जब भी कोई दुर्घटना हो जाए, और आप अखबार पलटने लहें तो नेताओं का वही बडबोलापन, वही गलीज छींटाकशी. एक दूसरे पर पढने को मिलेगी. बडबोले नेता अप...
जब भी कोई दुर्घटना हो जाए, और आप अखबार पलटने लहें तो नेताओं का वही बडबोलापन, वही गलीज छींटाकशी. एक दूसरे पर पढने को मिलेगी. बडबोले नेता अपने इस हुनर से भोली भाली जनता को कैसे बेवकूफ बनाते हैं, जग ज़ाहिर है. लेकिन हिन्दुस्तान की जनता इस उम्मीद पे बेवकूफ बनती रहती है की शायद जो कह रहा है, अगली बार कर दिखाए ???
हम इस बात को भूल जाते है की बडबोला वही व्यक्ति होता है, जिसको कुछ करना नहीं होता. बडबोला पन, दिखावा करना ,झूटी शान बताना, चापलूसी यह सब मौक़ा परस्त और दुनिया परस्त लोगों के मिजाज़ मैं मिलता है.........यह सब जानते हैं की अच्छा इंसान वही है, जिसकी तारीफ दुसरे करें, फिर भी इस समाज के हर कोने मैं आप को मियाँ मिठ्ठू मिल जाएंगे. यह खुद ही ना जाने कहां दान करते हैं और खुद ही दानवीर का मेडल लगा के समाज के सामने खड़े हो जाते हैं. यह सस्ती शोहरत के भूखे लोग हैं. जहाँ शोहरत ना मिलनी हो यह वहाँ कुछ भी नेकी नहीं करते. अक्सर ऐसे लोगों के परिवार वालों को इनसे शिकायत रहती है, की यह उनके लिए वक़्त नहीं निकालते. जंगल मैं मोर नाचा किसने देखा. इनके लिए परिवार जंगल जैसा ही हुआ करता है.
ऐसे लोगों की एक पहचान यह भी है, अक्सर यह दूसरों के उन गुणों के गुणगान करते पाए जाते हैं, जो उसमें है ही नहीं. यह कभी सत्य का साथ नहीं देते, क्योंकि यह जानते हैं, सत्य के साथी कम हुआ करते हैं. इनसे मदद माग लें कभी, यकीन जानिए बात सारे जहाँ को यह घूम घूम के बाटेंगे. मदद १० रू की और ढिंढोरा इतना की आप भी घबरा जाएं की यह किस से मदद मांग ली? सारे समाज को यह आप के हमदर्द बन के आपकी तंगी आर ग़ुरबत की कहानी सुनाएंगे . दूसरों से कहते मिलेंगे , बेचारे के ऐसे दिन आ गए. खुद दानवीर बनते समय यह कभी नहीं सोंचते की सामने वाले की इज्ज़त भी नीलाम कर रहे हैं.
मैं ऐसे संस्थाओं से सहमत नहीं, जो ग़रीब बच्चों की मदद करती हैं और मदद की राशी देते वक़्त उस बच्चे की तस्वीर निकाल के ख़बरों के हवाले कर देते हैं. कोई उस बच्चे के मां बाप के दिल सी पूछे जो अपने ग़रीब बच्चे को मदद की राशी लेते देख रहा हो. किसी की ग़रीबी को समाज मैं आम कर देना मेरी नज़र मैं पाप है.जब एक इंसान किसी दुसरे इंसान के सामने हाथ फैलता है, मदद मांगता है तो उस से पहले ना जाने कितनी बार वो मरता है और कितनी बार फिर जीता है. सही मदद वही है, जो छिपा के की जाए. जो मदद दिखा के की जाए वोह झूटी शान का मात्र दिखावा है..
इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: तुम हरगिज़ अपनी सख़्तियाँ और परेशानियाँ लोगों पर ज़ाहिर न करो क्योकि उसका पहला असर ये होगा कि तुम ज़मीन पर गिर चुके हो और ज़माने के मुकाबले में शिकस्त खा चुके हो और तुम लोगों की नज़रों से गिर जाओगे और तुम्हारी शख़्सियत व वक़ार लोगों के दरमियान से ख़त्म हो जाएगा।
और अगर कोई मदद मांगने आ ही जाए. तो हजरत अली (अ.स) ने हमको सीखाया किसी गरीब की मदद एक हाथ से करो तो दुसरे हाथ को पता ना चले. हम हैं की जब तक अपनी झूटी शान के लिए सबको बता ना दें, लगता है मदद की ही नहीं..
लेकिन कौन समझाए इन झूटी शान के शौक़ीन बड़बोलों को? क्यों ना हम खुद ही अपनी इज्ज़त अपने हाथ वाली कहावत को अपना लें और इन बड़बोलों और झूटी शान दिखाने वालों की चापलूसी के बहकावे मैं ना आयें.......
यकीन जानिए इन झूटी शान के शौक़ीन लोगों की मदद जिस ने भी आज तक ली है, उसकी इज्ज़त इन्ही के हाथों नीलाम भी हुई है...
हम इस बात को भूल जाते है की बडबोला वही व्यक्ति होता है, जिसको कुछ करना नहीं होता. बडबोला पन, दिखावा करना ,झूटी शान बताना, चापलूसी यह सब मौक़ा परस्त और दुनिया परस्त लोगों के मिजाज़ मैं मिलता है.........यह सब जानते हैं की अच्छा इंसान वही है, जिसकी तारीफ दुसरे करें, फिर भी इस समाज के हर कोने मैं आप को मियाँ मिठ्ठू मिल जाएंगे. यह खुद ही ना जाने कहां दान करते हैं और खुद ही दानवीर का मेडल लगा के समाज के सामने खड़े हो जाते हैं. यह सस्ती शोहरत के भूखे लोग हैं. जहाँ शोहरत ना मिलनी हो यह वहाँ कुछ भी नेकी नहीं करते. अक्सर ऐसे लोगों के परिवार वालों को इनसे शिकायत रहती है, की यह उनके लिए वक़्त नहीं निकालते. जंगल मैं मोर नाचा किसने देखा. इनके लिए परिवार जंगल जैसा ही हुआ करता है.
ऐसे लोगों की एक पहचान यह भी है, अक्सर यह दूसरों के उन गुणों के गुणगान करते पाए जाते हैं, जो उसमें है ही नहीं. यह कभी सत्य का साथ नहीं देते, क्योंकि यह जानते हैं, सत्य के साथी कम हुआ करते हैं. इनसे मदद माग लें कभी, यकीन जानिए बात सारे जहाँ को यह घूम घूम के बाटेंगे. मदद १० रू की और ढिंढोरा इतना की आप भी घबरा जाएं की यह किस से मदद मांग ली? सारे समाज को यह आप के हमदर्द बन के आपकी तंगी आर ग़ुरबत की कहानी सुनाएंगे . दूसरों से कहते मिलेंगे , बेचारे के ऐसे दिन आ गए. खुद दानवीर बनते समय यह कभी नहीं सोंचते की सामने वाले की इज्ज़त भी नीलाम कर रहे हैं.
मैं ऐसे संस्थाओं से सहमत नहीं, जो ग़रीब बच्चों की मदद करती हैं और मदद की राशी देते वक़्त उस बच्चे की तस्वीर निकाल के ख़बरों के हवाले कर देते हैं. कोई उस बच्चे के मां बाप के दिल सी पूछे जो अपने ग़रीब बच्चे को मदद की राशी लेते देख रहा हो. किसी की ग़रीबी को समाज मैं आम कर देना मेरी नज़र मैं पाप है.जब एक इंसान किसी दुसरे इंसान के सामने हाथ फैलता है, मदद मांगता है तो उस से पहले ना जाने कितनी बार वो मरता है और कितनी बार फिर जीता है. सही मदद वही है, जो छिपा के की जाए. जो मदद दिखा के की जाए वोह झूटी शान का मात्र दिखावा है..
इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: तुम हरगिज़ अपनी सख़्तियाँ और परेशानियाँ लोगों पर ज़ाहिर न करो क्योकि उसका पहला असर ये होगा कि तुम ज़मीन पर गिर चुके हो और ज़माने के मुकाबले में शिकस्त खा चुके हो और तुम लोगों की नज़रों से गिर जाओगे और तुम्हारी शख़्सियत व वक़ार लोगों के दरमियान से ख़त्म हो जाएगा।
और अगर कोई मदद मांगने आ ही जाए. तो हजरत अली (अ.स) ने हमको सीखाया किसी गरीब की मदद एक हाथ से करो तो दुसरे हाथ को पता ना चले. हम हैं की जब तक अपनी झूटी शान के लिए सबको बता ना दें, लगता है मदद की ही नहीं..
लेकिन कौन समझाए इन झूटी शान के शौक़ीन बड़बोलों को? क्यों ना हम खुद ही अपनी इज्ज़त अपने हाथ वाली कहावत को अपना लें और इन बड़बोलों और झूटी शान दिखाने वालों की चापलूसी के बहकावे मैं ना आयें.......
यकीन जानिए इन झूटी शान के शौक़ीन लोगों की मदद जिस ने भी आज तक ली है, उसकी इज्ज़त इन्ही के हाथों नीलाम भी हुई है...
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