यह लेख़ मेरे उन दोस्तों के नाम जिन्होंने मेरा साथ हर मुश्किल मैं, हर बुरे वक़्त मैं दिया. मेरी कमियों को छिपा के, मेरी गलतिओं को नज़रंदाज़ ...
यह लेख़ मेरे उन दोस्तों के नाम जिन्होंने मेरा साथ हर मुश्किल मैं, हर बुरे वक़्त मैं दिया. मेरी कमियों को छिपा के, मेरी गलतिओं को नज़रंदाज़ करके , मेरे किरदार को संवारा.
“दोस्त और दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो ज़ाहिरी तौर पर दूर होने के बावजूद करीब तरीन अफ़राद से भी क़रीब तर होता है। दुनिया के सबसे बेहतरीन रिश्तों में एक है दोस्ती का रिश्ता। एक सही और अच्छा दोस्त हमारी जिंदगी बदलने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है।
एक अच्छा और सच्चा दोस्त वह होता हे जो आपकी राहों में आई मुश्किलों का हल निकालते हैं। एक सच्चा दोस्त वह है जो आपके दिल की बात को समझ पाए ओर आपका संबल बढाकर आपको सही रास्ता दिखाए।
अच्छे दोस्त को कैसे ढूंढा जाए या कैसे पहचाना जाए इसके लिए आज हजरत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स) जिनको सभी मुसलमानों में खलीफा का दर्जा हासिल है. उनके कुछ कौल को जमा करके दोस्ती की अहमियत बताने की कोशिश कर रहा हूँ.
अमीरल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स) ने फ़रमाया की “दोस्ती इंतिहाई फाएदेमंद रिश्तेदारी व क़राबत है ” दोस्ती की अहमियत को उजागर करने के लिये आप (अ) फ़रमाते हैं “रिश्तेदारी व क़राबत दोस्ती के बग़ैर बरक़रार नही रह सकते जबकि दोस्ती के लिये रिश्तेदारी का होना ज़रूरी नही है और दोस्तो का न होना ग़ुरबत व तन्हाई है” और ग़रीब व तन्हा हक़ीक़त में वह शख़्स है जिसका कोई दोस्त न हो।
दोस्ती के सिलसिले में सबसे अहम बात “ दोस्तो का चुनाव ” है। क्योकि दोस्त और दोस्ती का रिश्ता सिर्फ़ ज़बानी जमा ख़र्च का नाम नही है बल्कि ये ऐसा इंतिहाई नाज़ुक रिश्ता है जो इंसान की दुनिया व आख़िरत को बिगाड़ने या सँवारने के लिये तन्हा ही काफ़ी है लेकिन इस सिलसिले में जब हम अपने समाज में नज़र डालते हैं तो दो क़िस्म की फ़िक्र सामने आते हैं। कुछ लोग दोस्त और दोस्ती से ज़्यादा तन्हाई को तरजीह देते हैं और बड़े फ़ख़्र से कहते हुए नज़र आते हैं कि मैं किसी को दोस्त नही बनाता क्योकि दोस्ती, फ़ुज़ूल और बेकार लोगों का काम है, जो फ़क़्त वक़्त गुज़ारने के लिये इकठ्ठे होते हैं। इससे अलग कुछ लोग एसे भी होते हैं जो हर ऐरे ग़ैरे के साथ दोस्ती की पीगें बढ़ा लेते हैं और फिर कदम कदम पर ठोकरें खा कर यो कहते हुए नज़र आते हैं:
देखा जो तीर खा के कमीं गाह की तरफ़
अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गयी
बुनियादी तौर पर ये दोनो फ़िक्र ग़लत हैं। हजरत अली (अ.स) फ़रमाते हैं : बदकिस्मत है वोह शख़्स जो किसी को अपना दोस्त न बना सके और उससे भी ज़्यादा बदकिस्मत वह है जो बने बनाये दोस्तो से भी हाथ धो बैठे ”
दोस्त के चुनाव के सिलसिले में इंसान को ख़ुद्दार होना चाहिये। क्योकि दोस्ती एक ऐसा नाता है जिसे बराबरी कि बुनियाद पर जोड़ा जाता है। लिहाज़ा ऐसे अफ़राद की दोस्ती से परहेज़ करना चाहिये जो ख़ुद को बड़ा समझें ।
हजरत अली (अ.स) फ़रमाते हैं:
“ऐसे अफ़राद की दोस्ती के तलबगार न बनो जो तुमसे पीछा छुड़ाना चाहते हों। और अगर कोई शख़्स तुम्हारी दोस्ती का तलबगार हो तो उसे मायूस न करो क्योकि इस तरह तुम एक अच्छे साथी से महरूम हो जाओगे।”
“ जो तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढाए, उससे इनकार करना एक बड़ा नुकसान है और जो तुमसे दोस्ती ना करना चाहे उस से दोस्ती करने की कोशिश ख़ुद को ज़लील करना है। ”
आइये एक नज़र उन लोगों पर डाली जाये जिनकी दोस्ती इख़्तियार करने से मौला ए काऍनात (अ) रोक रहे हैं और साथ ही उन ख़तरनाक नतीजे की तरफ इशारा फ़रमा रहे हैं ।
बेवक़ूफ़ों से दोस्ती न करना क्योकि वह तुम्हे फ़ायदा पहुँचाना चाहेगा तो नुक़सान पहुँचायेगा और कंजूस से दोस्ती न करना क्योकि जब तुम्हे उसकी मदद की ज़रूरत होगी वह तुमसे दूर भागेगा, और बदकार से दोस्ती न करना, वह तुम्हे कौड़ियो के भाव बेच डालेगा और झूठे से दोस्ती न करना क्योकि वह तुम्हारे लिये दूर की चीज़ों को क़रीब और क़रीब की चीज़ो को दूर कर देगा। ”
दोस्तो के बहुत से हक हुआ करते हैं और इनको अदा करके दोस्ती को मज़बूत से मज़बूत तर बनाया जा सकता है हजरत अली (अ.स) ने इस तरफ इन लव्जों मैं इशारा किया :
१) दोस्तों से अच्छा सुलूक करो और उनकी ग़लतियों से दरगुज़र करने की कोशिश करो .“
२) दोस्त उस वक़्त तक दोस्त नही हो सकता जब तक तीन मौक़ों पर दोस्त के काम न आये, मुसीबत के मौक़े पर, ग़ैर मौजूदगी में और मरने के बाद ”
३) दोस्त वह होता है जो ग़ैर मौजूदगी में भी दोस्ती निभाये और जो तुम्हारी परवाह न करे वह तुम्हारा दुश्मन है। ”
दोस्त और दोस्ती के बे शुमार फाएदे और अहमियत को देखते हुए बहुत से लोग दोस्ती में किसी क़िस्म की हद के पाबंद नही होते, और दोस्त के सामने अपने सब राज़ बयान कर देते हैं लेकिन इमाम अली (अ) ने हिदायत दी : दोस्ती इंतिहाई गहरी व पाकीज़ा होने के बावजूद एक दायरे में महदूद है। “ दोस्त से एक हद तक दोस्ती करो क्योकि मुम्किन है कि वह एक दिन तुम्हारा दुश्मन हो जाये और दुश्मन से दुश्मनी बस एक हद तक ही रखो शायद वह किसी दिन तुम्हारा दोस्त बन जाये। ”
दोस्त की किस्मों के बारे मैं इमाम अली (अ) ने बताया : तुम्हारे दोस्त भी तीन तरह के हैं और दुश्मन भी तीन क़िस्म के हैं। तुम्हारा दोस्त, तुम्हारे दोस्त का दोस्त और तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन तुम्हारे दोस्त हैं......
आम तौर पर हम दोस्तों की क़िस्मों से ग़ाफ़िल रहते हैं जिसके नतीजे में बाज़ औक़ात क़रीबी दोस्तों से हाथ धोना पड़ते हैं।
दोस्ती काएम रहे और कभी ना टूटे इसके लिए एहतियात बताते हुए इमाम अली (अ) ने फ़रमाया
“दोस्त और दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो ज़ाहिरी तौर पर दूर होने के बावजूद करीब तरीन अफ़राद से भी क़रीब तर होता है। दुनिया के सबसे बेहतरीन रिश्तों में एक है दोस्ती का रिश्ता। एक सही और अच्छा दोस्त हमारी जिंदगी बदलने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है।
एक अच्छा और सच्चा दोस्त वह होता हे जो आपकी राहों में आई मुश्किलों का हल निकालते हैं। एक सच्चा दोस्त वह है जो आपके दिल की बात को समझ पाए ओर आपका संबल बढाकर आपको सही रास्ता दिखाए।
अच्छे दोस्त को कैसे ढूंढा जाए या कैसे पहचाना जाए इसके लिए आज हजरत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स) जिनको सभी मुसलमानों में खलीफा का दर्जा हासिल है. उनके कुछ कौल को जमा करके दोस्ती की अहमियत बताने की कोशिश कर रहा हूँ.
अमीरल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स) ने फ़रमाया की “दोस्ती इंतिहाई फाएदेमंद रिश्तेदारी व क़राबत है ” दोस्ती की अहमियत को उजागर करने के लिये आप (अ) फ़रमाते हैं “रिश्तेदारी व क़राबत दोस्ती के बग़ैर बरक़रार नही रह सकते जबकि दोस्ती के लिये रिश्तेदारी का होना ज़रूरी नही है और दोस्तो का न होना ग़ुरबत व तन्हाई है” और ग़रीब व तन्हा हक़ीक़त में वह शख़्स है जिसका कोई दोस्त न हो।
दोस्ती के सिलसिले में सबसे अहम बात “ दोस्तो का चुनाव ” है। क्योकि दोस्त और दोस्ती का रिश्ता सिर्फ़ ज़बानी जमा ख़र्च का नाम नही है बल्कि ये ऐसा इंतिहाई नाज़ुक रिश्ता है जो इंसान की दुनिया व आख़िरत को बिगाड़ने या सँवारने के लिये तन्हा ही काफ़ी है लेकिन इस सिलसिले में जब हम अपने समाज में नज़र डालते हैं तो दो क़िस्म की फ़िक्र सामने आते हैं। कुछ लोग दोस्त और दोस्ती से ज़्यादा तन्हाई को तरजीह देते हैं और बड़े फ़ख़्र से कहते हुए नज़र आते हैं कि मैं किसी को दोस्त नही बनाता क्योकि दोस्ती, फ़ुज़ूल और बेकार लोगों का काम है, जो फ़क़्त वक़्त गुज़ारने के लिये इकठ्ठे होते हैं। इससे अलग कुछ लोग एसे भी होते हैं जो हर ऐरे ग़ैरे के साथ दोस्ती की पीगें बढ़ा लेते हैं और फिर कदम कदम पर ठोकरें खा कर यो कहते हुए नज़र आते हैं:
देखा जो तीर खा के कमीं गाह की तरफ़
अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गयी
बुनियादी तौर पर ये दोनो फ़िक्र ग़लत हैं। हजरत अली (अ.स) फ़रमाते हैं : बदकिस्मत है वोह शख़्स जो किसी को अपना दोस्त न बना सके और उससे भी ज़्यादा बदकिस्मत वह है जो बने बनाये दोस्तो से भी हाथ धो बैठे ”
दोस्त के चुनाव के सिलसिले में इंसान को ख़ुद्दार होना चाहिये। क्योकि दोस्ती एक ऐसा नाता है जिसे बराबरी कि बुनियाद पर जोड़ा जाता है। लिहाज़ा ऐसे अफ़राद की दोस्ती से परहेज़ करना चाहिये जो ख़ुद को बड़ा समझें ।
हजरत अली (अ.स) फ़रमाते हैं:
“ऐसे अफ़राद की दोस्ती के तलबगार न बनो जो तुमसे पीछा छुड़ाना चाहते हों। और अगर कोई शख़्स तुम्हारी दोस्ती का तलबगार हो तो उसे मायूस न करो क्योकि इस तरह तुम एक अच्छे साथी से महरूम हो जाओगे।”
“ जो तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढाए, उससे इनकार करना एक बड़ा नुकसान है और जो तुमसे दोस्ती ना करना चाहे उस से दोस्ती करने की कोशिश ख़ुद को ज़लील करना है। ”
आइये एक नज़र उन लोगों पर डाली जाये जिनकी दोस्ती इख़्तियार करने से मौला ए काऍनात (अ) रोक रहे हैं और साथ ही उन ख़तरनाक नतीजे की तरफ इशारा फ़रमा रहे हैं ।
बेवक़ूफ़ों से दोस्ती न करना क्योकि वह तुम्हे फ़ायदा पहुँचाना चाहेगा तो नुक़सान पहुँचायेगा और कंजूस से दोस्ती न करना क्योकि जब तुम्हे उसकी मदद की ज़रूरत होगी वह तुमसे दूर भागेगा, और बदकार से दोस्ती न करना, वह तुम्हे कौड़ियो के भाव बेच डालेगा और झूठे से दोस्ती न करना क्योकि वह तुम्हारे लिये दूर की चीज़ों को क़रीब और क़रीब की चीज़ो को दूर कर देगा। ”
दोस्तो के बहुत से हक हुआ करते हैं और इनको अदा करके दोस्ती को मज़बूत से मज़बूत तर बनाया जा सकता है हजरत अली (अ.स) ने इस तरफ इन लव्जों मैं इशारा किया :
१) दोस्तों से अच्छा सुलूक करो और उनकी ग़लतियों से दरगुज़र करने की कोशिश करो .“
२) दोस्त उस वक़्त तक दोस्त नही हो सकता जब तक तीन मौक़ों पर दोस्त के काम न आये, मुसीबत के मौक़े पर, ग़ैर मौजूदगी में और मरने के बाद ”
३) दोस्त वह होता है जो ग़ैर मौजूदगी में भी दोस्ती निभाये और जो तुम्हारी परवाह न करे वह तुम्हारा दुश्मन है। ”
दोस्त और दोस्ती के बे शुमार फाएदे और अहमियत को देखते हुए बहुत से लोग दोस्ती में किसी क़िस्म की हद के पाबंद नही होते, और दोस्त के सामने अपने सब राज़ बयान कर देते हैं लेकिन इमाम अली (अ) ने हिदायत दी : दोस्ती इंतिहाई गहरी व पाकीज़ा होने के बावजूद एक दायरे में महदूद है। “ दोस्त से एक हद तक दोस्ती करो क्योकि मुम्किन है कि वह एक दिन तुम्हारा दुश्मन हो जाये और दुश्मन से दुश्मनी बस एक हद तक ही रखो शायद वह किसी दिन तुम्हारा दोस्त बन जाये। ”
दोस्त की किस्मों के बारे मैं इमाम अली (अ) ने बताया : तुम्हारे दोस्त भी तीन तरह के हैं और दुश्मन भी तीन क़िस्म के हैं। तुम्हारा दोस्त, तुम्हारे दोस्त का दोस्त और तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन तुम्हारे दोस्त हैं......
आम तौर पर हम दोस्तों की क़िस्मों से ग़ाफ़िल रहते हैं जिसके नतीजे में बाज़ औक़ात क़रीबी दोस्तों से हाथ धोना पड़ते हैं।
दोस्ती काएम रहे और कभी ना टूटे इसके लिए एहतियात बताते हुए इमाम अली (अ) ने फ़रमाया
- जो चुग़ुलख़ोर की बात पर एतिमाद करता है वह दोस्त को खो देता है ”
- जिस ने अपने दोस्त को शर्मिन्दा किया समझो कि उससे जुदा हो गया। ”