इस्लाम में झूठ को सबसे बड़ा पाप बताया गया है। सभी पापों की जड़ झूठ है। हमारे समाज और परिवारों की सबसे बड़ी समस्या झूठ और उसे गंभीरता से न ल...
इस्लाम में झूठ को सबसे बड़ा पाप बताया गया है। सभी पापों की जड़ झूठ है। हमारे समाज और परिवारों की सबसे बड़ी समस्या झूठ और उसे गंभीरता से न लिया जाना है। यहॉ तक कि उसकी बुराई अब दिखाई ही नहीं देती और यह एक सामान्य सी बात हो गई है। झूठ बोलना हर परिवार और सभा में आम हो गया है ।
हम बड़ी ही सरलता से झूठ बोलते हैं, अपनी वस्तुओं को बेचने के लिए हम झूठी क़सम तक खा लेते हैं, झूठ बोल कर स्वंय को सच्चा सिद्ध करते हैं ताकि हमारे कार्य सरलता से आगे बढ़ें और हमारी समस्याओं का समाधान हो जाए। कभी कभी किसी परेशानी से बचने के लिए झूठ बोलते हैं। पति पत्नी से, पत्नी पति से, माता- पिता बच्चों से, बच्चे माता-पिता से और मित्र एक दूसरे से झूठ बोलते हैं। यहां तक कि वे स्वंय भी अपनी इस आदत से घृणा करने लगते हैं परन्तु फिर भी पाठ नहीं लेते और इसी मार्ग पर चलते रहते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि एक दिन उनका झूठ खुल जाए गा और फिर उनपर कोई विश्वास नहीं करे गा।
बच्चे छोटे छोटे और महत्वीन झूठ को जो हमारे बीच प्रचलित हैं अपना आदर्श बना लेते हैं। छोटे छोटे झूठ ही बड़े झूठ का कारण बनते हैं। इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए कि झूठ न बोलें, चाहे वो छोटा हो चाहे बड़ा, क्योंकि झूठ का जारी रहना बहुत बुरे परिणाम लाता है। क्या कभी आप ने यह सोचा है कि लोग झूठ क्यों बोलते हैं।
१ कभी कभी हम अपनी बात का औचित्य दर्शाने के लिए झूठ बोलते हैं।
२- कभी स्वंय को बड़ा दिखाने के लिए।
३- कभी वीर और साहसी दर्शाने के लिए।
४- कभी हम दूसरों से स्वंय को विकसित दिखाने के लिए।
५- कभी हीन भावना में ग्रस्त होने के कारण हम झूठ बोलते हैं।
६- और कभी डर से, सामने वाले को खुश रखने की नियत से भी हम झूट बोलते हैं.
७- कभी किसी की इज्ज़त बचाने के लिए, या तकलीफ से बचाने के लिए भी झूट बोलते हैं.
नि:सन्देह फूठ सभी पापों की जड़ है। हर पाप का आरम्म झूठ से होता है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कथन है कि " सही पापों एवं बुराइयों को एक कमरे में रख कर उसमें ताला लगा दिया गया है और उसकी चाभी झूठ है।
अन्त में हम यही कहें गे कि झूठ सभी पापों की जड़ है और सके साथ मुक़ाबला सच्चाई से किया जा सकता है। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़र्माया है - मोझ सच बोलने पर प्राप्त होता है।
झूठ एक ऐसा पाप है जो बढ़ता जाता है. एक झूट बोलके उसको छिपाने के लिए कई झूट बोलने पड़ते हैं. एक झूट से ना जाने कितने घर बर्बाद हो जाते हैं ।
जैसा की मैंने पहले कहा हम कभी किसी बेगुनाह की इज्ज़त या जान बचाने के लिए, या दूसरे को तकलीफ से बचाने के लिए भी झूट बोलते हैं. किसी बेगुनाह की इज्ज़त या जान बचाने वाले झूट को पाप की जगह पुण्य का दर्जा हासिल है, अगर यह इन्साफ के साथ बोला गया हो ।
वोह झूट जो सामने वाले को झूटी ख़ुशी देने के लिए, झूटी तारीफ की शक्ल में बोला जाए , या कोई बात छिपाने के लिए बोला जाए, इस नियत से की सच जान के सामने वाले को बुरा लग सकता है , भी पाप की गिनती मैं आता है। यह झूट अक्सर किसी रिश्ते को करीब रखने के लिए या किसी रिश्ते के दूर हो जाने के डर से बोला जाता है। जिस रिश्ते के लिए सच बोलने से टूट जाने का डर पैदा हो जाए , उसका टूट जाना ही बेहतर हुआ करता है ।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है - सच बोलिए चाहे वो आप के अहित में ही क्यों न हो।
झूठ बोलने की इस समस्या का समाधान इस को गंभीरता से लिए जाने पे ही संभव है ।
स.म.मासूम
हम बड़ी ही सरलता से झूठ बोलते हैं, अपनी वस्तुओं को बेचने के लिए हम झूठी क़सम तक खा लेते हैं, झूठ बोल कर स्वंय को सच्चा सिद्ध करते हैं ताकि हमारे कार्य सरलता से आगे बढ़ें और हमारी समस्याओं का समाधान हो जाए। कभी कभी किसी परेशानी से बचने के लिए झूठ बोलते हैं। पति पत्नी से, पत्नी पति से, माता- पिता बच्चों से, बच्चे माता-पिता से और मित्र एक दूसरे से झूठ बोलते हैं। यहां तक कि वे स्वंय भी अपनी इस आदत से घृणा करने लगते हैं परन्तु फिर भी पाठ नहीं लेते और इसी मार्ग पर चलते रहते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि एक दिन उनका झूठ खुल जाए गा और फिर उनपर कोई विश्वास नहीं करे गा।
बच्चे छोटे छोटे और महत्वीन झूठ को जो हमारे बीच प्रचलित हैं अपना आदर्श बना लेते हैं। छोटे छोटे झूठ ही बड़े झूठ का कारण बनते हैं। इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए कि झूठ न बोलें, चाहे वो छोटा हो चाहे बड़ा, क्योंकि झूठ का जारी रहना बहुत बुरे परिणाम लाता है। क्या कभी आप ने यह सोचा है कि लोग झूठ क्यों बोलते हैं।
१ कभी कभी हम अपनी बात का औचित्य दर्शाने के लिए झूठ बोलते हैं।
२- कभी स्वंय को बड़ा दिखाने के लिए।
३- कभी वीर और साहसी दर्शाने के लिए।
४- कभी हम दूसरों से स्वंय को विकसित दिखाने के लिए।
५- कभी हीन भावना में ग्रस्त होने के कारण हम झूठ बोलते हैं।
६- और कभी डर से, सामने वाले को खुश रखने की नियत से भी हम झूट बोलते हैं.
७- कभी किसी की इज्ज़त बचाने के लिए, या तकलीफ से बचाने के लिए भी झूट बोलते हैं.
नि:सन्देह फूठ सभी पापों की जड़ है। हर पाप का आरम्म झूठ से होता है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कथन है कि " सही पापों एवं बुराइयों को एक कमरे में रख कर उसमें ताला लगा दिया गया है और उसकी चाभी झूठ है।
अन्त में हम यही कहें गे कि झूठ सभी पापों की जड़ है और सके साथ मुक़ाबला सच्चाई से किया जा सकता है। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़र्माया है - मोझ सच बोलने पर प्राप्त होता है।
झूठ एक ऐसा पाप है जो बढ़ता जाता है. एक झूट बोलके उसको छिपाने के लिए कई झूट बोलने पड़ते हैं. एक झूट से ना जाने कितने घर बर्बाद हो जाते हैं ।
जैसा की मैंने पहले कहा हम कभी किसी बेगुनाह की इज्ज़त या जान बचाने के लिए, या दूसरे को तकलीफ से बचाने के लिए भी झूट बोलते हैं. किसी बेगुनाह की इज्ज़त या जान बचाने वाले झूट को पाप की जगह पुण्य का दर्जा हासिल है, अगर यह इन्साफ के साथ बोला गया हो ।
वोह झूट जो सामने वाले को झूटी ख़ुशी देने के लिए, झूटी तारीफ की शक्ल में बोला जाए , या कोई बात छिपाने के लिए बोला जाए, इस नियत से की सच जान के सामने वाले को बुरा लग सकता है , भी पाप की गिनती मैं आता है। यह झूट अक्सर किसी रिश्ते को करीब रखने के लिए या किसी रिश्ते के दूर हो जाने के डर से बोला जाता है। जिस रिश्ते के लिए सच बोलने से टूट जाने का डर पैदा हो जाए , उसका टूट जाना ही बेहतर हुआ करता है ।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है - सच बोलिए चाहे वो आप के अहित में ही क्यों न हो।
झूठ बोलने की इस समस्या का समाधान इस को गंभीरता से लिए जाने पे ही संभव है ।
स.म.मासूम