अभी कुछ दिन पहले मैंने एक लेख़ लिखा था, इंसान के दो चेहरे क्यों? उसमें मैंने उदाहरण दिया था, हर धर्म यह में हुक्म है औरतों के लिए कि अपने ...
अभी कुछ दिन पहले मैंने एक लेख़ लिखा था, इंसान के दो चेहरे क्यों? उसमें मैंने उदाहरण दिया था, हर धर्म यह में हुक्म है औरतों के लिए कि अपने बालों को और जिस्म को ग़ैर (ना महरम) मर्द से छिपाओ" और कुरआन का हवाला दिया था कि "सूरा अल अहज़ाब (५९)में ,सूरा ए नूर (३१) में, साफ़ साफ़ हुक्म है की, अपने बालों को और जिस्म को ग़ैर (ना महरम) मर्द से छिपाओ. और अगर ऐसा ना किया तो , खुद भी गुनाह किया, और दूसरों को भी गुनाह पे अमादा किया."
मेरे पास कुछ लोगों के मेल आये कि इस परदे के बारे में कुछ और भी बताऊँ. कुछ ने यह भी पुछा कि जब यह हुक्म ए खुदा है , तो यह कौन मुसलमान औरतें हैं जो अपने , ख्यालात हो अल्लाह के हुक्म से अफज़ल मानती हैं और पर्दा नहीं करती ?.
सबसे पहले बताता चलूँ कि इस्लाम में सही तरीके से शरीर को ढकने की सलाह दी गई है लेकिन कोई ड्रेस कोड नहीं दिया गया है। यह काले बुर्के, यह सफ़ेद टोपी वाले बुर्के, सब लोगों ने खुद से बना लिए हैं. इस्लाम में बालों और जिस्म का पर्दा है, चेहरे का पर्दा ज़रूरी नहीं. इस परदे के साथ औरत इस समाज के हर काम कर सकती है, चाहे वोह नौकरी हो या व्यापार; अगर आप को कहीं फोटो भी लगानी हो तोह हिजाब के साथ लगी जा सकती है. कुछ लोगों का मानना है परदे से स्त्री की स्वतंत्रता बाधित होती है. लेकिन हजारों दलील के बाद भी यह लोग अपनी बात को साबित करने में नाकाम रहे हैं.
बहरहाल, हर वो औरत जो इस्लाम पे है और पर्दा नहीं करती उसकी पर्दा ना करे कि वजह दुनियावी हुआ करती है, जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं. यह हक़ीक़तन , कमज़ोर होने कि और एहसास ए कमतरी निशानी है. कुछ साल पहले तक , हिन्दुस्तान में मर्दों कि दाढ़ी रखने का फैशन नहीं था, जिस तरह सी आज हो गया है. उस समय मैंने ऐसे बहुत सी मुसलमान देखे हैं, जो यह कह के दाढ़ी नहीं रखते थे कि यह उनके समाज में, उनको सबसे अलग कर देता है, लोग इज्ज़त कि नजर से नहीं देखते. लेकिन मैंने किसी सरदार को पगड़ी पहनने से इनकार करते नहीं देखा, इस कारण से कि वो समाज में अलग से लगते हैं,और समाज उनकी इज्ज़त नहीं करता. क्या आप को नहीं लगता यह कमज़ोर इंसान कि पहचान है कि अपने अल्लाह के हुक्म को मानने से इनकार इसलिए कर देता है कि वोह जिन लोगों के बीच रहता है वे वैसा नहीं करते.? यह कमजोरी मैंने किसी सरदार में नहीं देखी, किसी राम भक्त या , साउथ के लोगों में नहीं पाए जो माथे के तिलक य चन्दन लगा लेते हैं.
दूसरे मज़हब के लोग जो इस्लाम को एक १४०० साल पुराना, अरब के गरीबों का इस्लाम, या पिछड़े हुए लोगों का मज़हब कहेते हैं, मैं उनको बुरा नहीं कहता क्योंकि वोह नहीं, जानते कि अल्लाह वो है, जो हर दौर के लोगों कि परेशानी, या हालात को जानता है ; कुरान में जो भी हुक्म है वोह इंसानों कि बेहतरी के लिए है और हर दौर को नजर मैं रखके वोह कानून बना है.
भारतीय नारी तो नारीत्व का, ममता का, करुणा का मूर्तिमान रूप है और पश्चिम कि सभ्यता औरत को एक नुमाइश कि चीज़ समझती है. आज इसी पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने वाला इंसान आज पढ़ा लिखा समझदार, प्रगतिवादी कहा जाता है. और ऐसे नाम के मुसलमानों को लगता है, अल्लाह से बेहतर है कि , इस पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण किया जाए .
उदाहरण के तौर पे एक साहिबा, नकाब पहनती थीं, फिर उनकी एक सहेली बनी जो अन्य किसी धर्म कि थी और ज़रा खुले दिमाग कि थी. इस साहेबा को लगा, नकाब पहनेंगे तो यह सहेली, उसको पिछड़ी हुई समझेगी, और नकाब उतार के बन गयी, नए ज़माने कि आधुनिक नारी .ऐसी कमज़ोर नफ्स कि औरतों से जब आप सवाल करें कि हुक्म ए खुदा के खिलाफ यह काम क्यूँ. तो पहले तो बहस , जो सारी पहनी है, सलवार सुइट पहना है ठीक तो है, बाल का पर्दा तो मुल्ला लोगों का बताया है और जब सारी दलील झूट साबित हुई तो यह कि अल्लाह माफ़ करेगा, ईमान दिल मैं होता है. क्या पर्दा करनी वाली औरतें सब शरीफ हुआ करती हैं. और ना जाने क्या क्या...
हकीकत मैं यह सब इब्लीस कि दलीलें हैं, सच यही है, कि हिजाब से औरत मैं पाकीजगी आती है, जिस ओरत कि जितनी इज्ज़त इस दुनिया मैं है, उसके जिस्म को उतना ही ढका दिखाया जाता है और जिसका जितना इस्तेमाल किया जाता है. मज़ा लिया जाता है उसको उतना ही कम कपड़ों मैं, देखा और दिखाया जाता है.
इसकी दलील यह है, कि इसाई मजहब में नन पूरे शरीर को सफेद कपड़े से ढकती है,जनाब ए मरियम को किसी ईसाई ने आज तक खुले सर तक नहीं दिखाया, यह वही ईसाई है जो आज मिनी और मिडी मैं यकीन रखता है.
मुसलमानों मैं जनाब ए मरियम, ख़दीजा, आसिया और फ़ातेमा , का नाम बड़े इज्ज़त ओ एहतराम से लिया जाता है और इन सब का पर्दा भी बहुत मशहूर है. हर मुसलमान औरत इनको ही अपनी अगुआ और मार्ग दर्शक मानती है.
शिया मुसलमान कर्बला मैं यजीद के ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाते है और यजीद को बुरा कहते हैं क्योंकि हुक्म ए यजीद से, रसूल ए खुदा हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के घर कि औरतों कि चादर छीन ली गयी थी और बेपर्दा घुमाया गया था.क्यों कि मकसद यजीद का था कि हज़रत मुहम्मद (स.अव) , कि घर कि औरतों को ज़लील करो.
आज यही औरत जो हर मुहर्रम मैं यजीद को बुरा कहती है, खुद से अपनी चादर उतार आधुनिक नारी बन जाती है और खुद हे अपने को ज़लील करती है . इस से अधिक बेहयाई, और मुनाफिकात और क्या हो सकती है? और उसपे यह जवाब कि अल्लाह माफ़ करेगा.
मर्द कि फितरत औरत को कम पापड़ों मैं देख के उसकी तरफ खिचे चले आना और औरत का शौक कि खुद को बेह्तेर से बेह्तेर अंदाज़ मैं दूसरों को दिखाना , प्राकृतिक हुआ करता है. इस्लाम मैं औरतों के लिए हुक्म है कि गैर मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए अपनी खूबसूरती का इस्तेमाल मत करो. या ऐसे कपडे ना पहनो जिससे जाने या अनजाने मैं कोई मर्द उसकी तरफ आकर्षित हो जाए.
अल्लाह इंसानों कि प्रकृति को हमसे बेहतर जानता है और उसी को नजर मैं रखके कानून बनाए हैं. इस्लाम सावधानी हटी दुर्घटना घटी के उसूल पे चलता है.
मैं अपनी उन बहनों, माताओं, से जो पर्दा नहीं करती यही अनुरोध करूंगा, अपनी अंदर कि हीनता कि भावना को दूर करें, और ध्यान दें, जब यह समाज, जनाब ए मरियम, खदीजा, फातिमा(स), और जैनब कि इज्ज़त कर सकता है और बा- हिजाब मुसलमान औरत कि इज्ज़त क्यों नहीं करेगा? जब यह समाज सरदार कि पगड़ी, पंडित का चन्दन. इन सबको खुले दिन सी कुबूल करता है तो, आप के दाढ़ी या परदे पे इसको क्या एतराज़ हो सकता है?
मैंने एक बा हिजाब औरत कि तस्वीर यहाँ डाली है, इसे देख के यह बताएं ऐसा कौन सा जाएज़ काम है , जो यह नहीं कर सकती? नौकरी भी कर सकती है, व्यापार भी कर सकती है, भाषण भी दे सकती है, बाज़ार जा सकती है, खुद अपनी पसंद से शादी भी कर सकती है, बेहतरीन ज़किरा या शाएरा भी बन सकती है. अब औरत को और क्या चाहिए जिसके लिए बे -पर्दा होना पड रहा है?
हाँ यह नहीं कर सकती वोह यह कि गैर मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती, बालों और जिस्म कि नुमाइश कर के माली फाएदा नहीं कमा सकती, किसी निरमा साबुन का इश्तेहार नहीं बन सकती, गैर मर्दों कि हवास भरी निगाहों , का शिकार नहीं बन सकती.
अफसाना तनवीर जी का जवाब भी देख लें.
अब पसंद आपकी फैसला आपका. इस्लाम मैं कोई जब्र नहीं है.
मेरे पास कुछ लोगों के मेल आये कि इस परदे के बारे में कुछ और भी बताऊँ. कुछ ने यह भी पुछा कि जब यह हुक्म ए खुदा है , तो यह कौन मुसलमान औरतें हैं जो अपने , ख्यालात हो अल्लाह के हुक्म से अफज़ल मानती हैं और पर्दा नहीं करती ?.
सबसे पहले बताता चलूँ कि इस्लाम में सही तरीके से शरीर को ढकने की सलाह दी गई है लेकिन कोई ड्रेस कोड नहीं दिया गया है। यह काले बुर्के, यह सफ़ेद टोपी वाले बुर्के, सब लोगों ने खुद से बना लिए हैं. इस्लाम में बालों और जिस्म का पर्दा है, चेहरे का पर्दा ज़रूरी नहीं. इस परदे के साथ औरत इस समाज के हर काम कर सकती है, चाहे वोह नौकरी हो या व्यापार; अगर आप को कहीं फोटो भी लगानी हो तोह हिजाब के साथ लगी जा सकती है. कुछ लोगों का मानना है परदे से स्त्री की स्वतंत्रता बाधित होती है. लेकिन हजारों दलील के बाद भी यह लोग अपनी बात को साबित करने में नाकाम रहे हैं.
बहरहाल, हर वो औरत जो इस्लाम पे है और पर्दा नहीं करती उसकी पर्दा ना करे कि वजह दुनियावी हुआ करती है, जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं. यह हक़ीक़तन , कमज़ोर होने कि और एहसास ए कमतरी निशानी है. कुछ साल पहले तक , हिन्दुस्तान में मर्दों कि दाढ़ी रखने का फैशन नहीं था, जिस तरह सी आज हो गया है. उस समय मैंने ऐसे बहुत सी मुसलमान देखे हैं, जो यह कह के दाढ़ी नहीं रखते थे कि यह उनके समाज में, उनको सबसे अलग कर देता है, लोग इज्ज़त कि नजर से नहीं देखते. लेकिन मैंने किसी सरदार को पगड़ी पहनने से इनकार करते नहीं देखा, इस कारण से कि वो समाज में अलग से लगते हैं,और समाज उनकी इज्ज़त नहीं करता. क्या आप को नहीं लगता यह कमज़ोर इंसान कि पहचान है कि अपने अल्लाह के हुक्म को मानने से इनकार इसलिए कर देता है कि वोह जिन लोगों के बीच रहता है वे वैसा नहीं करते.? यह कमजोरी मैंने किसी सरदार में नहीं देखी, किसी राम भक्त या , साउथ के लोगों में नहीं पाए जो माथे के तिलक य चन्दन लगा लेते हैं.
दूसरे मज़हब के लोग जो इस्लाम को एक १४०० साल पुराना, अरब के गरीबों का इस्लाम, या पिछड़े हुए लोगों का मज़हब कहेते हैं, मैं उनको बुरा नहीं कहता क्योंकि वोह नहीं, जानते कि अल्लाह वो है, जो हर दौर के लोगों कि परेशानी, या हालात को जानता है ; कुरान में जो भी हुक्म है वोह इंसानों कि बेहतरी के लिए है और हर दौर को नजर मैं रखके वोह कानून बना है.
भारतीय नारी तो नारीत्व का, ममता का, करुणा का मूर्तिमान रूप है और पश्चिम कि सभ्यता औरत को एक नुमाइश कि चीज़ समझती है. आज इसी पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने वाला इंसान आज पढ़ा लिखा समझदार, प्रगतिवादी कहा जाता है. और ऐसे नाम के मुसलमानों को लगता है, अल्लाह से बेहतर है कि , इस पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण किया जाए .
उदाहरण के तौर पे एक साहिबा, नकाब पहनती थीं, फिर उनकी एक सहेली बनी जो अन्य किसी धर्म कि थी और ज़रा खुले दिमाग कि थी. इस साहेबा को लगा, नकाब पहनेंगे तो यह सहेली, उसको पिछड़ी हुई समझेगी, और नकाब उतार के बन गयी, नए ज़माने कि आधुनिक नारी .ऐसी कमज़ोर नफ्स कि औरतों से जब आप सवाल करें कि हुक्म ए खुदा के खिलाफ यह काम क्यूँ. तो पहले तो बहस , जो सारी पहनी है, सलवार सुइट पहना है ठीक तो है, बाल का पर्दा तो मुल्ला लोगों का बताया है और जब सारी दलील झूट साबित हुई तो यह कि अल्लाह माफ़ करेगा, ईमान दिल मैं होता है. क्या पर्दा करनी वाली औरतें सब शरीफ हुआ करती हैं. और ना जाने क्या क्या...
हकीकत मैं यह सब इब्लीस कि दलीलें हैं, सच यही है, कि हिजाब से औरत मैं पाकीजगी आती है, जिस ओरत कि जितनी इज्ज़त इस दुनिया मैं है, उसके जिस्म को उतना ही ढका दिखाया जाता है और जिसका जितना इस्तेमाल किया जाता है. मज़ा लिया जाता है उसको उतना ही कम कपड़ों मैं, देखा और दिखाया जाता है.
इसकी दलील यह है, कि इसाई मजहब में नन पूरे शरीर को सफेद कपड़े से ढकती है,जनाब ए मरियम को किसी ईसाई ने आज तक खुले सर तक नहीं दिखाया, यह वही ईसाई है जो आज मिनी और मिडी मैं यकीन रखता है.
मुसलमानों मैं जनाब ए मरियम, ख़दीजा, आसिया और फ़ातेमा , का नाम बड़े इज्ज़त ओ एहतराम से लिया जाता है और इन सब का पर्दा भी बहुत मशहूर है. हर मुसलमान औरत इनको ही अपनी अगुआ और मार्ग दर्शक मानती है.
शिया मुसलमान कर्बला मैं यजीद के ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाते है और यजीद को बुरा कहते हैं क्योंकि हुक्म ए यजीद से, रसूल ए खुदा हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के घर कि औरतों कि चादर छीन ली गयी थी और बेपर्दा घुमाया गया था.क्यों कि मकसद यजीद का था कि हज़रत मुहम्मद (स.अव) , कि घर कि औरतों को ज़लील करो.
आज यही औरत जो हर मुहर्रम मैं यजीद को बुरा कहती है, खुद से अपनी चादर उतार आधुनिक नारी बन जाती है और खुद हे अपने को ज़लील करती है . इस से अधिक बेहयाई, और मुनाफिकात और क्या हो सकती है? और उसपे यह जवाब कि अल्लाह माफ़ करेगा.
मर्द कि फितरत औरत को कम पापड़ों मैं देख के उसकी तरफ खिचे चले आना और औरत का शौक कि खुद को बेह्तेर से बेह्तेर अंदाज़ मैं दूसरों को दिखाना , प्राकृतिक हुआ करता है. इस्लाम मैं औरतों के लिए हुक्म है कि गैर मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए अपनी खूबसूरती का इस्तेमाल मत करो. या ऐसे कपडे ना पहनो जिससे जाने या अनजाने मैं कोई मर्द उसकी तरफ आकर्षित हो जाए.
अल्लाह इंसानों कि प्रकृति को हमसे बेहतर जानता है और उसी को नजर मैं रखके कानून बनाए हैं. इस्लाम सावधानी हटी दुर्घटना घटी के उसूल पे चलता है.
मैं अपनी उन बहनों, माताओं, से जो पर्दा नहीं करती यही अनुरोध करूंगा, अपनी अंदर कि हीनता कि भावना को दूर करें, और ध्यान दें, जब यह समाज, जनाब ए मरियम, खदीजा, फातिमा(स), और जैनब कि इज्ज़त कर सकता है और बा- हिजाब मुसलमान औरत कि इज्ज़त क्यों नहीं करेगा? जब यह समाज सरदार कि पगड़ी, पंडित का चन्दन. इन सबको खुले दिन सी कुबूल करता है तो, आप के दाढ़ी या परदे पे इसको क्या एतराज़ हो सकता है?
मैंने एक बा हिजाब औरत कि तस्वीर यहाँ डाली है, इसे देख के यह बताएं ऐसा कौन सा जाएज़ काम है , जो यह नहीं कर सकती? नौकरी भी कर सकती है, व्यापार भी कर सकती है, भाषण भी दे सकती है, बाज़ार जा सकती है, खुद अपनी पसंद से शादी भी कर सकती है, बेहतरीन ज़किरा या शाएरा भी बन सकती है. अब औरत को और क्या चाहिए जिसके लिए बे -पर्दा होना पड रहा है?
हाँ यह नहीं कर सकती वोह यह कि गैर मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती, बालों और जिस्म कि नुमाइश कर के माली फाएदा नहीं कमा सकती, किसी निरमा साबुन का इश्तेहार नहीं बन सकती, गैर मर्दों कि हवास भरी निगाहों , का शिकार नहीं बन सकती.
अफसाना तनवीर जी का जवाब भी देख लें.
अब पसंद आपकी फैसला आपका. इस्लाम मैं कोई जब्र नहीं है.