विवाह का प्रचलन, समाज के कल्याण की ज़मानत है।विवाह का ना होना या देर से होना बहुत सी बुराईयों को जन्म देता है। आज हमारे समाज मैं विवाह द...
विवाह का प्रचलन, समाज के कल्याण की ज़मानत है।विवाह का ना होना या देर से होना बहुत सी बुराईयों को जन्म देता है। आज हमारे समाज मैं विवाह दर मैं कमी आने लगी है और देर से विवाह तो एक आम बात हो गयी है।
आज कुछ लोगों ने विवाह की वास्तविक आवश्यकता तथा उससे संबंधित उचित रीति-रिवाजों को भुलाकर, विवाह को एक अत्यन्त कठिन बन्धन, दिखावा, प्रतिस्पर्धा तथा घमण्ड करने का एक साधन बना दिया है। समाज में वर्ग की समस्या, रोज़गार की स्थिति ,दहेज़ की मांग ,यह सभी वो रूकावटें हैं जिन्होंने स्वस्थ व स्थाई विवाह के मार्गों को बन्द कर रखा है।
आज लड़के या लड़कियों की शादी की उमर २५ से ४५ तक हो चुकी है. और उसपे से पश्चिम के आधुनिक विचारों का प्रभाव अश्लील फिल्म्स का आम होना, टीवी और फिल्म का असर, क्या आज के युवाओं को अवैध संबंधों की तरफ आकर्षित नहीं करेगा?
पश्चिम ने अपने विशेष ऐतिहासिक सांस्कृतिक उद्देश्यों के अनतर्गत धार्मिक धारणाओं, मूल्यों यहॉं तक कि परिवार व विवाह जैसे सामाजिक मूल्यों से मुंह मोड़ लिया है कोई भी सच्चा बुद्धिजीवी या विचारक प्रगतिवाद या अश्लीलता के ख़तरनाक परिणामों को नहीं नकारता और उस स्थान के सुधारकों ने भी प्रति- दिन होते पतन व मूल्यों के संकट पर बारम्बार चेतावनी दी है।
पश्चिम में अवैध तथा बिना अभिभावक के बच्चों की संख्या में वृद्धि के चिन्ताजनक आंकड़ों के समाचार मिलते रहते हैं। अवैध होने के कारण इन बच्चों के मन में घृणा तथा ईष्या भरी होती है। यह बड़े होकर हत्या, हिंसा, अतिक्रमण तथा समाज में भ्रष्टाचार फैला कर अपने मन में छिपे द्वेष को व्यक्त करते हैं।
आज हमारे समाज मैं कुछ प्रगतिवादी इस बड़े सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अन्तर पर बिना ध्यान दिए हुए ही पश्चिमी संस्कृति के दिखावे के जाल में फॅंस जाते हैं और इसी कारण यह लोग विवाह से दूरी और कठिनाइयों से भाग कर, महिला व पुरूष के संबंधों में स्वतन्त्रता, स्नेह संबंधी भावनाओं और शिष्टाचार की क़ैद से रिहाई को ही प्रगतिवाद, विकास और उन्नति की सॅंज्ञा देने लगते हैं
आज यदि हम ऐसे समाज मैं रह रहे हैं , जहाँ हमारे युवाओं पे पश्चिमी सभ्यता का असर होने के अवसर अधिक हैं ऐसे मैं हमें विवाह की वास्तविक आवश्यकता, विवाह की सही उमर की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है.
इस से अधिक दुःख की क्या बात हो सकती है की आज जब एक लड़की अपनी सही उमर पे अनैतिक संबंधों के लिए लड़का तलाश करती है तो, लड़कों की कमी नहीं होती, बल्कि आपस मैं झगडे तक होने लगते हैं, लेकिन जब एक लड़की विवाह के लिए लड़का ढूँढती है तो, समाज में वर्ग की समस्या, रोज़गार की स्थिति ,दहेज़ की मांग उसके विवाह मैं बाधा बन जाती है।
विवाह का प्रचलन, समाज के कल्याण की ज़मानत है इसलिए इस संबंध में की जाने वाली उपेक्षा का नतीजा आज अनैतिक संबंधों की दर मैं बढ़ोतरी के रूप मैं दिखाई दे रहा है।
इस संबंध में जिस चीज़ की सबसे अधिक आव्शयकता है वो विवाह की भावना व नियमों का ज्ञान, विवाह का सही उमर मैं होना और विवाह की रीति-रिवाजों और नियमों से कुरीतियों को अलग किया जाना है।
आज कुछ लोगों ने विवाह की वास्तविक आवश्यकता तथा उससे संबंधित उचित रीति-रिवाजों को भुलाकर, विवाह को एक अत्यन्त कठिन बन्धन, दिखावा, प्रतिस्पर्धा तथा घमण्ड करने का एक साधन बना दिया है। समाज में वर्ग की समस्या, रोज़गार की स्थिति ,दहेज़ की मांग ,यह सभी वो रूकावटें हैं जिन्होंने स्वस्थ व स्थाई विवाह के मार्गों को बन्द कर रखा है।
आज लड़के या लड़कियों की शादी की उमर २५ से ४५ तक हो चुकी है. और उसपे से पश्चिम के आधुनिक विचारों का प्रभाव अश्लील फिल्म्स का आम होना, टीवी और फिल्म का असर, क्या आज के युवाओं को अवैध संबंधों की तरफ आकर्षित नहीं करेगा?
पश्चिम ने अपने विशेष ऐतिहासिक सांस्कृतिक उद्देश्यों के अनतर्गत धार्मिक धारणाओं, मूल्यों यहॉं तक कि परिवार व विवाह जैसे सामाजिक मूल्यों से मुंह मोड़ लिया है कोई भी सच्चा बुद्धिजीवी या विचारक प्रगतिवाद या अश्लीलता के ख़तरनाक परिणामों को नहीं नकारता और उस स्थान के सुधारकों ने भी प्रति- दिन होते पतन व मूल्यों के संकट पर बारम्बार चेतावनी दी है।
पश्चिम में अवैध तथा बिना अभिभावक के बच्चों की संख्या में वृद्धि के चिन्ताजनक आंकड़ों के समाचार मिलते रहते हैं। अवैध होने के कारण इन बच्चों के मन में घृणा तथा ईष्या भरी होती है। यह बड़े होकर हत्या, हिंसा, अतिक्रमण तथा समाज में भ्रष्टाचार फैला कर अपने मन में छिपे द्वेष को व्यक्त करते हैं।
आज हमारे समाज मैं कुछ प्रगतिवादी इस बड़े सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अन्तर पर बिना ध्यान दिए हुए ही पश्चिमी संस्कृति के दिखावे के जाल में फॅंस जाते हैं और इसी कारण यह लोग विवाह से दूरी और कठिनाइयों से भाग कर, महिला व पुरूष के संबंधों में स्वतन्त्रता, स्नेह संबंधी भावनाओं और शिष्टाचार की क़ैद से रिहाई को ही प्रगतिवाद, विकास और उन्नति की सॅंज्ञा देने लगते हैं
आज यदि हम ऐसे समाज मैं रह रहे हैं , जहाँ हमारे युवाओं पे पश्चिमी सभ्यता का असर होने के अवसर अधिक हैं ऐसे मैं हमें विवाह की वास्तविक आवश्यकता, विवाह की सही उमर की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है.
इस से अधिक दुःख की क्या बात हो सकती है की आज जब एक लड़की अपनी सही उमर पे अनैतिक संबंधों के लिए लड़का तलाश करती है तो, लड़कों की कमी नहीं होती, बल्कि आपस मैं झगडे तक होने लगते हैं, लेकिन जब एक लड़की विवाह के लिए लड़का ढूँढती है तो, समाज में वर्ग की समस्या, रोज़गार की स्थिति ,दहेज़ की मांग उसके विवाह मैं बाधा बन जाती है।
विवाह का प्रचलन, समाज के कल्याण की ज़मानत है इसलिए इस संबंध में की जाने वाली उपेक्षा का नतीजा आज अनैतिक संबंधों की दर मैं बढ़ोतरी के रूप मैं दिखाई दे रहा है।
इस संबंध में जिस चीज़ की सबसे अधिक आव्शयकता है वो विवाह की भावना व नियमों का ज्ञान, विवाह का सही उमर मैं होना और विवाह की रीति-रिवाजों और नियमों से कुरीतियों को अलग किया जाना है।