ज़िन्दगी के कई पहलू पे तो लिखता रहता हूँ , आज सोंचा उस ज़िन्दगी के पहलू पे भी लिखूं जो हम याद नहीं रखते. ज़िन्दगी और मौत और मौत के बाद ज़ि...
ज़िन्दगी के कई पहलू पे तो लिखता रहता हूँ , आज सोंचा उस ज़िन्दगी के पहलू पे भी लिखूं जो हम याद नहीं रखते. ज़िन्दगी और मौत और मौत के बाद ज़िन्दगी नरक या स्वर्ग के रूप मैं, हर धर्म मैं है।
इंसान भी एक हैवान है, जिसमें अक्ल है एहसास है और इच्छाएं हैं. इसलिए यह दुसरे हैवानों (जानवरों) से अलग इंसान कहलाता है. इच्छाएं दो तरह की हैं. एक वोह इच्छाएं जो अल्लाह ने पैदा की हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और इन इच्छाओं को सीखने की ज़रुरत नहीं हुआ करती. जैसे प्यास का लगना और पानी पीने की इच्छा का होना ।
दूसरी वोह इच्छाएँ हैं जिनका हमारी ज़रूरतों से कुछ लेना देना नहीं, यह समाज के कुछ ऐसे लोग जिनका अल्लाह से ज्यादा दुनिया की बनाई चीज़ों पे यकीन है, उनसे सीखते हैं, जैसे नशा करना, डिस्को, लालच, इर्षा इत्यादि. हम परेशान हुए अल्लाह से दुआ की जगह नशा करने लगे, खुद को भुला के सुकून तलाशा ।
जब जब समाज की पैदा की हुई यह इच्छाएँ हमारी अक्ल और एहसास पे हावी (ग़ालिब) हो जाती हैं हम एक हैवान नजर आते हैं. और जब यह अक्ल इच्छाओं को दबा देती है तो हम एक नेक इंसान नजर आते हैं।
अल्लाह ने जो इच्छाएँ पैदा की हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ,उनपे रोक नहीं लगाता है, बस कानून बनाया है, कैसे हलाल तरीक़े से खाने का इंतज़ाम करो, दूसरों का माल मत लूटो. कैसे किसी स्त्री को अपना बनाओ, और पर स्त्री पे नजर ना डालो. और समाज के उन ग़लत लोगों से बचो जो बेवजह की इच्छाएँ पैदा करते हैं इतना सा कानून अगर हम समझ लें, तो हम को लोग मरने के बाद भी याद रखेंगे और मौत के बाद की ज़िन्दगी भी स्वर्ग मैं होगी, यही हैं हमेशा जीवित रहने का तरीका । आज भी दुनिया कभी किसी की, ईमानदारी को याद करती है तो कभी किसी की , अमानतदारी रहम दिली, क़ुरबानी और ,मुहब्बत को, याद करती है. यह वोह लोग हैं जो आज भी जिंदा हैं।
अब ज़रा यह भी समझ लें की मौत ( म्रत्यु) है क्या?
"हर प्राणी को मौत का मज़ा चखना है।" (सूरत आल इम्रान : 185) और सूर (नरसिंघा) फूँक दिया जायेगा तो आकाशों और धरती वाले सभी बेहोश होकर गिर पड़ेंगे लेकिन जिसे अल्लाह चाहे, फिर दुबारा सूर फूँका जायेगा तो वे अचानक खड़े होकर देखने लग जायेंगे ।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 68)
इन कुरान की आयतों की नजर से देखें तो मालूम होता है मौत के बाद भी कोई ज़िन्दगी है, जो एक मुक़र्रर वक़्त पे सूर फूंकने के बाद शुरू होगी ।
इमाम जाफ़र इ सादिक (अ.स) से पुछा गया मौत क्या है? इमाम (अ) ने जवाब दिया मौत वहीं है, जो तुमको हर रात आती (नींद) है. कुरान मैं सूरा इ अल ज़ुमर ३९:४२ मैं भी नींद और मौत के लिए एक ही लव्ज़ का इस्तेमाल किया गया है ।
नींद एक मौत है जो कुछ वक़्त के लिए थकान के बाद आती है. इसमें इंसान का जिस्म, जो की केवल एक हथियार मात्र है, दुनिया मैं अपनी ज़रूरतों को पूरा करने का, साथ रहता है. और इसी कारण , इंसान ज़रुरत के वक़्त नीद वाली मौत से जाग जाता है. मौत एक ऐसी नींद है , जिसमें जिस्म साथ नहीं देता और इस नीद से जागने का वक़्त भी मुक़र्रर है, जिसे केवल अल्लाह जानता है ।
मौत इस्लाम मैं मरने का नाम नहीं बल्कि एक जगह से दूसरी जगह चले जाने (इन्तेकाल) का नाम है. यह हमारी आदत है की हम जब सोते हैं तो कल की तैयारी कर के सोते हैं. कल उठने पे क्या करना है? कहां जाना है? अगर सुबह उठने के फ़ौरन बाद जल्द कहीं जाना है तो सामान भी तैयार कर लिया करते हैं, पहले से ।
मौत भी एक नींद है, उसके बाद भी एक सुबह है, जब सबको उठाना है और सिर्फ एक पूल (पूल इ सिरात) पार कर के एक नयी दुनिया मैं जाना है. मंजिल स्वर्ग या नरक दोनों हो सकती है. आप को उस दुनिया मैं जा के , अपनी आराम के सामान इसी दुनिया मैं , जमा करने हैं ।
हम नींद (वक्ती मौत) के बाद कल क्या करना है, इसका इंतज़ाम तो रोज़ करते हैं, मुस्तकिल मौत के बाद जब हम जागेंगे, उसका इंतज़ाम करना भूल जाते हैं हर इंसान को हमेशा जिंदा रहने की कोशिश करना चाहिए , हमको अपना जीवन पवित्रता, सच्चाई, उदारता तथा नैतिकता के साथ व्यतीत करना चहिये और यही अल्लाह का बताया वोह रास्ता है, जिस से हम हमेशा जीवित रह सकते हैं. ।
हजरत अली(अ.स) ने नहजुल बालाघा मैं फ़रमाया कि लोगों के बीच ऐसे रहो कि अगर मर जाओं तो वो तुम पर रोयें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे अभिलाषी हो।
इंसान भी एक हैवान है, जिसमें अक्ल है एहसास है और इच्छाएं हैं. इसलिए यह दुसरे हैवानों (जानवरों) से अलग इंसान कहलाता है. इच्छाएं दो तरह की हैं. एक वोह इच्छाएं जो अल्लाह ने पैदा की हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और इन इच्छाओं को सीखने की ज़रुरत नहीं हुआ करती. जैसे प्यास का लगना और पानी पीने की इच्छा का होना ।
दूसरी वोह इच्छाएँ हैं जिनका हमारी ज़रूरतों से कुछ लेना देना नहीं, यह समाज के कुछ ऐसे लोग जिनका अल्लाह से ज्यादा दुनिया की बनाई चीज़ों पे यकीन है, उनसे सीखते हैं, जैसे नशा करना, डिस्को, लालच, इर्षा इत्यादि. हम परेशान हुए अल्लाह से दुआ की जगह नशा करने लगे, खुद को भुला के सुकून तलाशा ।
जब जब समाज की पैदा की हुई यह इच्छाएँ हमारी अक्ल और एहसास पे हावी (ग़ालिब) हो जाती हैं हम एक हैवान नजर आते हैं. और जब यह अक्ल इच्छाओं को दबा देती है तो हम एक नेक इंसान नजर आते हैं।
अल्लाह ने जो इच्छाएँ पैदा की हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ,उनपे रोक नहीं लगाता है, बस कानून बनाया है, कैसे हलाल तरीक़े से खाने का इंतज़ाम करो, दूसरों का माल मत लूटो. कैसे किसी स्त्री को अपना बनाओ, और पर स्त्री पे नजर ना डालो. और समाज के उन ग़लत लोगों से बचो जो बेवजह की इच्छाएँ पैदा करते हैं इतना सा कानून अगर हम समझ लें, तो हम को लोग मरने के बाद भी याद रखेंगे और मौत के बाद की ज़िन्दगी भी स्वर्ग मैं होगी, यही हैं हमेशा जीवित रहने का तरीका । आज भी दुनिया कभी किसी की, ईमानदारी को याद करती है तो कभी किसी की , अमानतदारी रहम दिली, क़ुरबानी और ,मुहब्बत को, याद करती है. यह वोह लोग हैं जो आज भी जिंदा हैं।
अब ज़रा यह भी समझ लें की मौत ( म्रत्यु) है क्या?
"हर प्राणी को मौत का मज़ा चखना है।" (सूरत आल इम्रान : 185) और सूर (नरसिंघा) फूँक दिया जायेगा तो आकाशों और धरती वाले सभी बेहोश होकर गिर पड़ेंगे लेकिन जिसे अल्लाह चाहे, फिर दुबारा सूर फूँका जायेगा तो वे अचानक खड़े होकर देखने लग जायेंगे ।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 68)
इन कुरान की आयतों की नजर से देखें तो मालूम होता है मौत के बाद भी कोई ज़िन्दगी है, जो एक मुक़र्रर वक़्त पे सूर फूंकने के बाद शुरू होगी ।
इमाम जाफ़र इ सादिक (अ.स) से पुछा गया मौत क्या है? इमाम (अ) ने जवाब दिया मौत वहीं है, जो तुमको हर रात आती (नींद) है. कुरान मैं सूरा इ अल ज़ुमर ३९:४२ मैं भी नींद और मौत के लिए एक ही लव्ज़ का इस्तेमाल किया गया है ।
नींद एक मौत है जो कुछ वक़्त के लिए थकान के बाद आती है. इसमें इंसान का जिस्म, जो की केवल एक हथियार मात्र है, दुनिया मैं अपनी ज़रूरतों को पूरा करने का, साथ रहता है. और इसी कारण , इंसान ज़रुरत के वक़्त नीद वाली मौत से जाग जाता है. मौत एक ऐसी नींद है , जिसमें जिस्म साथ नहीं देता और इस नीद से जागने का वक़्त भी मुक़र्रर है, जिसे केवल अल्लाह जानता है ।
मौत इस्लाम मैं मरने का नाम नहीं बल्कि एक जगह से दूसरी जगह चले जाने (इन्तेकाल) का नाम है. यह हमारी आदत है की हम जब सोते हैं तो कल की तैयारी कर के सोते हैं. कल उठने पे क्या करना है? कहां जाना है? अगर सुबह उठने के फ़ौरन बाद जल्द कहीं जाना है तो सामान भी तैयार कर लिया करते हैं, पहले से ।
मौत भी एक नींद है, उसके बाद भी एक सुबह है, जब सबको उठाना है और सिर्फ एक पूल (पूल इ सिरात) पार कर के एक नयी दुनिया मैं जाना है. मंजिल स्वर्ग या नरक दोनों हो सकती है. आप को उस दुनिया मैं जा के , अपनी आराम के सामान इसी दुनिया मैं , जमा करने हैं ।
हम नींद (वक्ती मौत) के बाद कल क्या करना है, इसका इंतज़ाम तो रोज़ करते हैं, मुस्तकिल मौत के बाद जब हम जागेंगे, उसका इंतज़ाम करना भूल जाते हैं हर इंसान को हमेशा जिंदा रहने की कोशिश करना चाहिए , हमको अपना जीवन पवित्रता, सच्चाई, उदारता तथा नैतिकता के साथ व्यतीत करना चहिये और यही अल्लाह का बताया वोह रास्ता है, जिस से हम हमेशा जीवित रह सकते हैं. ।
हजरत अली(अ.स) ने नहजुल बालाघा मैं फ़रमाया कि लोगों के बीच ऐसे रहो कि अगर मर जाओं तो वो तुम पर रोयें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे अभिलाषी हो।