मौत हर समय इंसान का पीछा करती रहती है और इंसान हमेशा मौत से भागता दिखाई देता है. आज तक कोई विज्ञान, यह नहीं बता पाया की किसी को मौत कब आए...
मौत हर समय इंसान का पीछा करती रहती है और इंसान हमेशा मौत से भागता दिखाई देता है. आज तक कोई विज्ञान, यह नहीं बता पाया की किसी को मौत कब आएगी, कहां आएगी, कैसे आएगी? हर दिन हम किसी ना किसी की मौत की खबर सुनते हैं लेकिन खुद को भी एक दिन मौत आएगी, यह कुबूल नहीं करते.
सन २००४ की शाम मेरे लिए एक अजीब शाम थी. दफ्टर से घर आया तो सब ठीक था,अचानक रात १०:३० ,जब में अपने कंप्यूटर पे बैठा तो मुझको दिल का दौरा पड़ा. उस समय करीब में कोई रिश्तेदार भी नहीं था. हमारी सोसाइटी वाले भाग के आये , अस्पताल , अम्बुलेंस , और फिर डॉक्टर का फैसला बाईपास आपरेशन होगा.
आप सब के यहाँ में बता ता चलूँ की जिस सोसाइटी में मैं रहता था वहाँ में अकेला मुसलमान था और १५ घर हिन्दू और दो घेर इसाईओं के थे. लेकिन मेरे बुरे वक़्त पे सब साथ रहे जब तक की दो दिन बाद मुझे आपरेशन के लिए ना ले जाया गया और मेरे भाई, बहनोई सब आ नहीं गए. इन दो दिनों में , कोई दफ्टर नहीं गया और डॉ के पास ८००००/- भी इन्ही लोगों ने जमा किये, जो बाद में वापस दिया गया. मैंने हिन्दू और ईसाई भाईओं से मुहब्बत ही पाई, नफरत कहीं नहीं देखी.
जब मुझे आपरेशन के लिए ले जाया जा रहा था, उस समय मुझे एक हॉल से गुज़ारा गया, वहाँ तक तो सभी रिश्तेदार दोस्त साथ थे, सब दुआ कर रहे थे,हिम्मत दिला रहे थे ,हाथ हिला रहे थे. मुझे ऐसा महसूस हुआ, अगर में वापस ना आया तो यह इन सब के आखिरी दीदार हैं.
आगे दूसरा हाल था, वहाँ ग्रीन ड्रेस में कई नर्स आईं और मेरे बेड को घेर के प्रार्थना करने लगीं. उस समय मुझको ऐसा लगा की शायद अब में, इस दुनिया में वापस फिर ना जा सकूंगा. मुझे बचपन से आज तक के मेरे अच्छे बुरे काम सभी याद आने लगे. अल्लाह को याद किया, तौबा की फिर भी एक ख्वाहिश की के ऐ पालने वाले मुझे फिर से एक ज़िंदगी दे दे, जिस से में अपने गुनाहों, की माफी मांग सकूं, अगर किसी के साथ बुरा किया है तो उस से माफी मांग लूं.
यकीन जानिए जिस समय मुझे ऐसा लगा की मौत बहुत ही करीब हैं, बहुत से अच्छे बुरे ख्यालात, तौबा, सजा और ना जाने क्या क्या, पूरी ज़िंदगी जैसे ५ मिनटों में सिमट के रह गयी थी. एक फिल्म सी बचपन से आज तक की दिमाग में चलने लगी थी. मुझे वो वो बातें आने लगीं , जो सचमें में भूल चुका था. मुझे मेरा घर, मेरी ज़मीं जाएदाद ,मेरी दौलत , मेरी शोहरत , सब अजनबी सी लगने लगी थी. आपरेशन हुआ और जब ७ घंटे बाद होश आया तो लगा अल्लाह ने मेरी सुन ली.
और जब मुझे नयी ज़िन्दगी मिली, तो में अब वो नहीं था , जो हुआ करता था. पुराने गुनाहों की तौबा भी की, नेक अमाल में इजाफा कर दिया और आज जब भी कोई काम करता हूँ यह ज़रूर सोंचता हूँ, अल्लाह की रज़ा , ख़ुशी है क्या इसमें?
मैंने जो सीखा इस मौत के दीदार से वो यह की ऐ इंसान, मत भागो मौत से, मत बनो जान के अनजान, मौत बहुत ही करीब है तुमसे. अपने धर्म का पालन करो, अल्लाह की ख़ुशी के लिए काम करो और इस दुनिया में नेक बन्दों की ख़ुशी हासिल करो, इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म जानो और अल्लाह के , भगवान् के नाफ़र्मान बन्दों की ख़ुशी हासिल करने से बचो.इंसानों को दर्द, तकलीफ ना दो, और अगर तुम्हारे पास कोई मदद मांगने आ जाए , तो अल्लाह का शुक्र अदा करो की तुम्हे इस काबिल बनाया और उसकी मदद करो.
मौत को फिर आना है, बस अल्लाह से दुआ करता हूँ की इस बार ,मौत को मुस्करा के गले लगाने के काबिल बना दे, अब ऐसा ना हो की तौबा के लिए अल्लाह से दूसरी ज़िंदगी की ख्वाहिश पैदा हो..
मेरे द्वारा रचित प्रविष्टियाँ पढ़ें(Aman ka Paighaam)
मेरे द्वारा रचित प्रविष्टियाँ पढ़ें (BezabaaN
सन २००४ की शाम मेरे लिए एक अजीब शाम थी. दफ्टर से घर आया तो सब ठीक था,अचानक रात १०:३० ,जब में अपने कंप्यूटर पे बैठा तो मुझको दिल का दौरा पड़ा. उस समय करीब में कोई रिश्तेदार भी नहीं था. हमारी सोसाइटी वाले भाग के आये , अस्पताल , अम्बुलेंस , और फिर डॉक्टर का फैसला बाईपास आपरेशन होगा.
आप सब के यहाँ में बता ता चलूँ की जिस सोसाइटी में मैं रहता था वहाँ में अकेला मुसलमान था और १५ घर हिन्दू और दो घेर इसाईओं के थे. लेकिन मेरे बुरे वक़्त पे सब साथ रहे जब तक की दो दिन बाद मुझे आपरेशन के लिए ना ले जाया गया और मेरे भाई, बहनोई सब आ नहीं गए. इन दो दिनों में , कोई दफ्टर नहीं गया और डॉ के पास ८००००/- भी इन्ही लोगों ने जमा किये, जो बाद में वापस दिया गया. मैंने हिन्दू और ईसाई भाईओं से मुहब्बत ही पाई, नफरत कहीं नहीं देखी.
जब मुझे आपरेशन के लिए ले जाया जा रहा था, उस समय मुझे एक हॉल से गुज़ारा गया, वहाँ तक तो सभी रिश्तेदार दोस्त साथ थे, सब दुआ कर रहे थे,हिम्मत दिला रहे थे ,हाथ हिला रहे थे. मुझे ऐसा महसूस हुआ, अगर में वापस ना आया तो यह इन सब के आखिरी दीदार हैं.
आगे दूसरा हाल था, वहाँ ग्रीन ड्रेस में कई नर्स आईं और मेरे बेड को घेर के प्रार्थना करने लगीं. उस समय मुझको ऐसा लगा की शायद अब में, इस दुनिया में वापस फिर ना जा सकूंगा. मुझे बचपन से आज तक के मेरे अच्छे बुरे काम सभी याद आने लगे. अल्लाह को याद किया, तौबा की फिर भी एक ख्वाहिश की के ऐ पालने वाले मुझे फिर से एक ज़िंदगी दे दे, जिस से में अपने गुनाहों, की माफी मांग सकूं, अगर किसी के साथ बुरा किया है तो उस से माफी मांग लूं.
यकीन जानिए जिस समय मुझे ऐसा लगा की मौत बहुत ही करीब हैं, बहुत से अच्छे बुरे ख्यालात, तौबा, सजा और ना जाने क्या क्या, पूरी ज़िंदगी जैसे ५ मिनटों में सिमट के रह गयी थी. एक फिल्म सी बचपन से आज तक की दिमाग में चलने लगी थी. मुझे वो वो बातें आने लगीं , जो सचमें में भूल चुका था. मुझे मेरा घर, मेरी ज़मीं जाएदाद ,मेरी दौलत , मेरी शोहरत , सब अजनबी सी लगने लगी थी. आपरेशन हुआ और जब ७ घंटे बाद होश आया तो लगा अल्लाह ने मेरी सुन ली.
और जब मुझे नयी ज़िन्दगी मिली, तो में अब वो नहीं था , जो हुआ करता था. पुराने गुनाहों की तौबा भी की, नेक अमाल में इजाफा कर दिया और आज जब भी कोई काम करता हूँ यह ज़रूर सोंचता हूँ, अल्लाह की रज़ा , ख़ुशी है क्या इसमें?
मैंने जो सीखा इस मौत के दीदार से वो यह की ऐ इंसान, मत भागो मौत से, मत बनो जान के अनजान, मौत बहुत ही करीब है तुमसे. अपने धर्म का पालन करो, अल्लाह की ख़ुशी के लिए काम करो और इस दुनिया में नेक बन्दों की ख़ुशी हासिल करो, इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म जानो और अल्लाह के , भगवान् के नाफ़र्मान बन्दों की ख़ुशी हासिल करने से बचो.इंसानों को दर्द, तकलीफ ना दो, और अगर तुम्हारे पास कोई मदद मांगने आ जाए , तो अल्लाह का शुक्र अदा करो की तुम्हे इस काबिल बनाया और उसकी मदद करो.
मौत को फिर आना है, बस अल्लाह से दुआ करता हूँ की इस बार ,मौत को मुस्करा के गले लगाने के काबिल बना दे, अब ऐसा ना हो की तौबा के लिए अल्लाह से दूसरी ज़िंदगी की ख्वाहिश पैदा हो..
मेरे द्वारा रचित प्रविष्टियाँ पढ़ें(Aman ka Paighaam)
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