जब कोई इंसान किसी दुसरे इंसान की मदद अपने माल से करता है, तो यह माल ज़रूरतमंद के हाथ मैं जाने के पहले अल्लाह के हाथ मैं जाता है, और उसके ब...
जब कोई इंसान किसी दुसरे इंसान की मदद अपने माल से करता है, तो यह माल ज़रूरतमंद के हाथ मैं जाने के पहले अल्लाह के हाथ मैं जाता है, और उसके बाद ज़रुरत मंद के पास पहुँचता है। ऐसे मैं अगर आपने किसी ग़लत इंसान की मदद कर भी दी तो भूल जाएं क्योंकि इसका सिला अल्लाह देगा. उस शख्स ने अल्लाह को धोका दिया। ज्यादा अहम् यह है की आप मदद मांगने से पहले हज़ार बार सोंचें , कहीं आप ग़लत इंसान से मदद तो नहीं ले रहे?
एक और जहाँ इस्लाम कहता है, नेकी कर दरया मैं डाल , सिला देने वाला अल्लाह है। वहीं यह भी कहता है” और देखो, उन पर ख़र्च करो तो उन पर एहसान जताकर उनको कष्ट मत पहुँचाना, उनका अपमान मत करना, उनसे कोई प्रतिदान, कोई बदला मत चाहना। प्रतिदान तो तुम्हें अल्लाह देगा; इस जीवन में भी, और परलोक जीवन में तो पुरस्कार व प्रतिदान की मात्र अत्यधिक, चिरस्थाई होगी।” इस्लाम इसके साथ साथ यह भी कहता है की: मदद करने वाले का एहसान मानो और कोशिश करो की उसको कष्ट ना हो तुम्हारी किसी बात से. मौकापरस्ती और एहसान फरामोशी को एक बड़ा पाप का दर्जा दिया गया है।
एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्लाम ईश्वर की प्रार्थना के लिए तूर पर्वत पर गए। मार्ग में उनकी भेंट एक इंसान से हुई जो अल्लाह की इबादत मैं लगा हुआ था ओर इतना कमज़ोर हो गया था की चल भी नहीं सकता था। हज़रत मूसा अलैहिस्लाम ने पूछा कि ऐ इंसान तुझ को खाना पानी कौन देता है? उस व्यक्ति ने जवाब दिया, वही अल्लाह जिसकी मैं इबादत दिन रात किया करता हूँ। वोह एक परिंदा भेजता है, जो मुझे खाना ओर पानी अपनी चोंच से देता है।
फिर उस इंसान ने पुछा आप कहां जा रहे हैं,? हज़रत मूसा ने उत्तर दिया कि मैं उपासना के लिए तूर पर्वत पर जा रहा हूं। उस व्यक्ति ने कहा कि क्या तुम मेरा सवाल ईश्वर तक पहुंचा सकते हो? हज़रत मूसा ने कहा कि तुम्हारा सवाल क्या है? बूढ़े ने कहा कि ईश्वर से पूछो मैं इतनी इबादत करता हूँ, मेरी जगह जन्नत मैं कहां है?। हज़रत मूसा तूर पर्वत पर गए। अपनी प्रार्थना के पश्चात हज़रत मूसा ने उस व्यक्ति की बात का उल्लेख किया। ईश्वर ने कहा ऐ मूसा उस व्यक्ति से कह दो उसकी जगह जहन्नम है ओर इसका करण यह की जब एक परिंदा उसको हर रोज़ खाना खिलाता है, तो यह व्यक्ति उस परिंदे से कभी नहीं पूछता की उसने भी खाना खाया या नहीं? यह एहसान फरामोशी है, ओर एहसान फरामोश कितनी भी इबादत कर ले जन्नत की खुशबू भी नहीं पाएगा।
उस व्यक्ति ने जब मूसा को वापस आते देखा तो उनसे पूछा कि क्या तुमने मेरे संदेश को अपने ईश्वर तक पहुंचा दिया था? ईश्वर ने जो कुछ भी कहा था उसे हज़रत मूसा ने बता दिया। यह सुनकर उस व्यक्ति का रंग उड़ गया। उस व्यक्ति ने दुआ की ऐ मूसा इश्वर से कह दो की , मुझको इतना बड़ा कर दे की पूरा जहन्नम भर जाए ओर इसके बाद कोई भी इबादत करने वाला जहन्नम ना जाए. हज़रत मूसा ने यह बात भी इश्वर तक पहुंचा दी. इश्वर ने कहा जाओ उस व्यक्ति से कहो, इसलिए की तुमने दूसरों की तकलीफ को महसूस किया ओर उनके लिए तुम्हें जन्नत दी ।
हम पे एहसान है अल्लाह का जिसने हमें इस्लाम की शक्ल मैं हिदायत दी। हम पे एहसान है मुहम्मद(स.अ.व) का जिन्होंने हुक्म इ खुदा से हम सबके पास अल्लाह का पैग़ाम पहुँचाया और उसपे अमल कर के दिखाया। हम पे एहसान हैं मुहम्मद (स.अ.व) के घराने का जिन लोगों ने इस्लाम के लिए कुबनियाँ दी ,इस्लाम को बचाया और उसके कानून पे अमल कर के बताया और नतीजे मैं शहादत पाई । सूर ए शूरा आयत २३ ऐ रसूल "आप कह दिजीये कि मैं तुम से इस तबलीग़ का कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो"
हम पे एहसान है हमारे मां बाप का जिन्होंने हमारी परवरिश की. इसी लिए मां बाप के लिए यह दुआ करना हर औलाद का फ़र्ज़ है " ऐ अल्लाह हमारे मां बाप पे ऐसे रहम करना जैसा उन्होंने हमारे बचपने पे किया था जब हम मजबूर और कमज़ोर थे।
हम पे एहसान है हमारे गुरु का शिक्षक का जिन्होंने हमको पढना लिखना सीखाया। हम पे एहसान हैं हमारे रिश्तेदारों का , जिनकी मुहब्बत हमको जिन्दा रहने का एहसास दिलाती है। हम पे एहसान है उन दोस्तों का, पड़ोसियों का , जिन्होंने हमारी बुरे वक़्त मैं मदद की ।
इन सभी एहसानों को मानते हुए इन सभी के शुक्र गुज़ार होते हुए इनके हुकूक को ईमानदारी से अदा करना चाहिए,यही इस्लाम का पैग़ाम है । अगर ऐसा ना किया तो स्वर्ग तो क्या उसकी खुशबू भी नहीं पाओगे ।
.....स.म.मासूम
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