इस्लाम के कानून से औरत की आज़ादी यह एक ऐसा विषय है जिस पे बहुत कुछ लिखा गया और लिखा जा रहा है. अक्सर इस विषय पे आज़ाद ख्याल रखने वाले इस...
इस्लाम के कानून से औरत की आज़ादी यह एक ऐसा विषय है जिस पे बहुत कुछ लिखा गया और लिखा जा रहा है. अक्सर इस विषय पे आज़ाद ख्याल रखने वाले इस्लाम में औरत के अधिकार को ही नहीं जानते. किसी को पर्दा क़ैद लगता है, किसी को मर्द को चार शादी करने की आज़ादी औरत के साथ नाइंसाफी लगती है.
कोई औरत को घर के बाहर नौकरी करते ही देखना चाहता है, तोह कोई फैशन परेड में चलते देखना चाहता है.इस्लाम में न तो नौकरी करना मना है और न ही औरत का मर्द पे शादी के वक़्त यह शर्त लगा देना की दूसरी शादी उसकी मौजूदगी में नहीं करोगे. हाँ अगर ज़रूरी हो जाए तो औरत नौकरी भी कर सकती है और अगर ज़रूरी ना हो तो बेहतर है, घर के काम और ओलाद की तरबियत के ध्यान दे. इसी तरह अगर शादी के समय एक लड़की यह शर्त रख दे की , उसके पत्नी रहते , दूसरी शादी नहीं कर सकता तो , वो मर्द बिना पत्नी की इजाज़त दूसरी शादी नहीं कर सकेगा.
पश्चिमी सभ्यता में औरत एक मज़ा करने की चीज़ बन के रहगयी है. कोई भी इश्तेहार हो औरत कम वस्त्रों में मिलेगी . कोई भी ऑफिस हो औरत स्वागत करती मिनी या जींस में मिल जाएगी. यह कैसी आज़ादी है औरत की के पब्लिक प्रोपर्टी बना के रख दिया. इस्लाम इस तरह के क़ैद के खिलाफ है जहां औरत का नाजाएज़ इस्तेमाल पैसे के दम पे किया जाता हो.
इस्लाम आने के पहले औरत दुनिया के हर समाज में इन्तेहाई बेक़ीमत मख़लूक़ थी। लोग निहायत आज़ादी से औरत का लेन देन किया करते थे।और उसकी राय की कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के फ़लासिफ़ा इस नुक्ता पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों की एक क़िस्म क़रार दिया जाये या यह एक ऐसी इंसान नुमा मख़लूक़ है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान के उन्स व उल्फ़त के लिये पैदा किया गया है ताकि उससे हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा कर सके वर्ना उसका इंसानीयत से कोई लअल्लुक़ नही है।
दौरे हाज़िर में आज़ादी और हुक़ुक़ का नारा लगाने वाले और इस्लाम पर तरह तरह के इल्ज़ामात आएद करने वाले इस हक़ीक़त को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की बाईज़्ज़त फ़िक्र और उसके सिलसिले में हुक़ुक़ का तसव्वुर भी इस्लाम का दिया हुआ है वर्ना उसने ज़िल्लत की इन्तेहाई गहराई से निकाल कर ईज़्ज़त के औज पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसको बारे में इस अंदाज़ से सोचने वाला न होता।
दर हक़ीक़त यह इस्लाम के बारे में अहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर अंदाज़ी सिखाई उसी को निशाना बना दिया, और जिसने आज़ादी और हुक़ुक़ का नारा दिया उसी पर इल्ज़ाम आएद कर दिये। और इस से अधिक अफ़सोस की बात यह की इस काम में कुछ आज़ाद परस्त औरतें भी शामिल हो गयी हैं.
ऐसा कोई ज़ुल्म जो लोगों की नज़र में इस्लाम के कानून की वजह से औरत पे हो रह हो मुझे बताएं. कम अक्ल और दुनिया परस्त लोगों के जाती फाएदे के लिये दिये गए आज़ादी के नारों से या कुछ कट्टर पंथी लोगों के फतवों से इस्लाम औरतों पे ज़ुल्म करने वाला नहीं हो जाएगा
स .म . मासूम
कोई औरत को घर के बाहर नौकरी करते ही देखना चाहता है, तोह कोई फैशन परेड में चलते देखना चाहता है.इस्लाम में न तो नौकरी करना मना है और न ही औरत का मर्द पे शादी के वक़्त यह शर्त लगा देना की दूसरी शादी उसकी मौजूदगी में नहीं करोगे. हाँ अगर ज़रूरी हो जाए तो औरत नौकरी भी कर सकती है और अगर ज़रूरी ना हो तो बेहतर है, घर के काम और ओलाद की तरबियत के ध्यान दे. इसी तरह अगर शादी के समय एक लड़की यह शर्त रख दे की , उसके पत्नी रहते , दूसरी शादी नहीं कर सकता तो , वो मर्द बिना पत्नी की इजाज़त दूसरी शादी नहीं कर सकेगा.
पश्चिमी सभ्यता में औरत एक मज़ा करने की चीज़ बन के रहगयी है. कोई भी इश्तेहार हो औरत कम वस्त्रों में मिलेगी . कोई भी ऑफिस हो औरत स्वागत करती मिनी या जींस में मिल जाएगी. यह कैसी आज़ादी है औरत की के पब्लिक प्रोपर्टी बना के रख दिया. इस्लाम इस तरह के क़ैद के खिलाफ है जहां औरत का नाजाएज़ इस्तेमाल पैसे के दम पे किया जाता हो.
इस्लाम आने के पहले औरत दुनिया के हर समाज में इन्तेहाई बेक़ीमत मख़लूक़ थी। लोग निहायत आज़ादी से औरत का लेन देन किया करते थे।और उसकी राय की कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के फ़लासिफ़ा इस नुक्ता पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों की एक क़िस्म क़रार दिया जाये या यह एक ऐसी इंसान नुमा मख़लूक़ है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान के उन्स व उल्फ़त के लिये पैदा किया गया है ताकि उससे हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा कर सके वर्ना उसका इंसानीयत से कोई लअल्लुक़ नही है।
दौरे हाज़िर में आज़ादी और हुक़ुक़ का नारा लगाने वाले और इस्लाम पर तरह तरह के इल्ज़ामात आएद करने वाले इस हक़ीक़त को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की बाईज़्ज़त फ़िक्र और उसके सिलसिले में हुक़ुक़ का तसव्वुर भी इस्लाम का दिया हुआ है वर्ना उसने ज़िल्लत की इन्तेहाई गहराई से निकाल कर ईज़्ज़त के औज पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसको बारे में इस अंदाज़ से सोचने वाला न होता।
दर हक़ीक़त यह इस्लाम के बारे में अहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर अंदाज़ी सिखाई उसी को निशाना बना दिया, और जिसने आज़ादी और हुक़ुक़ का नारा दिया उसी पर इल्ज़ाम आएद कर दिये। और इस से अधिक अफ़सोस की बात यह की इस काम में कुछ आज़ाद परस्त औरतें भी शामिल हो गयी हैं.
ऐसा कोई ज़ुल्म जो लोगों की नज़र में इस्लाम के कानून की वजह से औरत पे हो रह हो मुझे बताएं. कम अक्ल और दुनिया परस्त लोगों के जाती फाएदे के लिये दिये गए आज़ादी के नारों से या कुछ कट्टर पंथी लोगों के फतवों से इस्लाम औरतों पे ज़ुल्म करने वाला नहीं हो जाएगा
स .म . मासूम