोनों संत बेचारे यह तक नहीं जानते थे कि उन्हें किस अपराध में क़ैद किया गया है। उन्हें बस किसी सिपाही से यह सुनने को मिला था कि दोनों पर जासूसी का आरोप है। मोटे दरवेश संत को बहुत अधिक भूख लगी हुई थी। उसने कहा कि अरे हम कहां और जासूसी कहां। दुबला पतला संत बहुत अधिक प्यासा था और काफ़ी पैदल चलने के कारण उसके पैरों में दर्द हो रहा था। उसने अपने पैरों को दबाते हुए कहा कि हमारा हुलिया कहीं से भी जासूसों जैसा नहीं लगता। पता नहीं किस मूर्ख ने हमारे बारे में यह बात उड़ा दी है कि हम जासूस हैं। ईश्वर हमारी रक्षा करे। पता नहीं हमें इस क़ैद से छुटकारा मिलेगा भी या नहीं। मोटे संत ने कहा कि नहीं भई हमें शीघ्र ही मुक्त कर दिया जाएगा। जब जांच की जाएगी और यह पता चल जाएगा कि हम निर्दोष हैं तो हमें छोड़ दिया जाएगा। दूसरे संत ने कहा कि यह बात उतनी सरल नहीं है जितनी तुम समझ रहे हो। मोटे संत ने कहा कि सच कहते हो। यदि कोई हमारी शत्रुता में यह गवाही दे दे कि हम जासूस हैं तो फिर कौन हमें निर्दोष सिद्ध करेगा। दुबले पतले संत ने कहा कि कोई भी नहीं, और मैं इसी बात से चिंतित हूं। हमने तो अब तक जासूसी के बारे में सोचा भी नहीं था और इस आरोप में धर लिए गए हैं, यदि बात आरोप से आगे बढ़ी और यह सिद्ध कर दिया गया कि हम जासूस हैं तो निश्चित रूप से हमें फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। संभव है कि हमारे मारे जाने के बाद उन्हें पता चले कि हम निर्दोष थे किंतु उस समय उसका कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि हम तो मर चुके होंगे।
वे दोनों अभागे संत , जो जासूसी के बारे में कुछ जानते ही नहीं थे और वास्तव में निर्दोष थे, उस अन्धकारमयी कारावास में बड़े दुखी और असहाय से रहने लगे। उनकी समझ में नहीं आता था कि क्या करें। वे जितना भी चीख़ते-चिल्लाते और दीवारों पर हाथ मारते कोई भी उनकी आवाज़ नहीं सुनता था। वे निराशा के साथ चुप हो जाते और प्रतीक्षा करते कि शायद ईश्वर की कृपा हो जाए और उन्हें उस कारावास से मुक्ति मिल जाए। निराशा उन्हें मौत से पहले ही न मार दे इस लिए वे अपने मन में विभिन्न प्रकार की निराधार आशाएं पाले हुए थे और कहते थे कि संभव है कि निर्दोष व्यक्ति फांसी के फंदे तक तो जा सकता है किंतु फांसी नहीं चढ़ सकता है और क्या पता कल हर बात हमारे हित में हो जाए और हमें छोड़ दिया जाए।
वे दोनों एक दूसरे से इसी प्रकार की बातें किया करते थे किंतु कोई भी उनकी बातों को नहीं सुनता था। दुबला पतला संत कहता था कि यदि मुझे मुक्ति मिल जाए तो मैं इतनी सरपट भागूंगा कि हवा भी मुझे छू नहीं पाएगी और मैं पलट कर भी नहीं देखूंगा और पलट कर कभी इस नगर में नहीं आऊंगा। मोटा संत कहता कि मैं भी कभी इस नगर में पलट कर नहीं आऊंगा चाहे पूरे संसार की खाने-पीने की वस्तुएं इस नगर में हों और मुझ निःशुल्क दे दी जाएं, मैं नहीं लौटूंगा।
इसी प्रकार दो सप्ताह का समय बीत गया और वे दोनों अभागे संत इस दौरान उसी अंधकारमयी कारावास में रहे। दो सप्ताहों के बाद पता चला कि वे दोनों निर्दोष हैं। कारावास का दरवाज़ा खोला गया, मोटा संत मर चुका था जबकि उसका दुर्बल मित्र जीवित था। कारावास के निकट एकत्रित होने वाले लोग एक दूसरे से पूछ रहे थे कि यह दुर्बल व्यक्ति किस प्रकार भूख-प्यास सहन करके इतने दिनों तक जीवित रह गया, इन अभागों को एक दिन आड़ करके सूखी रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा और बहुत कम पानी दिया जाता था, कोई भी होता तो इन दो सप्ताहों में भूख और प्यास से मर गया होता। दुबला पतला संत जो जीवित बच गया था और अपने मित्र की मृत्यु पर विलाप कर रहा था, यह सोच रहा था कि अंततः उसका मित्र एक निराधार आरोप के चलते मारा गया। अब जब इन लोगों को पता चल गया है कि हम निर्दोष हैं तो ये किस प्रकार उससे क्षमा मांग सकते हैं?
लोग तो केवल उसे मोटे व्यक्ति के मरने और दुर्बल व्यक्ति के जीवित बच जाने के बारे में बातें कर रहे थे और जिस विषय के बारे में कोई भी नहीं सोच रहा था, वह यह था कि वह अभागा मोटा संत , निर्दोष मारा गया था।
इस्लाम का यह कानून है चाहे १० गुनाहगार छूट जाएं लेकिन किसी एक बेगुनाह को सजा ना हो।